आज ब्रह्मदेव शर्मा नहीं रहे

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AYUSH | adivasi yuva shakti

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Dec 7, 2015, 11:58:13 AM12/7/15
to AYUSH | adivasi yuva shakti

डाक्टर ब्रह्मदेव शर्मा गणितज्ञ थे . उन्होंने आईएएस की परीक्षा पास करी 
वे बस्तर के कलेक्टर बने  अबूझमाड़ नामक आदिवासी इलाके का विकास करने के लिए उन्होंने सरकारी खर्च पर सरकारी सुविधाओं से सजा धजा कर एक गाँव बसाया 
जिसमें पोस्ट आफिस, बैंक, ग्राम सेवक, पटवारी आवास, अस्पताल आदि सब बनाया गया 
लेकिन जब कलेक्टर बीडी शर्मा उस सरकारी आदर्श आदिवासी गाँव का उदघाटन करने गए तो उन्होंने देखा कि
उस जगह पहले से बसे हुए आदिवासी उस जगह को छोड़ कर और घने जंगल में चले गए थे 
इस घटना नें कलेक्टर बीडी शर्मा को आदिवासियों को समझने की रुची पैदा कर दी 
इसके बाद कलेक्टर बीडी शर्मा नें आदिवासी जीवन, उनकी संस्कृति , अर्थव्यवस्था को बहुत गहराई से समझा 
सरकार नें बस्तर में कमाई के लिए प्राकृतिक जंगल समाप्त कर के चीड के रोपण का प्लान बनाया तो कलेक्टर बीडी शर्मा नें उसे उठा कर रद्दी की टोकरी में फेंक दिया और कहा कि जंगल आदिवासी का जीवन है उसे सरकार के मुनाफे के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता 
बाद में ब्रह्मदेव शर्मा को भारत का आदिवासी आयुक्त बनाया गया .
वे पूर्वोत्तर विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे 
इसके बाद वे आदिवासी मामलों के सबसे मुखर योद्धा के रूप में उभरे 
बस्तर में आदिवासियों की मर्जी के खिलाफ जब सरकार नें १९९२ में लौह कारखाना लगाने की कोशिश करी तो ब्रह्मदेव शर्मा नें आदिवासियों का साथ दिया 
इस से चिढ कर गुंडों नें बस्तर के जगदलपुर नगर में ब्रह्मदेव शर्मा पर हमला किया उनके कपड़े फाड़ दिए और उनके गले में जूतों का हार डाल कर जुलूस निकाला 
इसके बाद ब्रह्मदेव शर्मा नें बस्तर जाना बंद कर दिया था 
सन दो हज़ार आठ में मैंने डाक्टर ब्रह्म देव शर्मा से आग्रह किया कि चलिए आप अब बस्तर चलिए 
ब्रह्मदेव शर्मा दंतेवाडा में हमारे आश्रम में रहे 
उन्हें लेकर मैं सलवा जुडूम कैम्प दिखाने ले गया 
ब्रह्म देव शर्मा नें मुझे खूब सारे किस्से सुनाये थे 
उसके बाद ब्रह्म देव शर्मा से कई बार आदिवासियों के आधिकारों के बारे में कानून सीखने का मौका मिला 
जिसने हमें अपना काम करने में बहुत ताकत दी 
आज ब्रह्मदेव शर्मा नहीं रहे 
आप लाखों आदिवासियों के दिलों में हमेशा रहेंगे 
अलविदा



