Re: minimize the use of Chandrabindu, anuswara and nukta in Hindi

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V S Rawat

unread,
Oct 20, 2013, 10:40:06 PM10/20/13
to th, KEN
cc to technical hindi group also.
--

No,

Indian languages have the feature "as written, so spoken". Hence if a
word is having nuqta letter, its correct pronunciation will be different
from using that letter without nuqta. That will remove the basic nature
of Indian langauges that the same letter is pronounced two ways.

On the other hand, you can say that words with nuqta letters should get
nuqta removed and those nuqta-less words should be included in Hindi.
That would retain the basic property of Hindi or indian langauges.

However, then what is the fun of including those words in Hindi, because
Hindi words for same thing are mostly already existing in Hindi, so why
not use those words.

nuqta adds to the beauty of language so it should be retained and used.

--
Rawat



On 10/21/2013 7:42 AM, KEN wrote:
> To simplify language We should minimize the use of Chandrabindu,
> anuswara and nukta as much as we can for better Roman transliteration.
>
> If word has no other meaning why not spell an easy way for better
> transliteration in Roman as well as in other regional languages.
>
> Think of teaching Hindi an easy way to others!
>
> [क ख ग घ ङ] अङ्गद, पङ्कज, शङ्कर या अंगद, पंकज, शंकर
> [च छ ज झ ञ] अञ्चल, सञ्जय, सञ्चय या अंचल, संजय, संचय
> [ट ठ ड ढ ण] कण्टक, दण्ड, कण्ठ या कंटक, दंड, कंठ
> [त थ द ध न] अन्त, मन्थन, चन्दन या अंत, मंथन, चंदन
> [प फ ब भ म] कम्पन, सम्भव, चम्बल या कंपन, संभव, चंबल
> हालाकि (हालाँकि), होन्गे (होंगे), बहुसन्ख्यक (बहुसंख्यक), मानदन्ड (मानदंड), साथियों
> (साथियो), कंही (कहीं), टन्डन (टण्डन/टंडन), पहुन्च (पहुँच), वंस (वन्स
> फ़िर (फिर), सफ़लता (सफलता), अग़र (अगर), ज़नाब (जनाब)
>
> Via ITRANS
> [ka kha ga gha ~Na] a~Ngada, pa~Nkaja, sha~Nkara yA aMgada, paMkaja,
> shaMkara
> [cha Cha ja jha ~na] a~nchala, sa~njaya, sa~nchaya yA aMchala, saMjaya,
> saMchaya
> [Ta Tha Da Dha Na] kaNTaka, daNDa, kaNTha yA kaMTaka, daMDa, kaMTha
> [ta tha da dha na] anta, manthana, chandana yA aMta, maMthana, chaMdana
> [pa pha ba bha ma] kampana, sambhava, chambala yA kaMpana, saMbhava,
> chaMbala
>
> hAlAki (hAlA.Nki), honge (hoMge), bahusankhyaka (bahusaMkhyaka),
> mAnadanDa (mAnadaMDa), sAthiyoM (sAthiyo), kaMhI (kahIM), TanDana
> (TaNDana/TaMDana), pahuncha (pahu.Ncha), vaMsa (vansa
> fira (phira), safalatA (saphalatA), aGara (agara), XanAba (janAba)
>
> Words source:
> http://kaulonline.com/chittha/2006/06/chandrabindu-anuswar/#comment-3926

V S Rawat

unread,
Oct 20, 2013, 10:47:31 PM10/20/13
to KEN, th
cc: technical hindi group.

Same thing goes for chandrabindu and anuswara.

When they change the pronunciation of a letter and word, those should be
retained otherwise the basic nature of language will change.

Actually, chandrabindu has already been changed to anuswar for use with
top maatras where there was not much space left for putting full chandra
bindu clearly visible, so an anuswar bindu is put but that is pronounced
as chandrabindu. This entire practice is wrong as it changes the
structure of language that it is written different and is read differently.

