उनका घर मैतेइयों ने जला दिया है

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JanVikalp

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Jul 24, 2023, 8:46:47 PM7/24/23
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प्रमोद रंजन की डायरी के अंश

इंफाल का उनका घर मैतेइयों ने जला दिया है

10 मई,  2022
मणिपुर से रोज हिंसा और आगजनी की खबरें आ रही हैं।
मेरी एक मित्र का घर पूर्वी इंफाल में था। मणिपुर पुलिस बल में कार्यरत रहे उनके पति का निधन कई वर्ष पहले हो चुका है। वे स्वयं चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़ी पेशेवर हैं तथा अपने दो बच्चों-एक बेटा और एक बेटी- को पालते हुए स्वाभिमानपूर्वक जीवन जीती रही हैं।
आखिर उस इंफाल शहर में एक अकेली मां को क्या भय हो सकता है, जिसके बीचोबीच स्त्री सशक्तिकरण का अनूठा प्रतीक ‘इमा कैथल’ शान से देर शाम तक इठलाता रहता है। ‘इमा कैथल’ मणिपुरी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- मदर्स मार्केट। माता बाजार या कहें, अम्मा का बाजार। यह एक ऐसा बाजार है, जिसे सिर्फ महिलाएं चलाती हैं। इसे लगभग पांच सौ साल पहले 16वीं शताब्दी में महिलाओं द्वारा कुछ छोटी दुकानों के साथ शुरु किया गया था। आज यह एशिया का सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली महिला बाजार है।
इस बाजार की खास बात यह है कि यहां दुकानदार केवल और केवल महिलाएं ही हो सकती हैं। उनमें भी वही, जो शादी शुदा हों।
उस विशाल बाजार कॉम्लेक्स में लगभग 5000 महिलाएं दुकानदारी करती हैं। इन दुकानों में मछलियों, सब्जियों, मसालों, फलों से लेकर स्थानीय चाट तक न जाने कितनी तरह की चीजें मिलती हैं। पूर्वोत्तर भारत में महिलाएं मछली से लेकर सूअर तक मांस बेचते हुए दिखती हैं। बल्कि मांस की दुकानों को चलाते हुए शायद ही कोई पुरुष दिखाता है। वे ही इन्हें बिक्री के दौरान काटती भी हैं, जो मुझे जैसे उत्तर भारतीय को शुरु में अजूबा लगा था।
2019 में जब हम पहली बार इंफाल में मिले थे। उन्होंने अपनी कामचलताऊ हिंदी में मुझे इस बाजार का इतिहास बताया था। मणिपुर में पुराने समय में लुलुप-काबा यानी बंधुवा मजदूरी की प्रथा थी। इसके तहत पुरुषों को खेती करने और युद्ध लड़ने के लिए दूर भेज दिया जाता था। ऐसे में महिलाएं ही घर चलाती थी। खेतों में काम करती थी और बोए गए अनाज बेचती थीं। इस करण उन्होंने एक ऐसा बाजार निर्मित किया जहां केवल महिलाएं ही सामान बेचें। ब्रिटिश हुकूमत ने जब मणिपुर में जबरन आर्थिक सुधार लागू करने की कोशिश की तो इमा कैथल की इन साहसी महिलाओं ने उसका खुलकर विरोध किया। इन महिलाओं ने एक आंदोलन शुरू किया जिसे नुपी लेन, यानी ‘औरतों की जंग’ कहा गया। नुपी लें के तहत महिलाओं ने अंग्रेजों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लगातार विरोध-प्रदर्शन किए। माताओं का यह आंदोलन दूसरे विश्वयुद्ध तक चलता रहा।
मेरी मित्र कहना था कि इंफाल आने वाले पर्यटकों के लिए शायद इमा कैथल सिर्फ का कौतुहल की चीज हो। लेकिन हम मणिपुरियों के लिए यह मातृशक्ति का पर्याय है। उन्होंने बताया था कि आज भी यह बाजार सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर चर्चा के लिए जाना जाता है। स्थानीय लोग मणिपुर राजनीतिक-सामजिक मिजाज समझने और उनपर चर्चा के लिए भी यहां आते हैं।
हालांकि मेरी मित्र राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं रखतीं। उन्होंने स्वयं भी इसे स्पष्ट किया था कि बच्चों को अच्छी परवरिश दे सकूं उन्हें अच्छी शिक्षा दिला दूं और अपनी जिंदगी में पीछे छूट गई खुशियों में कुछ को कुछ क्षण के लिए ही जी लूं, इतना ही मेरे लिए काफी है।
3 मई को उन्हें खबर मिली कि उनकी कॉलोनी पर हमला होने वाला है। इससे पहले कि लोग कुछ सोच पाते, मैतेइयियों का एक समूह उनकी कॉलोनी में पहुंचा। उनमें सिर्फ युवक नहीं थे, बल्कि अधेड़ और किशोर उम्र की बच्चे भी शामिल थे। उनके पास अत्याधुनिक हथियार थे, वे दरवाजों को पीट रहे थे तथा जो भी कुकी दिख रहा था, उस पर हमला कर रहे थे। वे वहां से किसी तरह भागीं। उनके परिवार के साथ दर्जनों अन्य परिवार जान बचाने के लिए किसी तरह पूर्वी इंफाल के नागा बहुल इलाके में पहुंचे और स्थानीय लोगों की मौन-सहमति से लोडस्टार पब्लिक स्कूल में छिप गए। नागाओं पर उन्हें भरोसा था। उस स्कूल का परिसर बहुत विशाल था, जिसमें उस समय अनेक वाहनों को सुरक्षा की दृष्टि से रखा गया था।
उन्होंने चार लोंगों की हत्या होते अपने आंखों से देखा। वे सभी कूकी थे। वे वहां कुछ दिन रहीं। हर दिन वहां भी मैतेइियों का हमले की आशंका फिजा में तैरती रहती। उतने सारे लोग दम साधे वहां रहते ताकि बाहर आने जाने वालों को उनकी मौजूदगी का आभास न हों। कुछ दिन बाद सुरक्षा-बलों के ट्रकों में उन्हें वहां से निकाला गया और राहत-शिविर में पहुंचाया गया। वे अब अपनी किशोर उम्र की बेटी और जवान हो रहे बेटे साथ दिल्ली में रोजी-रोटी के संघर्ष में लगी हैं।
इंफाल का उनका घर मैतेइयों ने जला दिया है।
आज सुबह जब वे फोन पर उन घटनाओं के बारे में बता रहीं थीं, ताे मैं उनके स्वर में असायहता से भरा कंपन महसूस कर सकता था।

