ऋ॒चाम् अन्ते॑ स्व॒रस्य॒ प्रवृ॑त्तिः

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उज्ज्वल राजपूत

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Oct 12, 2021, 1:47:31 AM10/12/21
to Hindu-vidyA हिन्दुविद्या, bhAratIya-vidvat-pariShad भारतीय-विद्वत्परिषद्, shabda-...@googlegroups.com
प्राग् अपी॒यङ् कैश्चि॒द् विमृ॑ष्टा स्या॒त् तथापि॒ नाद्रा॑क्ष॒म् इति॒ प्रस्तौ॑मि कुतूह॒लिभ्यः॑।
This must have been discussed by others earlier, yet I haven't seen so presenting for those who might be interested.

अत्रार्धो॒ नाम॑ संहितापा॒ठे संहि॑तो भा॒गः।
Here ardha refers to each sandhied line in the saṃhitāpāṭha.

ए॒का॒किन॑ उ॒दात्ता॑न्ता उत्तमा॒र्धाः 44
ए॒का॒किनोऽनु॑दात्तान्ता उत्तमा॒र्धाः 119
उ॒दात्ते॑ पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑ उत्तमा॒र्धाः 417
उ॒दात्ते॑ पूर्व्या॒र्धे स॒त्यनु॑दात्ता उत्तमा॒र्धाः 1742
अनु॑दात्ते पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑ उत्तमा॒र्धाः 1433
अनु॑दात्ते पूर्व्या॒र्धे स॒त्यनु॑दात्ता उत्तमा॒र्धाः 6797
उ॒दात्ता॑न्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑न्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 420
उ॒दात्ता॑न्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यनु॑दात्तान्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 1749
अनु॑दात्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑न्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 1445
अनु॑दात्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यनु॑दात्तान्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 6869


उ॒दात्ते॑ पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु॑त्तमा॒र्धाना॑म् उदात्त॒त्वम् 0.1931
अनु॑दात्ते पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु॑त्तमा॒र्धाना॑म् उदात्त॒त्वम् 0.1741
उ॒दात्त॑ उत्तमा॒र्धे स॒त्य॑न्त्येतरा॒र्धाना॑म् उदात्त॒त्वम् 0.1936
अनु॑दात्त उत्तमा॒र्धे स॒त्य॑न्त्येतरा॒र्धाना॑म् उदात्त॒त्वम् 0.1738

उज्ज्वल राजपूत

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Oct 12, 2021, 2:52:13 AM10/12/21
to Hindu-vidyA हिन्दुविद्या, bhAratIya-vidvat-pariShad भारतीय-विद्वत्परिषद्, shabda-...@googlegroups.com
उ॒दा॒हर॑णानि-।

ए॒का॒किन॑ उ॒दात्ता॑न्ता उत्तमा॒र्धाः 44
पु॒ष्टिर्न र॒ण्वा क्षि॒तिर्न पृ॒थ्वी गि॒रिर्न भुज्म॒ क्षोदो॒ न श॒म्भु॥ १॰६५॰५॥


ए॒का॒किनोऽनु॑दात्तान्ता उत्तमा॒र्धाः 119
प॒श्वा न ता॒युं गुहा॒ चत॑न्तं॒ नमो॑ युजा॒नं नमो॒ वह॑न्तम्॥ १॰६५॰१॥


उ॒दात्ते॑ पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑ उत्तमा॒र्धाः 417
व॒यं शूरे॑भि॒रस्तृ॑भि॒रिन्द्र॒ त्वया॑ यु॒जा व॒यम्। सा॒स॒ह्याम॑ पृतन्य॒तः॥ १॰८॰४॥


उ॒दात्ते॑ पूर्व्या॒र्धे स॒त्यनु॑दात्ता उत्तमा॒र्धाः 1742
अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त। स दे॒वाँ एह व॑क्षति॥ १॰१॰२॥


अनु॑दात्ते पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑ उत्तमा॒र्धाः 1433
इन्द्र॑वायू इ॒मे सु॒ता उप॒ प्रयो॑भि॒रा ग॑तम्। इन्द॑वो वामु॒शन्ति॒ हि॥ १॰२॰४॥