The problem with original anuswar is that it represents five sounds.

same ं is used to denote these five letters ङ्, ञ्, ण्, न्, म्
So, it is confusing. These are independent letters of Hindi and each has
its unique sound, using same anuswar to shorten all of these is wrong
and it is leading to a loss of the different sounds of these letters and
just n and m sounds are being used.

I think the single anuswar should be changed to five anuswar symbols to
represent each of these five letter uniquely.

--
RAwat

Anubhav Chattoraj

unread,
Oct 20, 2013, 11:44:27 PM10/20/13
to technic...@googlegroups.com
यहाँ वर्तनी परिवर्तन की बात करने से लाखों लोग अपने लिखने का ढंग बदल तो नहीं देंगे।

बात उठी ही है तो कह दूँ कि ध्वन्यात्मक दृष्टि से हर आधुनिक भारतीय भाषा की वर्तनी में
एक बहुत बड़ी कमी है। कुछ व्यंजनवर्णों के बाद किसी स्वर का उच्चारण नहीं होता, लेकिन इन
वर्णों पर हलंत नहीं लगाया जाता। जैसे ध्वन्यात्मक रूप से इस पैराग्राफ़ की पहली पंक्ति ऐसे
लिखी जानी चाहिए: "बात् उठी ही है तो कॆह् दूँ कि ध्वन्यात्मक् दृश्टि से हर् आधुनिक्
भार्तीय भाशा की वर्तनी मेँ एक् बहुत् बड़ी कमी है।"

एक और बात। किसी भी भारतीय भाषा में श, ष और स तीनों नहीं पाए जातें, लेकिन हर
भाषा की वर्तनी में ये अक्षर संस्कृत-काल से ज्यों के त्यों पड़े हैं। ऋ का भी यहीं हाल है।

कुछ भाषाओं (मराठी, नेपाली इत्यादि) में तो इ/ई या उ/ऊ में ह्रस्व-दीर्घ का भेद ही नहीं
होता, फ़िर भी ह्रस्व और दीर्घ अक्षर दोनों वर्तनी में शामिल रहते हैं।

बंग्ला व असमिया में सिर्फ़ सात स्वर मिलते हैं, जिनमें से दो संस्कृत में नहीं पाए जाते। फ़िर
भी इन भाषाओं ने संस्कृत के ग्यारह स्वर-अक्षरों से नाता नहीं तोड़ा है। अपने दो विशेष स्वरों
को दर्शाने के लिए ये कोई न कोई जुगाड़ करते रहते हैं।

अभी अन्य भाषाओं की बात छोड़के सिर्फ़ हिंदी पर ध्यान देते हैं। हिंदी वर्तनी की कुछ ख़ास
कमियाँ निम्न हैं:

पंचमाक्षरों की बात करें तो ङ्, ञ्, और ण् सिर्फ़ क्रमशः कवर्ग, चवर्ग और टवर्ग के अक्षरों के
पहले अनुस्वार के रूप में ही मिलते हैं। इनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं हैं। कुछ लोग "रावण"
और "वाङ्मय" इत्यादि उदाहरण देंगे, लेकिन साधारण हिंदी-भाषी "रावण" का उच्चारण
"रावन" करता है और "वाङ्मय" का "वांगमय"। अन्य भाषाओं से आए "ङ" का भी "अनुस्वार-ग"
बन जाता है, जैसे बंग्ला शब्द "बाङाली" को "बंगाली" बना दिया गया है। आप अनुस्वार का
बहिष्कार करने की बात कर रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है इन तीन पंचमाक्षरों का बहिष्कार
करना चाहिए।

हिंदी में एक स्वर है जिसके लिए कोई अक्षर या मात्रा नहीं है। ये "कहना", "पहनना",
"चेहरा", "पहरा" इत्यादि शब्दों में "ह" के आसपास पाया जाता है।

हिंदी शब्दों के अंत में कभी ह्रस्व-इ या -उ नहीं मिलते। फ़िर भी "शक्ति", "व्यक्ति",
"वस्तु" इत्यादि के अंत में ह्रस्व अक्षर लिखे जाते हैं।

