aao ek schchi kahani batata hu

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uday pal

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21 Jul 2011, 01:01:1821/07/2011
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aao ek schchi kahani batata hu
 
 
 
अपनी पुस्तक "द नेहरू डायनेस्टी" में लेखक के.एन.राव (यहाँ उपलब्ध है) लिखते हैं....ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर । यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी माता का नाम था, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी । कमला शुरु से ही इन्दिरा के फ़िरोज से विवाह के खिलाफ़ थीं... क्यों ? यह हमें नहीं बताया जाता...लेकिन यह फ़िरोज गाँधी कौन थे ? फ़िरोज उस व्यापारी के बेटे थे, जो "आनन्द भवन" में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था...नाम... बताता हूँ.... पहले आनन्द भवन के बारे में थोडा सा... आनन्द भवन का असली नाम था "इशरत मंजिल" और उसके मालिक थे मुबारक अली... मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे...खैर...हममें से सभी जानते हैं कि राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं... और अधिकतर परिवारों में दादा और पिता का नाम ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, बजाय नाना या मामा के... तो फ़िर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था.... किसी को मालूम है ? नहीं ना... ऐसा इसलिये है, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान, एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाय करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में... नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया... फ़िरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था "घांदी" (गाँधी नहीं)... घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था...विवाह से पहले फ़िरोज गाँधी ना होकर फ़िरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था...हमें बताया जाता है कि राजीव गाँधी पहले पारसी थे... यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है । इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं । शांति निकेतन में पढते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था... अब आप खुद ही सोचिये... एक तन्हा जवान लडकी जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पडी़ हुई हों... थोडी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी, और विपरीत लिंग की ओर क्यों ना आकर्षित होगी ? इसी बात का फ़ायदा फ़िरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फ़ुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली (नाम रखा "मैमूना बेगम")

 

         नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए, लेकिन अब क्या किया जा सकता था...जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने ताबडतोड नेहरू को बुलाकर समझाया, राजनैतिक छवि की खातिर फ़िरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले.. यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म बदलने के सिर्फ़ नाम बदला जाये... तो फ़िरोज खान (घांदी) बन गये फ़िरोज गाँधी । और विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक कहीं नहीं किया, और वे महात्मा भी कहलाये...खैर... उन दोनों (फ़िरोज और इन्दिरा) को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया, ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक (?) का भ्रम बना रहे । इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक "रेमेनिसेन्सेस ऑफ़ थे नेहरू एज" (पृष्ट ९४ पैरा २) (अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित) में लिखते हैं कि "पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी, जबकि उस समय यह अवैधानिक था, कानूनी रूप से उसे "सिविल मैरिज" होना चाहिये था" । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फ़िरोज अलग हो गये थे, हालाँकि तलाक नहीं हुआ था । फ़िरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे, और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे । तंग आकर नेहरू ने फ़िरोज का "तीन मूर्ति भवन" मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मथाई लिखते हैं फ़िरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बडी़ राहत मिली थी । १९६० में फ़िरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी, जबकि वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे । अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी पत्रकारों और इन्दिरा गाँधी के फ़िरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी (या श्रीमती फ़िरोज खान) का दूसरा बेटा अर्थात संजय गाँधी, फ़िरोज की सन्तान नहीं था, संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस का बेटा था । संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था, अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था । ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था (इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था) । अब संयोग पर संयोग देखिये... संजय गाँधी का विवाह "मेनका आनन्द" से हुआ... कहाँ... मोहम्मद यूनुस के घर पर (है ना आश्चर्य की बात)... मोहम्मद यूनुस की पुस्तक "पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स" में बालक संजय का इस्लामी रीतिरिवाजों के मुताबिक खतना बताया गया है, हालांकि उसे "फ़िमोसिस" नामक बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता) गाफ़िल रहें.... मेनका जो कि एक सिख लडकी थी, संजय की रंगरेलियों की वजह से गर्भवती हो गईं थीं और फ़िर मेनका के पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी, फ़िर उनकी शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर "मानेका" किया गया, क्योंकि इन्दिरा गाँधी को "मेनका" नाम पसन्द नहीं था (यह इन्द्रसभा की नृत्यांगना टाईप का नाम लगता था), पसन्द तो मेनका, मोहम्मद यूनुस को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम लडकी संजय के लिये देख रखी थी
 
 
       फ़िर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ़ एक तौलिये में विज्ञापन किया था । आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी । ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गाँधी को उसके असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस थी, वरना क्या कारण था कि संजय के विशेष नसबन्दी अभियान (जिसका मुसलमानों ने भारी विरोध किया था) के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी, और संजय की मौत के तत्काल बाद काफ़ी समय तक वे एक चाभियों का गुच्छा खोजती रहीं थी, जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे...। (संजय गाँधी के तीन अन्य मित्र कमलनाथ, अकबर अहमद डम्पी और विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों "चाण्डाल चौकडी" कहलाते थे... इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत मशहूर हो चुके हैं जैसे कि अंबिका सोनी और रुखसाना सुलताना [अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ] के साथ इन लोगों की विशेष नजदीकियाँ....)एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ २०६ पर लिखते हैं - "१९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था । वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे । वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थी । नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए । चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था, नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये । मथाई के शब्दों में - एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही जवान, खूबसूरत और दिलकश थी - । एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये, नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया, और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं । नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया । उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कॉन्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया । उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी । उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं, पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया ।
 
 
 
 
               मथाई लिखते हैं - मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफ़ी कोशिश की, लेकिन कॉन्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस, जो कि एक विदेशी महिला थी, बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा.....लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कैथोलिक संस्कारों में बडा करूँ, चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो.... लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था.... खैर... हम बात कर रहे थे राजीव गाँधी की...जैसा कि हमें मालूम है राजीव गाँधी ने, तूरिन (इटली) की महिला सानिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना तथाकथित पारसी धर्म छोडकर कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था । राजीव गाँधी बन गये थे रोबेर्तो और उनके दो बच्चे हुए जिसमें से लडकी का नाम था "बियेन्का" और लडके का "रॉल" । बडी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिये राजीव-सोनिया का हिन्दू रीतिरिवाजों से पुनर्विवाह करवाया गया और बच्चों का नाम "बियेन्का" से बदलकर प्रियंका और "रॉल" से बदलकर राहुल कर दिया गया... बेचारी भोली-भाली आम जनता !