Adivasi Ekta Parishad

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Dec 7, 2015, 11:59:53 AM12/7/15
to Adivasi Yuva Shakti
P-PESA Act तयार करण्यात दिवंगत बि. डी. शर्मा सह आदिवासी एकता परिषदेचे संस्थापक सदस्य व भुमीसेना अध्यक्ष सेनापती काका धोदडे यांनी अनेक महिने सोबत काम केले. काकांचे ते अतिशय जवळचे सहकारी होते. बस्तर, छोटा नागपूर, छत्तीसगड, झारखंड येथे काम करताना ते आदिवासी समाजाशी एकरुप झाले होते हे काकांच्या "ऊन्हाळ्यात खडकावर आणि थंडी लागल्यावर पेंढ्यांच्या ढिगात घुसून शांतपणे झोपणारा कलेक्टर प्रथमच पाहिला." या वाक्यातून आपल्याला कळून येईल. ज्या दिवशी P-PESA Act संसदेत मांडला गेला त्या वेळी बि. डी. शर्मा सह काका सुद्धा संसदेच्या गॅलरीतून संसदेच्या कामकाजावर बारकाईने लक्ष ठेवून होते. त्यावेळी बि. डी.  काकांना म्हणाले "काका आपल्या परीने संपूर्ण जोर लावून काम केले आहे आता संसद काय करते ते पाहुया." P-PESA Act पास झाला. ही स्वतंत्र भारतातील आदिवासी हक्काची पहाट व आदिवासी जागृतीचा सुरूवात होती... 5व्या अनुसूची वर चर्चा व आंदोलनास P-PESA चीच पाश्र्वभूमी आहे हे नाकारता येणार नाही. Scheduled Area(अनुसूचित क्षेत्र) साठी P-PESA अमलात येऊन आदिवासी हक्कांची अंमलबजावणी होत असताना बिगर अनुसूचित क्षेत्रातील म्हणजे नगरपालिका व महानगरपालिका क्षेत्रातील आदिवासी मात्र अजूनही वनहक्क , स्वयंशासन व इतर अनेक हक्कांचा पासून वंचित आहेत. अशा नगरपालिका क्षेत्रासाठी MESA कायदा लोकसभेत मंजूर होऊन राज्यसभेत अजूनही अडकून पडला आहे. आज संपूर्ण आदिवासी समुदायाच्या हक्काची जाणीव करून देणे आणि एकूण आदिवासी जमातींना 5वी अनुसूचित ऊल्लेखित तरतुदी जशाच्या तशा लागु करुन "आदिवासी स्वायत्त शासन व्यवस्थेचे स्वायत्त प्रदेश" निर्माण करणे ही दिवंगत बि. डी. शर्मा यांना सर्वोत्तम श्रद्धांजली ठरेल. आज सकाळी जेव्हा काकांना बि. डी. च्या निधनाची बातमी फोन वरुन कळवली तेव्हा त्यांच्या कातर झालेल्या आवाजावरून त्यांच्या गहि-या नात्याची कल्पना यावी. एक समर्पित सहकारी व सल्लागार काळाच्या पडद्याआड गेल्याचे दुःख काकांना लपवता आले नाही. अशा या साथी बि. डीं. ना आदिवासी एकता परिषदेचा अखेरचा जोहार जिंदाबाद 
|| लाल सलाम || :- विजेसर सरनोबत, आदिवासी एकता परिषद.