और शिरोरेखा के ऊपर वाले अक्षरों में चंद्रबिंदु के स्थान पर अनुस्वार लगाया जाता है, इस पर
तो पहले ही काफ़ी चर्चा हो चुकी है।

Hariraam

unread,
Oct 21, 2013, 2:15:56 AM10/21/13
to technic...@googlegroups.com
अनुभव जी,
 
आपने सही व व्यवहारिक तथ्य पेश किए हैं।
किन्तु
यदि अधिकांश ग्रामीण लोग
इन्द्र को इन्दर कहते हैं
रिक्शा को रिस्का कहते हैं
कुछ बच्चे बूढ़े 'निर्लिप्ता' का 'निलिता' बोलकर सरल उच्चारण करते है।
ग्रामीण बोली में "राम भात खात है", "सीता भात खात है", "वे लोगन भात खात हैं" जैसे प्रयोग बहुतायत से बोले जाते हैं, तो "खाता, खाती, खाते" शब्दों के प्रयोगों को हटा दिया जाना चाहिए?
 
अधिकांशतः उत्तर भारतीय लोग हिन्दी के शब्दों के अन्त में अ-युक्त व्यंजन का अ-रहित उच्चारण करते हैं, जबकि संस्कतनिष्ठ व्यक्ति, पूर्व भारतीय जनता, दक्षिण भारतीय जनता सही रीति "अ" ध्वनियुक्त व्यंजन का उच्चारण करते हैं, तो क्या यह हिन्दी की कमी है? या हिन्दी शब्दों को सही रीति न बोल पानेवालों की कमी है?
 
अधिकांश लोग "अपभ्रंश" प्रयोग करते हैं देशज शब्दों की भरमार है तो क्या भाषा एवं लिपि से "तत्सम" शब्दों को हटा देना चाहिए?
 
अधिकांश लोग 5 सितारा होटलों में खाना नहीं खा पाते तो क्या उन्हें हटा देना चाहिए?
 
कुछ गिने चुने वैदिक पंडित ही वैदिक मंत्रों का सही वि सिद्धि-दिला सकनेवाला उच्चारण कर पाते हैं तो उन्हें संसार से हटा देना चाहिए?
 
विभिन्न भौगोलिक कारणों से, सामयिक कारणों से और व्यक्तिगत कारणों से अधिकांश लोगों का उच्चारण कुछ न कुछ भिन्न होता है, तो क्या मूल ध्वनि के प्रतीक शब्दों को हटा दिया जाना चाहिए?
 
किसी समय में यदि किसी समाज के अधिकांश व्यक्ति असदाचारी हों तो सारे सदाचारी व्यक्तियों को संसार से हटा दिया जाना चाहिए?
हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>


2013/10/21 Anubhav Chattoraj <anubhav....@gmail.com>

Hariraam

unread,
Oct 21, 2013, 2:20:29 AM10/21/13
to technic...@googlegroups.com
अनुभव जी,
 
आपने सही व व्यवहारिक तथ्य पेश किए हैं।
किन्तु
यदि अधिकांश ग्रामीण लोग
इन्द्र को इन्दर कहते हैं
रिक्शा को रिस्का कहते हैं
कुछ बच्चे बूढ़े 'निर्लिप्ता' का 'निलिता' बोलकर सरल उच्चारण करते है।
ग्रामीण बोली में "राम भात खात है", "सीता भात खात है", "वे लोगन भात खात हैं" जैसे प्रयोग बहुतायत से बोले जाते हैं, तो "खाता, खाती, खाते" शब्दों के प्रयोगों को हटा दिया जाना चाहिए?
 
अधिकांशतः उत्तर भारतीय लोग हिन्दी के शब्दों के अन्त में अ-युक्त व्यंजन का अ-रहित उच्चारण करते हैं, जबकि संस्कतनिष्ठ व्यक्ति, पूर्व भारतीय जनता, दक्षिण भारतीय जनता सही रीति "अ" ध्वनियुक्त व्यंजन का उच्चारण करते हैं, तो क्या यह हिन्दी की कमी है? या हिन्दी शब्दों को सही रीति न बोल पानेवालों की कमी है?
 