प्रधानमन्त्री बनने के बाद राजीव गाँधी ने लन्दन की एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था । हमें बताया गया है कि राजीव गाँधी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक थे, यह अर्धसत्य है... ये तो सच है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे, लेकिन उन्हें वहाँ से बिना किसी डिग्री के निकलना पडा था, क्योंकि वे लगातार तीन साल फ़ेल हो गये थे... लगभग यही हाल सानिया माईनो का था...हमें यही बताया गया है कि वे भी केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की स्नातक हैं... जबकि सच्चाई यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे केम्ब्रिज में पढने जरूर गईं थीं लेकिन केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं । सोनिया गाँधी केम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा माँगी गई जानकारी के तहत खुद सोनिया गाँधी ने मुहैया कराई है, उन्होंने बडे ही मासूम अन्दाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे केम्ब्रिज की स्नातक हैं, अर्थात उनके चमचों ने यह बेपर की उडाई थी)। क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीतिरिवाजों के तहत किया गया, ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से । इसी नेहरू खानदान की भारत की जनता पूजा करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ताधर्ता है और "रॉल" को भारत का भविष्य बताया जा रहा है । मेनका गाँधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथोंहाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं, इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली हैं....और यदि कोई सानिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनीबेसेण्ट से करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है और हिन्दुस्तान की बदकिस्मती पर सिर धुनना ही होगा...
 
 
               


--
 
Regards
 
UDAY KUMAR PAL
 
System Engineer

M.L.Verma Krant

unread,
21 Jul 2011, 02:56:3721/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
उदय पाल जी मैंने अपनी पुस्तक "स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास' में इससे भी अधिक प्रमाणिक तथ्य दिये हैं जिन्हें पढ़कर दो ही व्यक्ति बिस्मिल (घायल) हुए एक बाबा रामदेव और दुसरा भाई राजीव दीक्षित. अफ़सोस की इनमें से राजीव भाई नहीं रहे मुझे तो उनकी मौत भी एक साजिश लगती है.
2011/7/21 uday pal <uday....@gmail.com>

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# ग्रुप सदस्य संख्या १९००
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# आपके द्वारा भेजे गए ईमेल को हम http://sachchadil.blogspot.com
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sandesh

unread,
21 Jul 2011, 06:03:0721/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
नमस्कार वर्माजी
आप की पुस्तक क्या अंग्रेजी में भी उपलब्ध है?
दूसरी बात ये भी बताइए की क्या यह पुस्तक ऑनलाइन भी है?
इसका पूरा विवरण आप या तो ग्रुप पर दें या फिर मुझे व्यक्तिगत मेल करें.
मेरा ईमेल है
धन्यवाद के साथ
सन्देश

Vaishali Vaidya

unread,
21 Jul 2011, 15:42:3121/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
 
 ye jo mail me likha hai kya wo sach mein sach hai? aapko kahanse mili aisi information? it is horrible. meine abhi pura padha bhi nahi hai. ya padha bhi nahi  ja raha hai.
 
agar aise kucch kisi ke barame afwah phailane ke liye kiya - likha  gaya to ye bahut jyada buri bat hogi. aur agar ye sach hai - sahi me to it is simply horrible.
 
abhi tak kahin bhi - kisi channel ko - newspaper- opposition party ko iske bareme kabhi kaise kucch pata nahi chala?
 
very difficult to believe.  horrible if it is true. koi horror movie dekhke bhi kabhi aise nahi laga. meine itni horrible story meri jindagi me ajtak nahi padhi.
 
vaishali

2011/7/21 uday pal <uday....@gmail.com>

Dr. Ashutosh vajpeyee

unread,
21 Jul 2011, 22:45:0021/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
आप तो बेकार में भावुक हो गए बंधुवर! ऐसी देशद्रोह कि कहानियाँ कांग्रेस के इतिहास में भरी पड़ी है. विश्वास कीजिये जबकि प्रमाण आपके सामने है
डॉ आशुतोष वाजपेयी

Kedar Nath

unread,
21 Jul 2011, 23:33:4521/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
Bahut hi satya hain ye sabhi tathya aur koi jyada hairani nahin hui.......aap agar aur kaali kartootein dekhna chahte hain to jara khojiye ki Dr Ambedkar ki likhi putakon par aaj bhi sarkar ne pabandi kyun laga rakhi hai? kaunsa dar hai is sarkaar ko? ye desh virodhi hi nahi deshi virodhi bhi hai?

Janjagran karte rahiye sree.......maloom hai aapko Google par prssure dalvaya ja raha hai ki vah sarkar khilaaf bolne wale blogs ko band kar de. Lekin Google Amerki company hai aur usne dabav ke aage abhi ghootne nahin teke hain.

2011/7/22 Dr. Ashutosh vajpeyee <ashutosh...@gmail.com>
आप तो बेकार में भावुक हो गए बंधुवर! ऐसी देशद्रोह कि कहानियाँ कांग्रेस के इतिहास में भरी पड़ी है. विश्वास कीजिये जबकि प्रमाण आपके सामने है
डॉ आशुतोष वाजपेयी

sandesh

unread,
22 Jul 2011, 02:03:2222/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
there is nothing wrong in this information. students of Bharat were never taught the real history of the nation.
this is the right time to rewrite the history of Bharat.
actually, this report originally was in english and few days back, i posted it in some groups.
so, here goes the english version:
 
Nehru Dynasty
Harmohan Singh Walia
 
At the very beginning of his book, "The Nehru Dynasty", astrologer K. N. Rao mentions the names ofJawahar Lal's father and grandfather. Jawahar Lal's father was believed to be Moti Lal and Moti Lal's father was one Gangadhar Nehru. And we all know that Jawahar Lal's only daughter was Indira Priyadarshini Nehru; Kamala Nehru was her mother, who died in Switzerland of tuberculosis. She was totally against Indira's proposed marriage with Feroze. Why? No one tells us that! Now, who is this Feroze? We are told, by many that he was the son of the family grocer. The grocer supplied wines, etc. to Anand Bhavan, previously known as Ishrat Manzil, which once belonged to a Muslim lawyer named Mobarak Ali. Moti Lal was earlier an employee of Mobarak Ali. What was the family grocer's name?
 
One frequently hears that Rajiv Gandhi's grandfather was Pandit Nehru. But then we all know that everyone has two grandfathers, the paternal and the maternal grandfathers. In fact, the paternal grandfather is deemed to be the more important grandfather in most societies. Why is it then nowhere we find Rajiv Gandhi's paternal grandfather's name? It appears that the reason is simply this. Rajiv Gandhi's paternal grandfather was a Muslim gentleman from the Junagadh area of Gujarat. This Muslim grocer by the name of Nawab Khan had married a Parsi woman after converting her to Islam. This is the source where from the myth of Rajiv being a Parsi was derived. Rajiv's father Feroze was Feroze Khan before he married Indira, against Kamala Nehru's wishes. Feroze's mother's family name was Ghandy, often associated with Parsis and this was changed to Gandhi, sometime before his wedding with Indira, by an affidavit.
 