15 मई, 2023
इन दिनों असम के जिस कस्बे में रहता हूं, वहां से मणिपुर का प्रवेश द्वार, जिसे माओ गेट कहा जाता है, महज चार घंटे का रास्ता है।
मणिपुर से मेरा रिश्ता पुराना रहा है। किशोरावस्था में पहली बार एनसीएसी द्वारा आयोजित एक ट्रैकिंग कार्यक्रम में गया था। उन दिनों पटना में रहता था। उसके बाद दिल्ली में रहते हुए पूर्वोत्तरी राज्यों की यात्रा कार से की थी और उस समय भी मणिपुर में कई दिन रहा था। अब तो खैर, यह इतना करीब है कि सुबह नाश्ता घर में और लंच इंफाल में किया जा सकता है। पहले रास्ते बहुत खराब थे, अब कोलकात्ता से थाईलैंड तक के लिए एक प्रशस्त के हाईवे बन रहा है,जिसके रास्ते में मेरा यह कस्बा और मणिपुर भी आता है। उसके बाद हाईवे मोरेह बार्डर से म्यमार में प्रवेश करेगा और थाईलैंड की राजधानी बैंकाक तक जाएगा। मौजूदा केंद्र सरकार की कोशिश है कि पूर्वोत्तर को हाईवे से पाट दिया जाए। उनकी नजर में यही एकमात्र विकास है, जिससे पूर्वोत्तर के आदिवासियों को कथित मुख्य धारा में शामिल किया जा सकता है।
जब से मणिपुर में हिंसा शुरु हुई है, वहां की जमीनी हालत समझने की कोशिश कर रहा हूं। इस संबंध में मेरी मणिपुर में तीन परिचितों से बीच-बीच में बातचीत होती रही है। तीनों महिलाएं हैं, जिनमें से दो कूकी और एक मैतेई हैं।
हिंसा के पहले सप्ताह में ही दोनों कूकी महिलाओं को अपने परिवार के साथ मणिपुर छोड़कर भागना पड़ा है। इनमें से एक हिंसा के बाद अब अपनी किशोर उम्र की बेटी और जवान हो रहे बेटे साथ दिल्ली में रोजी-रोटी के संघर्ष में लगी हैं। दूसरी कूकी महिला चूरचांदपुर की हैं। उन्होंने गुवाहाटी में बसे अपने संबंधियों के घर शरण ले रखी है। तीसरी महिला, जो मैतेई हैं; इंफाल की रहने वाली हैं, उन्हें घर नहीं छोड़ना पड़ा है, लेकिन वे भी वहां भय के साये में जी रही हैं।
दोनों कूकी महिलाएं अक्सर मेरे व्हाट्स एप वहां हो रही क्रूर घटनाओं के वीडियो, फोटोग्राफ आदि भेजती रहती हैं तथा कूकी लोगों के बीच गाए जा रहे संघर्ष के गीतों, उनकी मार्मिक अपीलें आदि भेजती रहती हैं। मणिपुर में इंटरनेट पर प्रतिबंध है, ये वीडियो और अपीलें उनतक पता नहीं कैसे पहुंचती हैं। शायद मणिपुर से लगातार पलायन कर रहे कूकी लोग अपने साथ इन्हें लेकर आते हों।
उनके द्वारा दी सूचनाओं में मुख्य तौर पर मैतेइयों की क्रूरता और अत्याचारों का जिक्र होता है। वे जब किसी संगठन द्वारा वितरित पंपलेट या खबरों के लिंक आदि भेजती हैं तो उसमें कुछ राजनीतिक बातें भी होती हैं। मसलन, इनमें कहा गया होता है कि मैतेइयों के हिंसा करने वाले संगठनों को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और भाजपा से राज्य सभा सांसद, महाराजा सनाजाओबा लीशेम्बा का वरदहस्त प्राप्त है। कुछ पंपलेटों में यह भी बताया गया होता है कि किस प्रकार भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर भारत की सांप्रदायिक राजनीति को इस पहाड़ी राज्य में पहुंचाया है।