अधिकांश लोग "अपभ्रंश" प्रयोग करते हैं देशज शब्दों की भरमार है तो क्या भाषा एवं लिपि से "तत्सम" शब्दों को हटा देना चाहिए?
 
अधिकांश लोग 5 सितारा होटलों में खाना नहीं खा पाते तो क्या उन्हें हटा देना चाहिए?
 
कुछ गिने चुने वैदिक पंडित ही वैदिक मंत्रों का सही वि सिद्धि-दिला सकनेवाला उच्चारण कर पाते हैं तो उन्हें संसार से हटा देना चाहिए?
 
विभिन्न भौगोलिक कारणों से, सामयिक कारणों से और व्यक्तिगत कारणों से अधिकांश लोगों का उच्चारण कुछ न कुछ भिन्न होता है, तो क्या मूल ध्वनि के प्रतीक शब्दों को हटा दिया जाना चाहिए?
 
किसी समय में यदि किसी समाज के अधिकांश व्यक्ति असदाचारी हों तो सारे सदाचारी व्यक्तियों को संसार से हटा दिया जाना चाहिए?
हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>


2013/10/21 Anubhav Chattoraj <anubhav....@gmail.com>
यहाँ वर्तनी परिवर्तन की बात करने से लाखों लोग अपने लिखने का ढंग बदल तो नहीं देंगे।

Vineet Chaitanya

unread,
Oct 21, 2013, 2:48:24 AM10/21/13
to technic...@googlegroups.com
अनुभव जी,

              प्रत्येक भाषा की अपनी स्वाभाविक प्रकृति होती है. उस दृष्टि से विचार करने पर मुझे लगता है कि भारतीय भाषाओं को जैसा लिखा जाता है वैसा बोलने का प्रयास करना चाहिये और अंग्रेजी जैसी भाषा को जैसा बोला जाता है वैसा लिखना चाहिये. किन्तु अभी तो अधिकांश "विद्वानों" की प्रवृत्ति उलटी गंगा बहाने की लग रही है.

         In other words, we need to understand our basic strengths and weaknesses. I believe our strength is logical nature of our scripts.

        मुझे अपनी भावना को स्पष्ट करने के लिये अंग्रेजी का सहारा लेना पडा है इस मेरी कमजोरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ.

सादर


2013/10/21 Anubhav Chattoraj <anubhav....@gmail.com>


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Anubhav Chattoraj

unread,
Oct 21, 2013, 2:58:32 AM10/21/13
to technic...@googlegroups.com
हरिराम जी,

आपको याद दिला दूँ कि हिंदी संस्कृत नहीं है, न ही अन्य भारतीय भाषाएँ संस्कृत हैं। अगर
सभी हिंदी-भाषी कुछ शब्दों में "अ" का उच्चारण नहीं करते, तो इसका अर्थ यही निकलता है
कि हिंदी में उन शब्दों में "अ" नहीं है।

भाषा का मूल और प्राकृतिक रूप मौखिक ही होता है। बच्चे स्वाभाविक भाव से ही मौखिक
भाषा सीख लेते हैं, लेकिन लिखना-पढ़ना इन्हें सिखाना पड़ता है। इस दृष्टि से लिखित भाषा
का धर्म है मौखिक भाषा को दर्शाना, मौखिक भाषा को लिखित भाषा के अनुकूल चलने की
कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। न ही भारतीय भाषाओं पर संस्कृत के नियम मानने की कोई बाध्यता है।

आप जिन बोलियों की बात कर रहे हैं, लगता है उनके क्रिया-शब्दों में कोई लिंग-वचन-भेद नहीं
है। इन बोलियों को लिखते समय अवश्य "खात" ही लिखना चाहिए, न कि "खाता" या
"खाती"। लेकिन मानक हिंदी में लिंग-वचन-भेद है, अतः आम तौर पर "खाता", "खाती" और
"खाते" स्थिति के अनुसार लिखे जाते हैं।

फ़ाइव-स्टार होटल से तुलना करने का क्या अर्थ निकलता है मुझे समझ में नहीं आ रहा। क्या आप
कह रहे हैं की लिखित भाषा सिर्फ़ फ़ाइव-स्टार होटल में खाने वालों की अमानत है?