The fact of the matter is that (and this fact can be found in many writings) Indira was very lonely. Chased out of the Shantiniketan University by Guru Dev Rabindranath himself for misdemeanor, the lonely girl was all by herself, while father Jawahar was busy with politics, pretty women and illicit sex; the mother was in hospital. Feroze Khan, the grocer's son was then in England and he was quite sympathetic to Indira and soon enough she changed her religion, became a Muslim woman and married Feroze Khan in a London mosque. Nehru was not happy; Kamala was dead already or dying. The news of this marriage eventually reached Mohandas Karamchand Gandhi. Gandhi urgently called Nehru and practically ordered him to ask the young man to change his name from Khan to Gandhi. It had nothing to do with change of religion, from Islam to Hinduism for instance. It was just a case of a change of name by an affidavit. And so Feroze Khan became Feroze Gandhi. The surprising thing is that the apostle of truth, the old man soon to be declared India's Mahatma and the 'Father of the Nation' didn't mention this game of his in the famous book, 'My Experiments with Truth'. Why?
 
When they returned to India, a mock 'Vedic marriage' was instituted for public consumption. On this subject, writes M. O. Mathai (a longtime private secretary of Nehru) in his renowned (but now suppressed by the GOI) 'Reminiscences of the Nehru Age' on page 94, second paragraph: "For some inexplicable reason, Nehru allowed the marriage to be performed according to Vedic rites in 1942. An inter-religious and inter-caste marriage under Vedic rites at that time was not valid in law. To be legal, it had to be a civil marriage.
 
It's a known fact that after Rajiv's birth Indira and Feroze lived separately, but they were not divorced. Feroze used to harass Nehru frequently for money and also interfere in Nehru's political activities. Nehru got fed up and left instructions not to allow him into the Prime Minister's residence Trimurthi Bhavan. Mathai writes that the death of Feroze came as a relief to Nehru and Indira. The death of Feroze in 1960 before he could consolidate his own political forces is itself a mystery. Feroze had even planned to remarry.
 
Those who try to keep tabs on our leaders in spite of all the suppressions and deliberate misinformation are aware of the fact that the second son of Indira (or Mrs. Feroze Khan) known as Sanjay Gandhi was not the son of Feroze. He was the son of another Moslem gentleman, Mohammad Yunus. Here, in passing, we might mention that the second son was originally named Sanjiv. It rhymed with Rajiv, the elder brother's name. When he was arrested by the British police in England and his passport impounded for having stolen a car it was changed to Sanjay. Krishna Menon was then India's High Commissioner in London. He offered to issue another passport to the felon who changed his name to Sanjay.
 
Incidentally, Sanjay's marriage with the Sikh girl Menaka (now they call her Maneka for Indira Gandhi found the name of Lord Indra's court dancer rather offensive!) took place quite surprisingly in Mohammad Yunus' house in New Delhi. And the marriage with Menaka who was a model (She had modeled for Bombay Dyeing wearing just a towel) was not so ordinary either. Sanjay was notorious in getting unwed young women pregnant. Menaka too was rendered pregnant by Sanjay. It was then that her father, Colonel Anand, threatened Sanjay with dire consequences if he did not marry her daughter. And that did the trick. Sanjay married Menaka. It was widely reported in Delhi at the time that Mohammad Yunus was unhappy at the marriage of Sanjay with Menaka; apparently he had wanted to get him married with a Muslim girl of his choice.
 
It was Mohammad Yunus who cried the most when Sanjay died in the plane accident. In Yunus' book, 'Persons, Passions & Politics' one discovers that baby Sanjay had been circumcised following Islamic custom, although the reason stated was phimosis. It was always believed that Sanjay used to blackmail Indira Gandhi and due to this she used to turn a blind eye when Sanjay Gandhi started to run the country as though it were his personal fiefdom. Was he black mailing her with the secret of who his real father was? When the news of Sanjay's death reached Indira Gandhi, the first thing she wanted to know was about the bunch of keys which Sanjay had with him.
 
Nehru was no less a player in producing bastards. Atleast one case is very graphically described by M. O. Mathai in his "Reminiscences of the Nehru Age", page 206. Mathai writes: "In the autumn of 1948 (India became free in 1947 and a great deal of work needed to be done) a young woman from Benares arrived in New Delhi as a sanyasin named Shraddha Mata (an assumed and not a real name). She was a Sanskrit scholar well versed in the ancient Indian scriptures and mythology. People, including MPs, thronged to her to hear her discourses. One day S. D. Upadhyaya, Nehru's old employee, brought a letter in Hindi from Shraddha Mata. Nehru gave her an interview in the PM's house. As she departed, I noticed (Mathai is speaking here) that she was young, shapely and beautiful. Meetings with her became rather frequent, mostly after Nehru finished his work at night. During one of Nehru's visits to Lucknow, Shraddha Mata turned up there, and Upadhyaya brought a letter from her as usual. Nehru sent her the reply; and she visited Nehru at midnight.
 
"Suddenly Shraddha Mata disappeared. In November 1949 a convent in Bangalore sent a decent looking person to Delhi with a bundle of letters. He said that a young woman from northern India arrived at the convent a few months ago and gave birth to a baby boy. She refused to divulge her name or give any particulars about herself. She left the convent as soon as she was well enough to move out but left the child behind. She however forgot to take with her a small cloth bundle in which, among other things, several letters in Hindi were found. The Mother Superior, who was a foreigner, had the letters examined, and was told they were from the Prime Minister. The person who brought the letters surrendered them. "I (Mathai) made discreet inquiries repeatedly about the boy but failed to get a clue about his whereabouts. Convents in such matters are extremely tightlipped and secretive. Had I succeeded in locating the boy, I would have adopted him. He must have grown up as a Catholic Christian blissfully ignorant of who his father was."
 
Coming back to Rajiv Gandhi, we all know now that he changed his so called Parsi religion to become a Catholic to marry Sania Maino of Turin, Italy. Rajiv became Roberto. His daughter's name is Bianca and son's name is Raul. Quite cleverly the same names are presented to the people of India as Priyanka and Rahul. What is amazing is the extent of our people's ignorance in such matters. The press conference that Rajiv Gandhi gave in London after taking over as prime minister of India was very informative. In this press conference, Rajiv boasted that he was NOT a Hindu but a Parsi. Mind you, speaking of the Parsi religion, he had no Parsi ancestor at all. His grandmother (father's mother) had turned Muslim after having abandoned the Parsi religion to marry Nawab Khan.
 