अनु॑दात्ते पूर्व्या॒र्धे स॒त्यनु॑दात्ता उत्तमा॒र्धाः 6797
अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म्। होता॑रं रत्न॒धात॑मम्॥ १॰१॰१॥


उ॒दात्ता॑न्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑न्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 420
व॒यं शूरे॑भि॒रस्तृ॑भि॒रिन्द्र॒ त्वया॑ यु॒जा व॒यम्। सा॒स॒ह्याम॑ पृतन्य॒तः॥ १॰८॰४॥


उ॒दात्ता॑न्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यनु॑दात्तान्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 1749
अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त। स दे॒वाँ एह व॑क्षति॥ १॰१॰२॥


अनु॑दात्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑न्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 1445
इन्द्र॑वायू इ॒मे सु॒ता उप॒ प्रयो॑भि॒रा ग॑तम्। इन्द॑वो वामु॒शन्ति॒ हि॥ १॰२॰४॥


अनु॑दात्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यनु॑दात्तान्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 6869
अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म्। होता॑रं रत्न॒धात॑मम्॥ १॰१॰१॥

उज्ज्वल राजपूत

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Oct 12, 2021, 3:00:35 AM10/12/21
to Hindu-vidyA हिन्दुविद्या, bhAratIya-vidvat-pariShad भारतीय-विद्वत्परिषद्, shabda-...@googlegroups.com
दोषः॑ क्षम्यताम्। सं॒स्कृत्य॒ प्रस्तू॑यते-।
Sorry for a mistake. Here are the corrected examples and numbers:

ए॒का॒किन॑ उ॒दात्ता॑न्ता उत्तमा॒र्धाः 44
पु॒ष्टिर्न र॒ण्वा क्षि॒तिर्न पृ॒थ्वी गि॒रिर्न भुज्म॒ क्षोदो॒ न श॒म्भु॥ १॰६५॰५॥


ए॒का॒किनोऽनु॑दात्तान्ता उत्तमा॒र्धाः 119
प॒श्वा न ता॒युं गुहा॒ चत॑न्तं॒ नमो॑ युजा॒नं नमो॒ वह॑न्तम्॥ १॰६५॰१॥


उ॒दात्ते॑ पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑ उत्तमा॒र्धाः 417
व॒यं शूरे॑भि॒रस्तृ॑भि॒रिन्द्र॒ त्वया॑ यु॒जा व॒यम्। सा॒स॒ह्याम॑ पृतन्य॒तः॥ १॰८॰४॥


उ॒दात्ते॑ पूर्व्या॒र्धे स॒त्यनु॑दात्ता उत्तमा॒र्धाः 1742
अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त। स दे॒वाँ एह व॑क्षति॥ १॰१॰२॥


अनु॑दात्ते पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑ उत्तमा॒र्धाः 1433
इन्द्र॑वायू इ॒मे सु॒ता उप॒ प्रयो॑भि॒रा ग॑तम्। इन्द॑वो वामु॒शन्ति॒ हि॥ १॰२॰४॥


अनु॑दात्ते पूर्व्या॒र्धे स॒त्यनु॑दात्ता उत्तमा॒र्धाः 6797
अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म्। होता॑रं रत्न॒धात॑मम्॥ १॰१॰१॥


उ॒दात्ता॑न्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑न्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 420
व॒यं शूरे॑भि॒रस्तृ॑भि॒रिन्द्र॒ त्वया॑ यु॒जा व॒यम्। सा॒स॒ह्याम॑ पृतन्य॒तः॥ १॰८॰४॥


उ॒दात्ता॑न्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यनु॑दात्तान्ता उत्तमेतरा॒र्धाः
1445
इन्द्र॑वायू इ॒मे सु॒ता उप॒ प्रयो॑भि॒रा ग॑तम्। इन्द॑वो वामु॒शन्ति॒ हि॥ १॰२॰४॥


अनु॑दात्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यु१॒॑दात्ता॑न्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 1749
अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त। स दे॒वाँ एह व॑क्षति॥ १॰१॰२॥


अनु॑दात्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यनु॑दात्तान्ता उत्तमेतरा॒र्धाः 6869
अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म्। होता॑रं रत्न॒धात॑मम्॥ १॰१॰१॥




