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Muktkanth Ranjan

未读,
2024年5月22日 23:59:105月22日
收件人 JanVikalp

मंडल और कमंडल के बीच फंसे मोदी

रंजन कुमार सिंह

न तो मंडल का मुद्दा नया है और ना ही कमंडल का। जब से विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान किया तब से ही लालू और मुलायम और उनके बाद अखिलेश और तेजस्वी इसे थामे रहे हैं। वैसे तो नीतीश भी मंडल की ही उपज हैं पर उनकी पहचान अतिपिछड़ी जातियों को लेकर ज्यादा बनी है। जब देश में मंडल के सहारे राजनीति को साधा जा रहा था, ठीक उसी समय लालकृष्ण आडवाणी कमंडल थामकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश में थे। इतिहास साक्षी है कि कमंडल को कभी वैसी सफलता नहीं मिली, जैसा कि मंडल को। यहां तक कि नरेन्द्र मोदी कमंडल छोड़कर ही सत्ता तक पहुंचे। हालांकि यह दीगर बात है कि सत्ता पर काबिज होने के बाद उन्होंने देश के अधिसंख्यकों के हाथों में कमंडल धरा दिया।

मंडल के नाम पर राजनीति करने के बाद भी जनता दल कभी स्पष्ट बहुमत की सरकार नहीं बना सका। और कमंडल की राजनीति कर के तो अब तक कोई सरकार तक नहीं बना सका है। 2014 में मोदीजी यूपीए शासन के खिलाफ व्यापक जनाक्रोश के सहारे सत्ता में आए थे। हालांकि यूपीए के कुशासन के मुकाबले स्वच्छ विकल्प के तौर पर जनता ने उन्हें देखा था पर तब महंगाई और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर ही उन्होंने जनता का भरोसा जीता था।

पाँच साल बाद ही उन्होंने महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को परे कर के राष्ट्रवाद और मजबूत राष्ट्र को मुद्दा बनाया और उन्हें फिर से कामयाबी मिली। लोग उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखने लगे जो दुश्मन के घर में घुसकर उसे मार डालता है। मोदी बखूबी समझते हैं कि भारत जैसे देश में न तो भ्रष्टाचार और ना ही महंगाई बड़े मुद्दे के तौर पर लम्बे समय तक बने रह सकते हैं। और इसीलिए उन्होंने सत्ता हासिल करने के बाद कभी परवाह नहीं की कि लोग महंगाई या भ्रष्टाचार को लेकर क्या सोचते हैं। मोदी जानते हैं कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती और इस कारण वह हर बार हांडी ही बदल देते हैं। उनके महिमामंडन के इस दौर में लोग भूल जाते हैं कि हांडी ही तो बदली है, रसोइया तो वही है।

अब जब महंगाई और भ्रष्टाचार, ये दोनों ही मुद्दे पिटे-पिटाए हो चले हैं तो उन्होंने कमंडल को थामने का फैसला किया है। इसमें वह मंडल की छौंक भी लगाते रहे हैं। पर मंडल कभी भाजपा का स्वाभाविक मुद्दा नहीं रहा, इसलिए वह इसे लेकर संशय के घेरे में रहते रहे हैं। साथ ही कमंडल को लेकर उनकी असमंजस साफ नजर आती है। वह स्वयं को कभी तो सेक्यूलर साबित करना चाहते हैं जिसके लिए हिन्दू-मुस्लिम करना किसी अपराध से कम नहीं पर अगले पल ही वह हिन्दू-मुस्लिम करते नजर आने लगते हैं। दरअसल, अधिसंख्य आबादी के हाथों में कमंडल थमा देने के बाद भी उन्हें भरोसा नहीं है कि यह कार्ड इतना दमदार है कि उन्हें 400 सीटें दिला पाए। और अब तो शायद उन्हें अपनी कुर्सी पर खतरा मंडराता भी दिखने लगा है। ऐसे में उनका एक पैर नाव पर और दूसरा पैर जमीन पर नजर आ रहे हैं और असमंजस की यही स्थिति अब उनकी पार्टी के लिए भी भारी पड़ने लगी है। वैसे यहां यह कहना जरूरी होगा कि आज की राजनीति में मोदी अकेले नेता हैं, जिनका अपना वोट बैंक है जिसमें सेंध मारना किसी अन्य व्यक्ति या दल के लिए मुश्किल हो रहा है। यह वोट बैंक अब घट रहा है, यह दीगर बात है।

साफ-साफ लगने लगा है कि हिन्दू-मुस्लिम कार्ड से कहीं ज्यादा भरोसा उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वियों की कमजोरियों पर है और इसीलिए वह हरेक मंच से उनके लिए झूठ-सच का ताना-बाना बुन रहे हैं। पर चुनावी सभाओं में उनसे एक के बाद एक गलतियां भी हो रही हैं और पहली बार विपक्ष उनकी गलतियों को आधार बनाकर उन्हें मात देता दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि अब उन्हें चुनावी सभाओं से भी ज्यादा आसरा इंटरव्यू का है। सब जानते हैं कि इंटरव्यू को बाद में काट-छांटकर व्यवस्थित रूप दिया जा सकता है और इसीलिए इन दिनों वह यही करते नजर आ रहे हैं। कहा तो यह तक जा रहा है कि कमरा उनका, कैमरा उनका। सवाल उनका, जवाब उनका। मीडिया वाले बस रोल अदा करने के लिए बुला लिए जाते हैं और बदले में पीएमओ उन्हें बना-बनाया प्रोग्राम थमा देता है।

ran...@ranjanksingh.com

JC News

未读,
2024年5月23日 23:44:425月23日
收件人 dial...@janvikalp.org

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