Green hunt / Naxalite operation के नाम पर कोई भी मरे पोलिस हो या भोले-भाले आदिवासी, इंसानियत के नाते ये ठीक नही है. लेकिन सवाल ये उठता है की, सरकार का ऐसा कौनसा खजाना इन आदिवासियों के यहाँ रखा हुआ है, जिसके लिए सरकार ने इतनी भारी मात्रा में पोलिस और सैनिक बल तैनात किये हुए है . अगर है भी तो वो किसी की नहीं है वो सिर्फ आदिवासियों की है. फिर क्यों कभी पोलिस वालो का तो कभी, इन भोले भाले आदिवासियों का नरसंहार किया जाता है (कुछ असामाजिक तत्त्व हो सकते है). चाहे पोलिस वाला मरे या ग्रामवासी मरे हर हाल में आदिवासी ही मारा जाता है. या फिर नरसंहार करके ऐसा कौनसा विकास करना चाहती है सरकार. कम से कम उनसे तो पूछो जिनके लिए विकास करना चाहते हो या विकास तो सिर्फ एक बहाना है हर हाल में आदिवासीयो को खत्म करना है.
ये कैसा विकास है ???? जिसमे शहर के चंद पूंजीपतियों के इशारों पर आदिवासियों का कानूनी तरीके से नरसंहार किया जाता है और समाज के जनप्रतिनिधी (दलाल) नमक तो समाज का खाते है लेकिन नमक हलाली अपने आकाओं की करते है . इनकी हालत पट्टे में बधे कुत्ते से ज्यादा नहीं है. आज आदिवासियों की बारी है कल किसी और की होगी ऐसा करते करते हर सामान्य वर्ग इन लालची पूंजीपतियो/राजनितिज्ञो की भेट चढ़ जाएगा.