उ॒दात्ते॑ पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु॑त्तमा॒र्धाना॑म् उदात्त॒त्वम् 0.1931
अनु॑दात्ते पूर्व्या॒र्धे स॒त्यु॑त्तमा॒र्धाना॑म् उदात्त॒त्वम् 0.1741
उ॒दात्त॑ उत्तमा॒र्धे स॒त्यु॑त्तमेतरा॒र्धाना॑म् उदात्त॒त्वम् 0.2252
अनु॑दात्त उत्तमा॒र्धे स॒त्यु॑त्तमेतरा॒र्धाना॑म् उदात्त॒त्वम् 0.2029

vasantkumar bhatt

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Oct 12, 2021, 8:22:07 AM10/12/21
to bvpar...@googlegroups.com
सम्माननीय डो श्री उज्वल राजपूत जी, 
सादर नमस्कार ।
आपने ऋग्वेद संहिता की ऋचाओं के आदि एवं अन्त में स्थित उदात्त,  या अनुदात्त आदि का जो सांख्यिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है,  वह ध्यानाकर्षक है,  उपकारक बनेगा । लेकिन  - 1. प्रत्येक कोटि का सूत्रात्मक परिचय जो आपने दिया है,  उनका थोड़ा ओर भी विशदीकरण अपेक्षित है । तथा 2. इस विश्लेषण के आधार पर हम किस तरह के अनुमान निकाल सकेंगे  ? । कृपया अवगत कराएं ।
ससाधुवाद प्रणामाञ्जलि ,
वसन्त भट्ट 



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उज्ज्वल राजपूत

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Oct 13, 2021, 12:54:14 AM10/13/21
to bhAratIya-vidvat-pariShad भारतीय-विद्वत्परिषद्, Hindu-vidyA हिन्दुविद्या, shabda-...@googlegroups.com
आदरणीय श्री वसन्तकुमार महोदय जी!
प्रणाम।

संहित भागों की संख्या की दृष्टि से ऋग्वेद में तीन प्रकार की ऋचाएँ मिलती हैं।
एक संहित भाग। प॒श्वा न ता॒युं गुहा॒ चत॑न्तं॒ नमो॑ युजा॒नं नमो॒ वह॑न्तम्॥ १.६५.१॥
दो संहित भाग। अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म्। होता॑रं रत्न॒धात॑मम्॥ १.१.१॥
तीन संहित भाग। अ॒ग्निं होता॑रं मन्ये॒ दास्व॑न्तं॒ वसुं॑ सू॒नुं सह॑सो जा॒तवे॑दसं॒ विप्रं॒ न जा॒तवे॑दसम्। य ऊ॒र्ध्वया॑ स्वध्व॒रो दे॒वो दे॒वाच्या॑ कृ॒पा। घृ॒तस्य॒ विभ्रा॑ष्टि॒मनु॑ वष्टि शो॒चिषा॒जुह्वा॑नस्य स॒र्पिषः॑॥ १. १२७.१॥