It is the western press that waged a blitz of misinformation on behalf of Rajiv. From the New York Times to the Los Angeles Times and the Washington Post, the big guns raised Rajiv to heaven. The children's encyclopedias recorded that Rajiv was a qualified Mechanical Engineer from the revered University of Cambridge. No doubt US kids are among the most misinformed in the world today! The reality is that in all three years of his tenure at that University Rajiv had not passed a single examination. He had therefore to leave Cambridge without a certificate. Sonia too had the same benevolent treatment. She was stated to be a student in Cambridge. Such a description is calculated to mislead Indians. She was a student in Cambridge all right but not of the University of Cambridge but of one of those fly by night language schools where foreign students come to learn English. Sonia was working as an 'au pair' girl in Cambridge and trying to learn English at the same time.
 
And surprise of surprises, Rajiv was even cremated as per vedic rites in full view of India's public. This is the Nehru dynasty that India worships and now an Italian leads a prestigious national party because of just one qualification - being married into the Nehru family. Maneka Gandhi itself is being accepted by the non-Congress parties not because she was a former model or an animal lover, but for her links to the Nehru family. Saying that an Italian should not lead India will amount to narrow mindedness, but if Sania Maino (Sonia) had served India like say Mother Teresa or Annie Besant, i.e. in anyway on her own rights, then all Indians should be proud of her just as how proud we are of Mother Teresa.
With Dhannyavad
Sandesh
----- Original Message -----
Sent: Friday, July 22, 2011 1:12 AM
Subject: Re: aao ek schchi kahani batata hu

 
 ye jo mail me likha hai kya wo sach mein sach hai? aapko kahanse mili aisi information? it is horrible. meine abhi pura padha bhi nahi hai. ya padha bhi nahi  ja raha hai.
 
agar aise kucch kisi ke barame afwah phailane ke liye kiya - likha  gaya to ye bahut jyada buri bat hogi. aur agar ye sach hai - sahi me to it is simply horrible.
 
abhi tak kahin bhi - kisi channel ko - newspaper- opposition party ko iske bareme kabhi kaise kucch pata nahi chala?
 
very difficult to believe.  horrible if it is true. koi horror movie dekhke bhi kabhi aise nahi laga. meine itni horrible story meri jindagi me ajtak nahi padhi.
 
vaishali

2011/7/21 uday pal <uday....@gmail.com>
 
aao ek schchi kahani batata hu
 
 
 
अपनी पुस्तक "द नेहरू डायनेस्टी" में लेखक के.एन.राव (यहाँ उपलब्ध है) लिखते हैं....ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर । यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी माता का नाम था, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी । कमला शुरु से ही इन्दिरा के फ़िरोज से विवाह के खिलाफ़ थीं... क्यों ? यह हमें नहीं बताया जाता...लेकिन यह फ़िरोज गाँधी कौन थे ? फ़िरोज उस व्यापारी के बेटे थे, जो "आनन्द भवन" में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था...नाम... बताता हूँ.... पहले आनन्द भवन के बारे में थोडा सा... आनन्द भवन का असली नाम था "इशरत मंजिल" और उसके मालिक थे मुबारक अली... मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे...खैर...हममें से सभी जानते हैं कि राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं... और अधिकतर परिवारों में दादा और पिता का नाम ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, बजाय नाना या मामा के... तो फ़िर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था.... किसी को मालूम है ? नहीं ना... ऐसा इसलिये है, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान, एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाय करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में... नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया... फ़िरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था "घांदी" (गाँधी नहीं)... घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था...विवाह से पहले फ़िरोज गाँधी ना होकर फ़िरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था...हमें बताया जाता है कि राजीव गाँधी पहले पारसी थे... यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है । इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं । शांति निकेतन में पढते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था... अब आप खुद ही सोचिये... एक तन्हा जवान लडकी जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पडी़ हुई हों... थोडी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी, और विपरीत लिंग की ओर क्यों ना आकर्षित होगी ? इसी बात का फ़ायदा फ़िरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फ़ुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली (नाम रखा "मैमूना बेगम")

 

         नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए, लेकिन अब क्या किया जा सकता था...जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने ताबडतोड नेहरू को बुलाकर समझाया, राजनैतिक छवि की खातिर फ़िरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले.. यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म बदलने के सिर्फ़ नाम बदला जाये... तो फ़िरोज खान (घांदी) बन गये फ़िरोज गाँधी । और विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक कहीं नहीं किया, और वे महात्मा भी कहलाये...खैर... उन दोनों (फ़िरोज और इन्दिरा) को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया, ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक (?) का भ्रम बना रहे । इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक "रेमेनिसेन्सेस ऑफ़ थे नेहरू एज" (पृष्ट ९४ पैरा २) (अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित) में लिखते हैं कि "पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी, जबकि उस समय यह अवैधानिक था, कानूनी रूप से उसे "सिविल मैरिज" होना चाहिये था" । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फ़िरोज अलग हो गये थे, हालाँकि तलाक नहीं हुआ था । फ़िरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे, और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे । तंग आकर नेहरू ने फ़िरोज का "तीन मूर्ति भवन" मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मथाई लिखते हैं फ़िरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बडी़ राहत मिली थी । १९६० में फ़िरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी, जबकि वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे । अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी पत्रकारों और इन्दिरा गाँधी के फ़िरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी (या श्रीमती फ़िरोज खान) का दूसरा बेटा अर्थात संजय गाँधी, फ़िरोज की सन्तान नहीं था, संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस का बेटा था । संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था, अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था । ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था (इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था) । अब संयोग पर संयोग देखिये... संजय गाँधी का विवाह "मेनका आनन्द" से हुआ... कहाँ... मोहम्मद यूनुस के घर पर (है ना आश्चर्य की बात)... मोहम्मद यूनुस की पुस्तक "पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स" में बालक संजय का इस्लामी रीतिरिवाजों के मुताबिक खतना बताया गया है, हालांकि उसे "फ़िमोसिस" नामक बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता) गाफ़िल रहें.... मेनका जो कि एक सिख लडकी थी, संजय की रंगरेलियों की वजह से गर्भवती हो गईं थीं और फ़िर मेनका के पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी, फ़िर उनकी शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर "मानेका" किया गया, क्योंकि इन्दिरा गाँधी को "मेनका" नाम पसन्द नहीं था (यह इन्द्रसभा की नृत्यांगना टाईप का नाम लगता था), पसन्द तो मेनका, मोहम्मद यूनुस को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम लडकी संजय के लिये देख रखी थी
 
 
       फ़िर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ़ एक तौलिये में विज्ञापन किया था । आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी । ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गाँधी को उसके असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस थी, वरना क्या कारण था कि संजय के विशेष नसबन्दी अभियान (जिसका मुसलमानों ने भारी विरोध किया था) के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी, और संजय की मौत के तत्काल बाद काफ़ी समय तक वे एक चाभियों का गुच्छा खोजती रहीं थी, जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे...। (संजय गाँधी के तीन अन्य मित्र कमलनाथ, अकबर अहमद डम्पी और विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों "चाण्डाल चौकडी" कहलाते थे... इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत मशहूर हो चुके हैं जैसे कि अंबिका सोनी और रुखसाना सुलताना [अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ] के साथ इन लोगों की विशेष नजदीकियाँ....)एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ २०६ पर लिखते हैं - "१९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था । वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे । वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थी । नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए । चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था, नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये । मथाई के शब्दों में - एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही जवान, खूबसूरत और दिलकश थी - । एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये, नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया, और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं । नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया । उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कॉन्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया । उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी । उसकी निजE

veena srivastava

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22 Jul 2011, 04:57:4922/07/2011
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मैं जरूर पढ़ूंगी इस किताब को....

