आदरणीय श्री वसन्तकुमार महोदय जी!
प्रणाम।
संहित भागों की संख्या की दृष्टि से ऋग्वेद में तीन प्रकार की ऋचाएँ मिलती हैं।
एक संहित भाग। प॒श्वा न ता॒युं गुहा॒ चत॑न्तं॒ नमो॑ युजा॒नं नमो॒ वह॑न्तम्॥ १.६५.१॥
दो संहित भाग। अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म्। होता॑रं रत्न॒धात॑मम्॥ १.१.१॥
तीन संहित भाग। अ॒ग्निं होता॑रं मन्ये॒ दास्व॑न्तं॒ वसुं॑ सू॒नुं सह॑सो जा॒तवे॑दसं॒ विप्रं॒ न जा॒तवे॑दसम्। य ऊ॒र्ध्वया॑ स्वध्व॒रो दे॒वो दे॒वाच्या॑ कृ॒पा। घृ॒तस्य॒ विभ्रा॑ष्टि॒मनु॑ वष्टि शो॒चिषा॒जुह्वा॑नस्य स॒र्पिषः॑॥ १. १२७.१॥
अधिकतर ऋचाएँ दूसरे प्रकार की ही हैं।
यहाँ किसी भी ऋचा के अंतिम संहित भाग को उत्तमार्ध और अन्य भागों को उत्तमेतरार्ध कहा गया है।
प्रत्येक कोटि का कुछ वर्णन क्रमशः नीचे दिया गया है।
- प्रथम संख्या (44) उन ऋचाओं की है जिनमें केवल एक ही संहित भाग है और वह भाग उदात्तांत है।
- दूसरी-। वे ऋचाएँ जिनका एक मात्र संहित भाग अनुदात्तांत है।
- उदात्तांत भाग के बाद उदात्तांत उत्तमार्ध वाली ऋचाएँ।
- उदात्तांत भाग के बाद अनुदात्तांत उत्तमार्ध।
- अनुदात्तांत भाग के बाद उदात्तांत उत्तमार्ध वाली ऋचाएँ।
- अनुदात्तांत भाग के बाद अनुदात्तांत उत्तमार्ध।
- उदात्तांत उत्तमेतरार्धों की ऐसी ऋचाओं में कुल संख्या जिन ऋचाओं का उत्तमार्ध उदात्तांत है।
- अनुदात्तांत उत्तमेतरार्धों की ऐसी ऋचाओं में कुल संख्या जिन ऋचाओं का उत्तमार्ध उदात्तांत है।
- उदात्तांत उत्तमेतरार्धों की ऐसी ऋचाओं में कुल संख्या जिन ऋचाओं का उत्तमार्ध अनुदात्तांत है।
- अनुदात्तांत उत्तमेतरार्धों की ऐसी ऋचाओं में कुल संख्या जिन ऋचाओं का उत्तमार्ध अनुदात्तांत है।
- उदात्तांत भाग के पश्चात् सभी उत्तमार्धों में से उदात्तांत उत्तमार्धों की संख्या का अनुपात।
- अनुदात्तांत भाग के पश्चात् सभी उत्तमार्धों में से उदात्तांत उत्तमार्धों की संख्या का अनुपात।
- उदात्तांत उत्तमार्ध के पूर्व उदात्तांत उत्तमेतरार्धों का अनुपात।
- अनुदात्तांत उत्तमार्ध के पूर्व उदात्तांत उत्तमेतरार्धों का अनुपात।
संख्याओं के विश्लेषण से ये कुछ प्रवृत्तियाँ स्पष्ट हैं-।
- ऋचाओं के संहित भागों के अंत में अनुदात्त स्वर होने की संभावना अधिक है। (कारण संभवतः यही है कि वाक्य के अंत में क्रियाएँ प्रायः अनुदात्तांत होती हैं, और संबोधन शब्द भी अनुदात्तांत होते हैं। पर केवल इसी कारण से यह प्रवृत्ति दिखती है, इसका प्रमाण देना अभी शेष है।)
- उत्तरार्ध के अंत में उदात्त स्वर होने की संभावना पूर्वार्ध की तुलना में अल्पतर है। (पूर्वोक्त कारण से।)
- तृतीय से षष्ठ संख्याओं का अध्ययन करने पर 95 प्रतिशत विश्वास के साथ हम यह कह सकते हैं कि यदि किसी पूर्व संहित भाग के अंत में उदात्त स्वर है तो उत्तरार्ध के अंत में उदात्त स्वर होने की संभावना बढ़ जाती है (https://online.stat.psu.edu/stat415/lesson/9/9.4).
सनमस्कार,
उज्ज्वल