दिनांक ५ फ़रवरी २०१४ के समाचार पत्रों में जाति आधारित आरक्षण समाप्त करने संबंधी बयान आया है. वक्तव्य देने वाला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन दिव्वेदी हैं. जाति आधारित आरक्षण भारतीय संविधान लागू होने के समय से ही उनके आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछडेपन के कारण लागू किया गया था. आरक्षण लागू होने के ६५ वर्ष पश्चात भी अनुसूचित जाति, जन जाति के लोग अभि भी विकास के मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाए हैं. आरक्षण का लाभ देश के १० प्रतिशत आदिवासियों में से एक-दो प्रतिशत लोग ही उठा पाए हैं. शेष लोगों कों किसी भी क्षेत्र में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है. संविधान द्वारा घोषित अनुसूचित क्षेत्र के आदिवासी अभी भी शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शासन द्वारा मिलने वाली अन्य सुविधाओं से वंचित हैं. उनकी माली हालत सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में देखी जा सकती है. श्री दिव्वेदी कों अपने बयान से पहले इन जगहों पर आदिवासियों की हालत देखने की जरूरत है.
संविधान के अनुच्छेद १४, १५, एवं १६ के अंतर्गत समानता के अधिकार के तहत अन्य सवर्ण जातियों के समानांतर पहुँचने के लिए यदि सरकारें दिल में हाथ रखकर काम करें तो भी उस स्तर पर पहुँचने के लिए कई वर्षों का समय और चाहिए इस विषय पर सभी राजनीतिक दलों कों गंभीरता से विचार करना चाहिए.