लेकिन मैतेई समुदाय से आने वाली महिला ऐसी कोई तस्वीर, वीडियो आदि नहीं भेजतीं और इस बारे में पूछने पर प्राय: सवालों से बचना चाहती हैं। आज जब मैंने उनसे कूकी लड़कियों पर मैतेइयों के अत्याचार बारे में पूछा तो उन्होंने छूटते ही कहा कि वे एक स्त्री होने नाते शर्मिंदा हैं।
मैंने उन्हें कहा कि मेरे पास कूकियों पर मैतेइयों के अत्याचार की कई कथाएं और वीडियो हैं। अगर उनके पास कूकियों द्वारा मैतेइयों पर किए गए अत्याचार के प्रमाण स्वरूप कुछ वीडियो-तस्वीरें आदि हों तो मुझे भेजें ताकि मैं अपने एक लेख में उनका भी जिक्र कर सकूं। पहले तो उन्होंने शंका जताई कि कहीं उन वीडियो के शेयर करने पर उनका नाम तो बाहर नहीं आएगा। मैंने जब उन्हें इस बारे में आश्वस्त किया तो उन्होंने कहा कि वे थोड़ी देर में इस बारे में बताएगीं। उन्होंने इस बीच शायद किसी से बात की और मुझे व्हाट्सएप किया कि उन वीडियोज को “किसी बाहरी के साथ शेयर करने की इजाजत नहीं है।” इस बारे में पूछने पर यह रोक किसने लगाई है, उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।
यह रोक उनके मैतेई समुदाय की ओर से भी हो सकती है। पिछले दिनों कई मैतेई लोगों और संगठनों पर झूठी खबरें, वीडियो फैलाने के आरोप में मुकदमे दर्ज हुए हैं।
मणिपुर की हालत को समझने के लिए मैंने मणिपुर के कुछ प्रमुख राजनेताओं और समाजकर्मियों से भी बात की है। उनसे जो सूचनाएं और विश्लेषण मुझे प्राप्त हुए, वे सभी उतनी ही हैं, जितने अखबारों में प्रकाशित हो चुकी हैं। पत्रकारिता के अपने अनुभव जानता हूं कि इन लोगों की बातचीत में उन्हीं बातों दुहराव होता है, जिसे सब पहले से जानते हैं। ऐसे मामलों में राजनेताओं की दिलचस्पी प्राय: अपना नाम प्रकाशित करवाने में, अपने आधार-क्षेत्र को इस माध्यम से अपनी पक्षधरता बताने में होती है। लेकिन हिंदी में लिखे जा रहे मेरे लेख से उनका वांछित पूरा नहीं हो सकता।
उपरोक्त महिलाएं मणिपुर की मेरी विभिन्न यात्राओं के दौरान मित्र बनीं थीं। राजनीति और समाजकर्म से उनका दूर--दूर तक नाता नहीं है। मुझे लगता है कि विभिन्न पैमानों में साधारण लगने वाली इन असाधरण महिलाओं से बातचीत ने मुझे जमीनी स्तर पर दोनों समुदायों की भावनाओं, प्रतिक्रियाओं और कार्रवाइयों में किस प्रकार का अंतर है, इसे समझने में बहुत मदद की है। ....