अधिकतर ऋचाएँ दूसरे प्रकार की ही हैं।
यहाँ किसी भी ऋचा के अंतिम संहित भाग को उत्तमार्ध और अन्य भागों को उत्तमेतरार्ध कहा गया है।
प्रत्येक कोटि का कुछ वर्णन क्रमशः नीचे दिया गया है।
  1. प्रथम संख्या (44) उन ऋचाओं की है जिनमें केवल एक ही संहित भाग है और वह भाग उदात्तांत है।
  2. दूसरी-। वे ऋचाएँ जिनका एक मात्र संहित भाग अनुदात्तांत है।
  3. उदात्तांत भाग के बाद उदात्तांत उत्तमार्ध वाली ऋचाएँ।
  4. उदात्तांत भाग के बाद अनुदात्तांत उत्तमार्ध।
  5. अनुदात्तांत भाग के बाद उदात्तांत उत्तमार्ध वाली ऋचाएँ।
  6. अनुदात्तांत भाग के बाद अनुदात्तांत उत्तमार्ध।
  7. उदात्तांत उत्तमेतरार्धों की ऐसी ऋचाओं में कुल संख्या जिन ऋचाओं का उत्तमार्ध उदात्तांत है।
  8. अनुदात्तांत उत्तमेतरार्धों की ऐसी ऋचाओं में कुल संख्या जिन ऋचाओं का उत्तमार्ध उदात्तांत है।
  9. उदात्तांत उत्तमेतरार्धों की ऐसी ऋचाओं में कुल संख्या जिन ऋचाओं का उत्तमार्ध अनुदात्तांत है।
  10. अनुदात्तांत उत्तमेतरार्धों की ऐसी ऋचाओं में कुल संख्या जिन ऋचाओं का उत्तमार्ध अनुदात्तांत है।
  11. उदात्तांत भाग के पश्चात् सभी उत्तमार्धों में से उदात्तांत उत्तमार्धों की संख्या का अनुपात।
  12. अनुदात्तांत भाग के पश्चात् सभी उत्तमार्धों में से उदात्तांत उत्तमार्धों की संख्या का अनुपात।
  13. उदात्तांत उत्तमार्ध के पूर्व उदात्तांत उत्तमेतरार्धों का अनुपात।
  14. अनुदात्तांत उत्तमार्ध के पूर्व उदात्तांत उत्तमेतरार्धों का अनुपात।
संख्याओं के विश्लेषण से ये कुछ प्रवृत्तियाँ स्पष्ट हैं-।
  1. ऋचाओं के संहित भागों के अंत में अनुदात्त स्वर होने की संभावना अधिक है। (कारण संभवतः यही है कि वाक्य के अंत में क्रियाएँ प्रायः अनुदात्तांत होती हैं, और संबोधन शब्द भी अनुदात्तांत होते हैं। पर केवल इसी कारण से यह प्रवृत्ति दिखती है, इसका प्रमाण देना अभी शेष है।)
  2. उत्तरार्ध के अंत में उदात्त स्वर होने की संभावना पूर्वार्ध की तुलना में अल्पतर है। (पूर्वोक्त कारण से।)
  3. तृतीय से षष्ठ संख्याओं का अध्ययन करने पर 95 प्रतिशत विश्वास के साथ हम यह कह सकते हैं कि यदि किसी पूर्व संहित भाग के अंत में उदात्त स्वर है तो उत्तरार्ध के अंत में उदात्त स्वर होने की संभावना बढ़ जाती है (https://online.stat.psu.edu/stat415/lesson/9/9.4).
सनमस्कार,
उज्ज्वल

मंगल, 12 अक्तू॰ 2021 को 5:52 pm बजे को vasantkumar bhatt <bhatt...@hotmail.com> ने लिखा:

vasantkumar bhatt

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Oct 14, 2021, 12:03:10 PM10/14/21
to bvpar...@googlegroups.com
सम्माननीय श्री उज्ज्वल जी, 
सादर नमस्कार । 
आपने किया विश्लेषण और विशदीकरण बहुत उपयोगी सिद्ध होगा । इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ ।। अब, मेरे मन में आकारित हो रहे कुछ प्रश्न ऐसे हैं:- 1. अपौरुषेय मन्त्रों की बुनावट में उदात्तादि स्वरों के साथ साथ नियताक्षर पाद एवं छन्दों के वृत्त ध्यानास्पद हैं । तो, क्या आपके द्वारा किये गए विश्लेषण के साथ इन बिन्दुओं को जोड़ा जा सकता है  ?,   जैसे कि- एकादशाक्षर या अष्टाक्षर पाद वाले मन्त्रों में उदात्तादि स्वरों की योजना कैसी प्रतीत होती है  ? , 2. क्या अमुक ऋषिविशेष के मन्त्रों में अमुक उदात्तादि स्वरों  की ही योजना प्राप्त होती है  ? 3. किस मण्डल के मन्त्रों में उदात्तादि स्वरों की कौन सी विधा सविशेष मिलती है  ? ।।
आपके विश्लेषण को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे कुछ प्रश्नों पर सोचना मुझे आवश्यक लगता है ।
पुनरपि धन्यवाद एवं नमस्कार, 
वसन्त भट्ट के वन्दन 



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