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Adivasi Ekta Parishad

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Dec 7, 2015, 12:06:09 PM12/7/15
to Adivasi Yuva Shakti
बी. डी. शर्मा नहीं रहे !
डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा जी को आदिवासी एकता परिषद कि ओर से भावपूर्ण श्रधांजलि !
       पेशे से भारतीय प्रशासनिक सेवा(आईएएस) के अधिकारी, शिक्षा से गणित में पीएचडी लेकिन ज़िंदगी भर आदिवासियों की लड़ाई लड़ने के कारण शोहरत पाने वाले डॉक्टर ब्रह्मदेव शर्मा नहीं रहे.
मध्य प्रदेश काडर के सेवा निवृत्त आईएएस अधिकारी डॉ. बीडी शर्मा का रविवार रात देहांत हो गया.
वे ग्वालियर में अपने घर पर दोनों बेटों और पत्नी के साथ थे. पिछले एक साल से वे बीमार थे और शारीरिक तौर पर भी काफ़ी कमज़ोर हो गए थे.
सोमवार दोपहर 12 बजे ग्वालियर के लक्ष्मीनगर शमशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
भारत में आदिवासियों की दुर्दशा और समस्या के मुद्दे पर वे लगातार आवाज़ उठाते रहे. लेकिन पिछले दिनों वो तब सुर्खियों में आए थे जब छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले के कलेक्टर को माओवादियों से छुड़ाने में उन्होंने प्रोफ़ेसर हरगोपाल के साथ अहम भूमिका निभाई थी.
डॉ. बीडी शर्मा को पिछले 40 साल से जानने वाली हिंदी की लेखिका सुमन केशरी ने अपनी फ़ेसबुक वॉल पर उनको याद करते हुए लिखा है, ''वो कहते थे अगर संविधान को सही में लागू कर दिया जाए तो भारत की समस्याएं हल हो जाएंगी, परेशानी यह है कि संविधान पुस्तक बन कर रह गई है.''
सुमन केशरी ने आगे लिखा है, ''एक गाँधीवादी के मुँह से ये सुनना- ग़ज़ब का अनुभव था वह, एक बेबसी का अहसास भी. सुमन अगर तुम वहाँ बस्तर में चली जाओ तो सोचोगी इन्होंने इतनी देर से बंदूक़ें क्यों उठाईं?..."
आदिवासियों के लिए कई सरकारी नीतियों के निर्धारण में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. 1966 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. शर्मा मौजूदा छत्तीसगढ़ (उस समय मध्य प्रदेश) के बस्तर ज़िले के कलेक्टर के तौर पर आदिवासियों के पक्ष मे खड़े रहने के लिए बहुत चर्चा में रहे.
आदिवासियों और दलितों के लिए सरकारी नीतियों को लेकर उनके और सरकार में मतभेद के कारण 1981 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी. लेकिन ग़रीबों, आदिवासियों और दलितों के लिए उनका संघर्ष जारी रहा. सरकार ने 1981 में ही उन्हें नॉर्थ ईस्ट युनिवर्सिटी का वाइस चांसलर बनाकर शिलॉंग भेजा.
अपने पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने वहां भी ख़ूब लोकप्रियता हासिल की थी.
बस्तर के कलेक्टर के तौर पर डॉ. शर्मा ने आदिवासियों के हक़ों के लिए काम किया.
1986-1991 तक वो अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति आयोग के आयुक्त रहे.
इस पद पर रहने वाले वो आख़िरी आयुक्त थे क्योंकि इसके बाद एससीएसटी राष्ट्रीय आयोग का गठन कर दिया गया था.
लेकिन अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के आयुक्त के तौर जो रिपोर्ट उन्होंने तैयार की उसे देश के आदिवासियों की भयावह स्थिति बताने वाले और उनकी सिफ़ारिशों को आदिवसियों को न्याय दिलाने की ताक़त रखने वाले दस्तावेज़ के रूप में देखा जाता है.
उन्होंने गांवों की ग़रीबी का राज़ बताते हुए किसानों की सुनियोजित लूट का विस्तृत ब्योरा दिया था.
1991 के बाद से वो पूरी तरह आदिवासियों और दलितों के अधिकार के लिए लड़ने लगे.
1991 में भारत जन आंदोलन और किसानी प्रतिष्ठा मंच का गठन कर उन्होंने आदिवासी और किसानों के मुद्दों पर राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान खींचा.
अक्सर सामाजिक आंदोलन पहले संस्था बनाते हैं फिर विचारों को फैलाने का काम करते हैं लेकिन डॉ. शर्मा के मुताबिक़ संस्था नहीं विचारों को पहले आमजन तक पहुंचना चाहिए.
"जल जंगल ज़मीन" का नारा दिया डॉ. शर्मा ने
इस संबंध में उनकी लिखी हुई किताबों ने भी अहम भूमिका अदा की और "गांव गणराज" की परिकल्पना ने ठोस रूप लिया जिसके तहत ये स्पष्ट हुआ कि गांव के लोग अपने संसाधनों का एक हिस्सा नहीं चाहते, वे उसकी मिल्कियत चाहते हैं.
इसी आंदोलन के तहत, "जल जंगल और ज़मीन" का नारा और विचार उभरा.
वो एक बेहतरीन लेखक भी थे और 'गणित जगत की सैर', 'बेज़ुबान', 'वेब ऑफ़ पोवर्टी', 'फ़ोर्स्ड मैरिज इन बेलाडिला', 'दलित्स बिट्रेड' आदि अनेक विचारणीय पुस्तक लिखी.
इसके साथ-साथ वो हस्तलिखित पत्रिका भूमिकाल का संपादन भी करते थे.

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चेतन Chetan

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Dec 8, 2015, 12:21:51 AM12/8/15
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भावपूर्ण श्रद्धांजली एक हिरा सितारोमे समा गया


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--
चेतन व. गुराडा.
Chetan V. Gurada.

Assistant Professor,
University Department of Physics (Autonomous),
University of Mumbai
Lokmanya Tilak Bhavan, Vidyanagari, Santacruz (E), Mumbai - 400 098.(India)
mobile - 9869197376
e-mail: che...@physics.mu.ac.in
           che...@mu.ac.in

Bhaiyaji Uike

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Dec 8, 2015, 1:03:51 AM12/8/15
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चेतन Chetan

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Dec 9, 2015, 1:47:25 AM12/9/15
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