2011/7/21 uday pal <uday....@gmail.com>

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सादर
वीना
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M.L.Verma Krant

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22 Jul 2011, 09:36:3722/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
Kindly log on http://en.wikipedia.org/wiki/Ram_Prasad_Bismil
You will find it from there.
For other books you may see the same article of Ram Prasad Bismil  in hindi wikipedia also.
It is not available online.
2011/7/21 sandesh <sandesh...@gmail.com>
2011/7/21 uday pal <uday....@gmail.com>
       फ़िर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ़ एक तौलिये में विज्ञापन किया था । आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी । ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गाँधी को उसके असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस थी, वरना क्या कारण था कि संजय के विशेष नसबन्दी अभियान (जिसका मुसलमानों ने भारी विरोध किया था) के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी, और संजय की मौत के तत्काल बाद काफ़ी समय तक वे एक चाभियों का गुच्छा खोजती रहीं थी, जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे...। (संजय गाँधी के तीन अन्य मित्र कमलनाथ, अकबर अहमद डम्पी और विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों "चाण्डाल चौकडी" कहलाते थे... इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत मशहूर हो चुके हैं जैसे कि अंबिका सोनी और रुखसाना सुलताना [अभिनेत्री अमृता सिंह की माँ] के साथ इन लोगों की विशेष नजदीक

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sandesh

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22 Jul 2011, 13:57:5422/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
Namaskar Varmaji!
this page is about Ramprasad Bismil, i want details about the book you have written.
Please do inform.
Sandesh

M.L.Verma Krant

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23 Jul 2011, 11:31:3123/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
सरफ़रोशी की तमन्ना लेखक मदन लाल वर्मा 'क्रान्त'  प्रकाशक प्रवीण प्रकाशन २३ अंसारी रोड दरिया गंज दिल्ली मोबाइल नम्बर +९१९३१०६७५०६१ श्री कृष्ण गुप्त

2011/7/22 sandesh <sandesh...@gmail.com>

Adarsh Bhalla

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23 Jul 2011, 03:55:3123/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
बचपन में कहानिया सुनने का बहुत शौक था,  उन्ही में से एक कहानी  फिर याद आती है, क्यों की मुझे शायद यह आज तक कई बार सुननी पड़ी है,  एक बार आप के साथ क्यों की यह कभी भी जीवित हो उठती है.
एक राजा था राजपाठ  ठीक ठाक चल रहा था, चारो तरफ खुशहाली थी, खेत खलिहान भरे पुरे लहलहाते थे, खजाने अपार सम्पति से भरे पड़े थे. .........आज भी निकल रहे हैं.....  राजा बूढा हो चला था.  बस कमी थी तो सिर्फ एक.  और वो थी की राजा के कोई संतान नहीं थी.  दरबारी गन प्रजा  जन, सभी बहुत चिंतित थे की आखिर राजा के बाद क्या होगा. 
लेकिन राजा तो राजा था वह प्रजा को अच्छी तरह समझता था.  उसने अपनी वसीयत में आखरी इच्छा लिख कर रख छोड़ी थी.   समय आया राजा का निधन हुआ, वसीयत खोली गई. पढ़ी गई.  राजा की इच्छा थी की जो भी पहला व्यक्ति उसके राज्य में प्रवेश करे उसी को राज गद्दी का उत्तराधिकारी माना जाये.  सीमा पर पूरी तैनाती थी, सिपहसलार 
मन्त्रिगन सब नजर गडाये  बैठे थे, इतने में एक बाबा ने प्रवेश किया.   अलख निरंजन,,,,,,,,,,,,, उनींदे पहरेदार उठ खड़े हुए,  बाबा को सादर महल में ले आये.
बाबा ने कहा अरे भाई मुझे राजपाठ से क्या लेना देना, मुझे अपने रास्ते जाने दो भाई.......लेकिन राजा की वसीयत प्रजा का राजा के प्रति सम्मान ..........
अन्ततोगत्वा बाबा को राज सिंहासन पर बैठा दिया गया.  
दरबार सज गया बाबा को राज पाठ भार सोंप कर कहा  हूजूर हुकम कीजिये.........बाबा ने फरमान जारी किया जनता को हलवा पूरी का लंगर खिलाया जाय ,  पूरे राज्य में हलवे पूरी के शाही लंगर लग गए,, मौज मस्ती थी प्रजा बड़ी खुश थी अरबों का शाही खजाना ओर उस  शाही खजाने के माल की हलवा पूरी,  .......
मंत्री परेशान थे महाराज ओर कोई हुक्म........नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो.....महाराज का हुकम सर आँखों पैर............महाराज लोग नाकारा ओर बेकार होते जा  रहे हैं, कुछ तो कीजये.........नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो.........महाराज शाही खजाने खाली हो रहे हैं..............नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो..........
खबर पडोसी राज्य तक पहुंची की जनता , प्रशासन , फौज, सभी सभी  हाथ पर हाथ धरे बठें हैं. पडोसी राजा ने सोचा यह अच्छा मौका है, ओर चढ़ाई कर दी,...........
खुफिया खबर आई, पडोसी हमला कर रहा है....... मंत्री राजा के पास गये महराज  कुछ तो कीजये.........नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो .......बस हलवे में घी थोडा बढ़ा दो ......महराज सेना बेकार हो रही है........नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो.......बस हलवे में घी थोडा बढ़ा दो  महराज पडोसी राजा महल तक पहुँच गया है......  नहीं बस तुम हलवा पूरी बाँटते रहो महाराज आप गिरफ्तार होने वाले हैं... बाबा ने कहा ऐसा क्या....हमारा चिमटा..ओर कमंडल ले कर आओ  मंत्रियों ने सोचा शायद बाबा कुछ चमत्कार करेगा...आननं फानन में चिमटा कमंडल पेश किया गया बाबा ने कहा हमारी खडाऊं कहाँ हैं... ये रही महाराज.   अलख निरंजन.  हम चलते हैं.....