आप जो भी तर्क कर रहे हैं, उन्हे "linguistic prescriptivism" कहा जाता है। विश्व के
सभी भाषा-वैज्ञानिक ऐसे तर्कों से असहमत हैं।
> <mailto:anubhav....@gmail.com>>
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> Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)" समूह की सदस्यता ली है.
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> technical-hin...@googlegroups.com को एक ईमेल भेजें.

Hariraam

unread,
Oct 21, 2013, 3:07:26 AM10/21/13
to technic...@googlegroups.com
हर व्यक्ति अपनी सुविधानुसार, अपनी क्षमतानुसार वाणी बोलने के लिए स्वतन्त्र है, किसी को कोई नहीं रोक सकता। किन्तु विविधता में एकता का एक सूत्र
भी मौजूद है।
 
हरिराम

Dhananjay Chaube

unread,
Oct 21, 2013, 3:25:33 AM10/21/13
to technic...@googlegroups.com
अनुभव जी की एक बात पर टिप्पणी करना चाहता हूँ।

वाराणसी के आस-पास के लोग मानक हिंदी और लोकभाषा भोजपुरी दोनों में ही 'रावण' उच्चरित करते हैं, 'रावन' नहीं। हिंदी एक विशाल भूभाग में बोली जाती है, हो सकता है कि किसी क्षेत्रविशेष के लोग किसी वर्ण का मानक उच्चारण न करते हों, लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि कहीं न कहीं लोग मानक उच्चारण भी करते हैं।


21 अक्तूबर 2013 12:37 pm को, Hariraam <hari...@gmail.com> ने लिखा:
हर व्यक्ति अपनी सुविधानुसार, अपनी क्षमतानुसार वाणी बोलने के लिए स्वतन्त्र है, किसी को कोई नहीं रोक सकता। किन्तु विविधता में एकता का एक सूत्र
भी मौजूद है।
 
हरिराम

--

(Dr.) Kavita Vachaknavee

unread,
Oct 21, 2013, 4:56:28 AM10/21/13
to technic...@googlegroups.com
आश्चर्य है कि लिखित भाषा-रूपों का महत्व केवल उच्चरित को अभिव्यक्त करने के अर्थ में लोग लेते हैं ! इस से बड़ी अल्पज्ञता क्या होगी ? 

bestregards.gif 
 सादर शुभेच्छु
- (डॉ.) कविता वाचक्नवी

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2013/10/21 Anubhav Chattoraj <anubhav....@gmail.com>
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narayan prasad

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Oct 21, 2013, 5:19:38 AM10/21/13
to Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी)
Members are requested not to post any messages further on this topic.
--- Narayan Prasad 

V S Rawat

unread,
Oct 21, 2013, 9:14:58 AM10/21/13
to technic...@googlegroups.com
Anubhav ji

आपकी पोस्ट को मोटा-मोटी जो समझ पाया हूँ, तो आप व्यापक हिन्दी भाषा की, बल्कि
स्थान विशिष्ट "एक्सेन्ट" की बात कर रहे हैं।

यूपी वाले ए का एक्सेन्ट लगा कर बोलते हैं जैसे बंगाली को ओ का एक्सेन्ट लगा कर बोलते हैं।

रहमान को यूपी वाले रेहेमान जैसा कुछ बोलेंगे, जबकि बंगाली लोग रोहोमॉन जैसा कुछ बोलेंगे।

जैसे मराठी लोग ऋषी वाले ऋ ृ में ऊ का एक्सेन्ट लगा कर बोलते हैं कृतिदेव को क्रुतिदेव जैसा
बोलते हैं

सबसे शुद्ध हिन्दी, बिना किसी भी एक्सेन्ट के, बिहार वाले बोलते हैं।

इस एकसेन्ट को भाषा के व्याकरण या कोडिंग में शामिल करने की कोई आवश्यकता नही है।

रावत
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