Dalit Dastak

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Jul 25, 2023, 6:02:11 AM7/25/23
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Vir Bharat Talwar

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Jul 26, 2023, 6:54:43 AM7/26/23
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आपकी डायरी के ये पृष्ठ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

Ish Mishra

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Jul 26, 2023, 6:55:20 AM7/26/23
to dial...@janvikalp.org
मर्मस्पर्शी विवरण

Ish Mishra 
Associate Professor
Dept. of Political Science
Hindu College, University of Delhi
Delhi


Special Coverage News

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Jul 27, 2023, 3:08:45 AM7/27/23
to dial...@janvikalp.org
इंफाल का उनका घर मैतेइयों ने जला दिया है

On Tue, Jul 25, 2023 at 3:32 PM Dalit Dastak <dalit...@gmail.com> wrote:


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Pramod Ranjan

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Jul 27, 2023, 3:10:49 AM7/27/23
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literature

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Jul 27, 2023, 3:10:50 AM7/27/23
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Pramod Kaunswal

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Jul 27, 2023, 3:10:50 AM7/27/23
to dial...@janvikalp.org
बहुत अच्छा लिखा है।

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dr. chanchalchauhan

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Jul 27, 2023, 7:37:49 AM7/27/23
to dial...@janvikalp.org
प्रमोद रंजन के लिखे से काफ़ी कुछ मणिपुर का यथार्थ सामने आ रहा है।
पहली तारीख (10 मई) में मेरे ख़याल से 2023 की जगह 2022 ग़लती से टाइप हो गया है।
आर एस एस और संघी गैंग हर जगह नफ़रत के बीज बो कर इस देश का कितना नुक़सान कर रहा है, मणिपुर की हिंसा इसका ही उदाहरण है।
चंचल चौहान

Pramod Ranjan

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Jul 27, 2023, 12:33:18 PM7/27/23
to dial...@janvikalp.org
धन्यवाद चंचल जी। हां, गलती 2022 हो गया है।



--
Dr Pramod Ranjan

Rabindranath Tagore School of Languages and Cultural Studies,
Assam University, INDIA

Delhi PUCL

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Jul 28, 2023, 12:05:50 AM7/28/23
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Very revealing and informative as to the prevailing situation. Thanks.
    N.D.Pancholi.

--

Ish Mishra

unread,
Jul 28, 2023, 12:05:56 AM7/28/23
to dial...@janvikalp.org
मणिपुर की हालत 2002 के गुजरात जैसी हो रही है, आदिवासियों की जमीनों के नीचे दबे खनिज खजाने पर कॉरपोरेटी शार्कों की निगाहें जमी हैं। मोदी ने अपने तीसरे शासनकाल की घोषणा तो कर ही दी है। या तो किसी बहाने चुनाव नहीं होंगे या मणिपुर और ज्ञानवापी को उछालकर 2024 के चुनाव जीतने की तिकड़म करेंगे। पूर्वोत्तर में आरएसएस का 50 साल का काम रंग ले आ रहा है, गृहयुद्ध सी स्थिति बनती दिख रही है। प्रमोद जी का लेख बहुत ही सूचनाप्रद है। 


Ish Mishra 
Associate Professor
Dept. of Political Science
Hindu College, University of Delhi
Delhi

Sneha Finny

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Aug 17, 2023, 9:24:40 AM8/17/23
to dial...@janvikalp.org
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On Thu, Jul 27, 2023 at 10:03 PM Pramod Ranjan <pra...@janvikalp.org> wrote:
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Ish Mishra

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Aug 17, 2023, 9:10:30 PM8/17/23
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मणिपुर का मौजूदा आरएसएस के सालों की अनवरत कड़ी मेहनत का नतीजा है


Ish Mishra 
Associate Professor
Dept. of Political Science
Hindu College, University of Delhi
Delhi

Sheel Sharma

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Aug 19, 2023, 9:09:14 AM8/19/23
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आपके लेख पढ़कर एहसास होता है कि आप जैसे पढ़े लिखे लोग भी अपनी दूषित मानसिकता और आरएसएस और संघ के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हो  

On Thu, Aug 17, 2023 at 6:54 PM Sneha Finny <sneha...@gmail.com> wrote:

dastak patrika

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Aug 20, 2023, 1:37:41 PM8/20/23
to dial...@janvikalp.org
shukriya pramod ji mai ise dastak ke liye le rahi hun

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Pramod Ranjan

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Aug 20, 2023, 2:11:43 PM8/20/23
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नमस्ते सीमा जी।
दस्तक तो प्रिंट में प्रकाशित होती है न? संभव हो तो अंक भेजिएगा।

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