बिलकुल ऐसा ही हुआ जब मैं 1973 कालिज मैं पढता था. मात्र सोलह साल का था    उपरी कहानी चरितार्थ होती नज़र आती थी...एक बाबा आये नाम था जय प्रकाश नारायण ...,,उन्हों ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया देशवासियों ने सोचा कुछ तो अच्छा होगा...  नतीजा क्या निकला उस सम्पूरण क्रांति में से निकल कर आये यह उत्पाद.  Morarji Desai, Atal Bihari Vajpayee, Lal Krishna Advani, Charan Singh,  Raj Narain, George Fernandes, आदि आदि  लालू मुलायम उसी सम्पूरण क्रांति  की बानगी हैं...... बाबा का एक चेला तो यहं तक कहता था क्यों की वो रेलवे यूनियन का नेता था की अगर हम किसी तरह स्टील मिल्स को कोयला सप्लाई रोक दें तो एक बार मिल की भट्ठी ठंडी होने के बाद छ महीने मैं पुनह शुरू हो पाती है, और हम भारत वर्ष की अर्थव्यवस्था को छ महीने पीछे ले जा सकेंगे,    दिल्ली के कौड़िया पुल ( यहाँ आपका थोडा सामान्य ज्ञान बढ़ा दूं  विश्व का सबसे पहला TOLL BRIDGE   for details  MY BLOG www.adarshbhalla.blogspot.com)   से दिखायी देता  पूरा पुरानी दिल्ली  स्टेशन माल गाड़ियों से जाम था रेल हड़ताल थी.....में सोचता था ये सरकार हाथ पर हाथ क्यों धरे बैठी है....क्यों नहीं डंडे मार कर यह स्टेशन खुलवाती.  .......लेकिन भोली भाली  जनता तो  बाबा के साथ थी.......मेरे दिल मैं ऐसे मौका परस्तों के लिए गुस्सा तो था लेकिन मैं कर भी क्या सकता था.....

वह बाबा जनता पार्टी को जनता द्वारा सत्ता थमा कर चल दिए.............थोड़ी रहत की साँस....... कोका कोला बंद करवा दी, चीनी दो रूपये किलो कहने को मिली लेकिन देश को दी गयी गरीबी एवं विकास के  बदले ....

कुछ ही बरस बीते थे ........साल  उन्नीस सौ नवासी आया   .एक और तथाकथित अति ईमानदार नेता का उद्भव हुआ................वी पी..........  नारा मिला...................जन मोर्चा...  और  हमे इस देश की जनता को......हलवे मैं क्या मिला मंडल .........आरक्षण...यह बाबा भी हमे विरासत में  दे गये ..............आरक्षण मांगते हिन्दुस्तानी..............रेल जलाते  विद्यार्थी....रेल रोकते....विभन्न समाजों के लोग........  दिल्ली का रास्ता रोकने,,,,,, दिल्ली की दूध सुब्ज़ी बंद करने वाले उनके पदचिन्हों पर चलने वाले लोग,,,...............अलख निरंजन........ये भी निकल लिए.......

फिर सब  इक्कठा हुए............
पहले बाबा के चेलो ने नयी जमात बनायीं ,जनता तो जनता का राज देने की बात दोहराई बी जे पी ( B भागो  J जनता P पकड़ेगी ) आयी..     ......... पुरानी बोतल में नयी शराब आई,,,,,,, देश  की जनता को हलवा पूरी दिखाई.......हलवा तो दूर की बात    जूतों में दाल बटने लगी.  .......

अभी पिक्चर बाकी है मेरे दोस्त....... सारे विश्व में महगाई जोरों पर थी...कोई रास्ता सुझाई नहीं देता था  न कोई हलवा दिखाने वाला था..  हाँ तरक्की थी, खुशहाली थी..भारत अपनी राह पर फिर से चलने लगा था.....विकास दर में चीन से आगे निकल रहा था....     फिर वही कहानी............लेकिन इस बार हलवा नहीं.......पौष्टिक हलवे के साथ उसे पचाने के लिए योग भी तो चाहिए...
कमी थी तो एक.................तरक्की पसंद परिवर्तन पसंद भारतीय की मानसिकता से खेलने वाले की......... और हलवा नहीं  इस बार तो थी विदेशी मुद्रा....वो भी चार सौ लाख करोड़ 


लेकिन अब तक सोने की चिड़िया पर बहुत निगाहे लग चुकी हैं देश में ही बन्दर बाँट होने की गुंजाईश दिखने लगी ...ना वो बाबा रहे ...ओर ना वो भारत की जनता... बाबा भी हाईटेक.. एक के पीछे एक सौ बीस करोड़ लोग (ऐसा वे कहते हैं) दुसरे के पीछे वही उन्नीस तो तिहत्तर ~ उन्नीस सौ सतत्तर वाली मंडली  ............एक बाबा को... दुसरे बाबा की खुशहाली रास न आयी.... देश की जनता के एक आँख  लोकपाल और दूसरी आँख  भ्रष्टाचार से बंद कर,, हाथ में विदेशों में काले धन के नाम पर , अरबों रूपये के चुनावी हलवे परोस कर खुद भूखे बैठ कर न जाने क्या दिखाना चाहते थे ...पहले तो एक ही मंच से (आह्वान हुआ ) फिर रास्ते आलग मंजिल अलग अलग, सलाहकार अलग, लेकिन निगाहें प्रधान मंत्री के कुर्सी........भगवन ने मेरी छतीस साल पुरानी फ़रियाद सुनी.  ४ जून  २०११ मेरे एक पत्रकार मित्र ने रामलीला मैदान से फोन किया  सुबह के लगभग दो का वक्त था.....टी वी. खोला देश के संविधान में आस्था ना रखने वाले, तमाम भारत की समस्त जनता ( प्रजातंत्र  यह कैसे संभव हो सकता है) का स्वयम्भू प्रतिनिधि कहने वाले....पांच सौ बयालीस सांसदों को चोर कहने वाले...भाग क्यों रहे हैं......समझते देर ना लगी....अब भारत सरकार भी जाग चुकी है.... देश में अराजकता फैलाने वालों, अलगाववादियों ,,,,समानांतर सरकार खड़ी करने वालों.................के खिलाफ   

क्रमश ..................

2011/7/22 sandesh <sandesh...@gmail.com>

Rajesh Kumar

unread,
24 Jul 2011, 10:13:4724/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
bhala ji mujey lagta hai aap ka koi ristedar congress me  mantri santri hai jo aapo ne last me govt of india ke tareef ke hai. asal me aap kese kaley angreg ke socity me a gaye ho jo aap kutey  kameene govt ke tareef kar rahai ho . aap ko pata hai aap ke mosi soneya 8 june say  15 june tuk switzerland me apna paisa itly  transfer karney ke  leya  gaye . or us ney 1100 crore rupees  vedesh jatra me with in three yeear me kharach keya. rahul ke asli naam raul vinchi hai . jadey us me itna he swabhiman he to u.p me ja kar raul  vinchi ke naam se boot mangey. to tumharey demag ke ve elag ho jayega. . dharm or adharm ke ledaye me kaye baar medane jang me rakshas agey badte hai laken ant me jeet to dharm ke he hote hai
 
jai hind
bandey matrum
rom: Adarsh Bhalla <adarsh...@gmail.com>
To: hindusth...@googlegroups.com
Sent: Saturday, 23 July 2011 1:25 PM

Dinesh Vashistha

unread,
25 Jul 2011, 01:52:1725/07/2011
to hindusth...@googlegroups.com
Adarniya Verma ji, Bhalla Ji Veena ji Aur Vaishali ji,

Ye sabhi bate 100% sach hain aur main in sab pe poora vishwas karta hu.  Maine kayi saal pahle ek News Paper mein padha tha ke aajadi ke time PM ke liye voting huyi thi jisme 16 bade Soobo ke logo ne vote dale the.  16 mein se 13 votes the Sardar Patel ke liye, 2 the Lal Bahadur Shatri Ke liye aur ek vote tha Maulana Abul Kalam Azad ke liye.  Neharu ke liye koi bhi vote nahi tha.  Nehru ko koi bhi Hindustaani9 Pradhan Mantri nahi banana chahta tha.  Jab Nehru ko ye pata chala to wo ja ke Gandhi ke paas roya.  Gandhi ne Sardar Patel ko samjhaya aur Patel to Gandhi ke Bhakt the so Nehru ke liye Pradhan Mantri ki Gaddi chhod di.  Jiska parinam aaj-tak Hindustaan bhugat rahi hai.

 Ye sab bate Gandhi ne khud bhi apni ek kitaab mein likh rakhi hain.  Kitab ka naam hai "The Hidden Side of Gandhi".  

To Sathiyo/Mitro hame chahiye ke ye jankari ham un logo tak poahuchaye jo internet use nahi karte. Kheto mein kaam karte hain, fectriyo mein kaam karte hain aur tamam us janta tak jo ki bina koi karan jane bas "Hath" ke nishan pe apna vote de deti hai.

Hum sab milkar har us Lok-Sabha, Vidhan - Sabha area mein jaye aur is baat ka prachar kare.  Taki kam se kam ye congress Hamare desh se jad se khatm ho sake.  Baba Ramdev, Anna Hazare, Arvind Kejariwal aur Kiran Bedi jaise logo ki Takat Badhaye aur apne desh ko in kale angrejo se Azad karwaye.

Main apne sathiyo ke sath kisi bhi abhiyan ke liye taiyar milunga.  

Dinesh Vashistha
Hisar, Haryana
92530-51259
2011/7/24 Rajesh Kumar <rsharma_...@yahoo.in>

manoj peetamber

unread,
26 Jul 2011, 00:42:5726/07/2011
to bharatswab...@googlegroups.com, peet...@rediffmail.com, hindusth...@googlegroups.com
ॐ मित्रो
मेने अभी आदर्श भल्ला जी की एक मेल पढ़ी सोच में पड़ गया की,,, ऐसी भी मानसिकता हो सकती है ? फिर सोचा की इस ज्ञान की उपज कहा से हो सकती है ? इनका कोई दोष नहीं है ! घर पतवार खेतो में अधिक हो जाये तो सम्पूर्ण फशल को जेह्रिला बना सकती है ? अब भल्ला जी कहाँ से निर्देशित है कहाँ का ज्ञान अर्जित किया है पता नहीं ? परन्तु एक बात बिलकुल सही है की ये ये नस्ल कहाँ से विकसित है ? जो भारत स्वाभिमान की खड़ी फसल को बर्बाद करने उग आई है ! ये केसे पैदा होती है और क्यों बेलगाम होती है ? इनकी पैदावार शराब , वाशना , खून , व आधुनिक रसायनों , और विदेशी खानपान, द्वारा इनका जनम होता है ! जो ज्ञान और देश भक्ति की फसल को नुकसान पंहुचा सकते है ! इन्हें कुचलना ही होगा ? इनको इन्ही की भाषा में जवाब देना होगा ? इनको इनके असलियत बतानी होगी ?

pitamber

On Tue, 26 Jul 2011 07:16:47 +0530 wrote
>Abe sale Baba ne jitna desh ka bhala kiya hain utna kisne kiya hain

yeh tu bata.

Tu bhraston ka dalal

hain.



On 7/23/11, Adarsh Bhalla wrote:

> *बचपन* दreg;ेंकहानिया सुननेका बहुतशौक था, उन्हीदreg;ें सेएक कहानी फिरयाद आती

> है,क्यों कीदreg;ुझे शायदयह आजतक कईबार सुननीपड़ी है, एकबार आपके साथक्यों

> कीयह कभीभी जीवितहो उठ??ी है.

> एकराजा थाराजपाठ ठ??क ठ??क चलरहा था,चारो तरफखुशहाली थी,खेत खलिहानभरे

> पुरेलहलहाते थे,खजाने अपारसदreg;्पति सेभरे पड़ेथे. .........आज भीनिकल रहे

> हैं..... राजा बूढाहो चलाथा. बस कदreg;ीथी तोसिर्फ एक. और वोथी कीराजा के

> कोईसंतान नहींथी. दरबारी गनप्रजा जन, सभीबहुत चिंतितथे कीआखिर राजाके

> बादक्या होगा.

> लेकिनराजा तोराजा थावह प्रजाको अच्छीतरह सदreg;झताथा. उसने अपनीवसीयत दreg;ें

> आखरीइच्छा लिखकर रखछोड़ी थी. सदreg;यआया राजाका निधनहुआ, वसीयतखोली गई.

> पढ़ीगई. राजा कीइच्छा थीकी जोभी पहलाव्यक्ति उसकेराज्य दreg;ेंप्रवेश करे

> उसीको राजगद्दी काउत्तराधिकारी दreg;ानाजाये. सीदreg;ा परपूरी तैनातीथी,

> सिपहसलार

> दreg;न्त्रिगनसब नजरगडाये बैठेथे, इतनेदreg;ें एकबाबा नेप्रवेश किया. अलख

> निरंजन,,,,,,,,,,,,,उनींदे पहरेदारउठखड़े हुए, बाबाको सादरदreg;हल दreg;ेंले

> आये.

> बाबाने कहाअरे भाईदreg;ुझे राजपाठसेक्या लेनादेना, दreg;ुझेअपने रास्तेजाने दो

> भाई.......लेकिन राजाकी वसीयतप्रजा काराजा केप्रति सदreg;्दreg;ान..........

> अन्ततोगत्वाबाबा कोराज सिंहासनपर बैठ?? दियागया.

> दरबारसज गयाबाबा कोराज पाठभारसोंप करकहा हूजूर हुकदreg;कीजिये.........बाबा

> नेफरदreg;ान जारीकिया जनताको हलवापूरी कालंगर खिलायाजाय , पूरेराज्य दreg;ें

> हलवेपूरी केशाही लंगरलग गए,,दreg;ौज दreg;स्तीथी प्रजाबड़ी खुशथी अरबोंका शाही

> खजानाओर उस शाहीखजाने केदreg;ाल कीहलवा पूरी, .......

> दreg;ंत्रीपरेशान थेदreg;हाराज ओरकोई हुक्दreg;........नहीं बसतुदreg; हलवापूरी बाँटते

> रहो.....दreg;हाराज काहुकदreg; सरआँखों पैर............दreg;हाराज लोगनाकारा ओरबेकार

> होतेजा रहे हैं,कुछ तोकीजये.........नहीं बसतुदreg; हलवापूरी बाँटते

> रहो.........दreg;हाराज शाहीखजाने खालीहो रहेहैं..............नहीं बसतुदreg; हलवा


> पूरीबाँटते रहो..........

> खबरपडोसी राज्यतक पहुंचीकी जनता, प्रशासन, फौज,सभी सभी हाथपर हाथधरे

> बठ??ं हैं. पडोसीराजा नेसोचा यहअच्छा दreg;ौकाहै, ओरचढ़ाई करदी,...........

> खुफियाखबर आई,पडोसी हदreg;लाकर रहाहै....... दreg;ंत्रीराजा केपास गयेदreg;हराज कुछ

> तोकीजये.........नहीं बसतुदreg; हलवापूरी बाँटतेरहो .......बस हलवेदreg;ें घीथोडा

> बढ़ादो ......दreg;हराज सेनाबेकार होरही है........नहीं बसतुदreg; हलवापूरी बाँटते

> रहो.......बस हलवेदreg;ें घीथोडा बढ़ादो दreg;हराज पडोसीराजा दreg;हलतक पहुँचगया

> है...... नहीं बसतुदreg; हलवापूरी बाँटतेरहो दreg;हाराजआप गिरफ्तारहोने वाले

> हैं... बाबाने कहाऐसा क्या....हदreg;ारा चिदreg;टा..ओर कदreg;ंडलले करआओ दreg;ंत्रियों ने

> सोचाशायद बाबाकुछ चदreg;त्कारकरेगा...आननं फाननदreg;ें चिदreg;टाकदreg;ंडल पेशकिया गया

> बाबाने कहाहदreg;ारी खडाऊंकहाँ हैं... येरही दreg;हाराज. अलखनिरंजन. हदreg; चलते

> हैं.....

>

> *बिलकुल ऐसाही हुआजब दreg;ैं1973 कालिजदreg;ैं पढताथा. दreg;ात्रसोलह सालका था*

> उपरीकहानी चरितार्थहोती नज़रआती थी...एक बाबाआये नादreg;था जयप्रकाश नारायण

> ...,,उन्हों नेसदreg;्पूर्ण क्रांतिका नारादिया देशवासियोंने सोचाकुछ तोअच्छा

> होगा... नतीजा क्यानिकला उससदreg;्पूरण क्रांतिदreg;ें सेनिकल करआये यहउत्पाद.


> Morarji Desai, Atal Bihari Vajpayee, Lal Krishna Advani, Charan Singh, Raj

> Narain, George Fernandes, आदिआदि लालू दreg;ुलायदreg;उसी सदreg;्पूरणक्रांति की बानगी

> हैं...... बाबाका एकचेला तोयहं तककहता थाक्यों कीवो रेलवेयूनियन कानेता

> थाकी अगरहदreg; किसीतरह स्टीलदreg;िल्स कोकोयला सप्लाईरोक देंतो एकबार दreg;िलकी

> भट्ठ?? ठ??डी होनेके बादछ दreg;हीनेदreg;ैं पुनहशुरू होपाती है,और हदreg;भारत वर्षकी

> अर्थव्यवस्थाको छदreg;हीने पीछेले जासकेंगे, दिल्ली केकौड़िया पुल( यहाँ

> आपकाथोडा सादreg;ान्यज्ञान बढ़ादूं *विश्व कासबसे पहलाTOLL BRIDGE * for


> details MY BLOG www.adarshbhalla.blogspot.com) सेदिखायी देता पूरा

> पुरानीदिल्ली स्टेशन दreg;ालगाड़ियों सेजादreg; थारेल हड़तालथी.....दreg;ें सोचताथा ये

> सरकारहाथ परहाथ क्योंधरे बैठ?? है....क्यों नहींडंडे दreg;ारकर यहस्टेशन

> खुलवाती. .......लेकिन भोलीभाली जनता तो बाबाके साथथी.......दreg;ेरे दिलदreg;ैं

> ऐसेदreg;ौका परस्तोंके लिएगुस्सा तोथा लेकिनदreg;ैं करभी क्यासकता था.....

>

> *वह बाबाजनता पार्टीको जनताद्वारा सत्ताथदreg;ा करचल दिए.............*थोड़ी

> रहतकी साँस....... कोकाकोला बंदकरवा दी,चीनी दोरूपये किलोकहने कोदreg;िली

> लेकिनदेश कोदी गयीगरीबी एवंविकास के बदले....

>

> *कुछ हीबरस बीतेथे* ........साल उन्नीस सौनवासी आया .एक और

> तथाकथितअति ईदreg;ानदारनेता काउद्भव हुआ................वी पी.......... नारा

> दreg;िला...................जन दreg;ोर्चा... और हदreg;े इसदेश कीजनता को......हलवे दreg;ैं

> क्यादreg;िला दreg;ंडल.........आरक्षण...यह बाबाभी हदreg;ेविरासत दreg;ें देगये

> ..............आरक्षण दreg;ांगतेहिन्दुस्तानी..............रेल जलाते

> विद्यार्थी....रेल रोकते....विभन्न सदreg;ाजोंके लोग........ दिल्ली कारास्ता

> रोकने,,,,,,दिल्ली कीदूध सुब्ज़ीबंद करनेवाले उनकेपदचिन्हों परचलने वाले


> लोग,,,...............अलख निरंजन........ये भीनिकल लिए.......

>

> *फिर सब इक्कठ?? हुए............*

> पहलेबाबा केचेलो नेनयी जदreg;ातबनायीं ,जनतातो जनताका राजदेने कीबात दोहराई

> बीजे पी(* B* भागो *J* जनता*P* पकड़ेगी) आयी.. ......... पुरानीबोतल

> दreg;ेंनयी शराबआई,,,,,,, देश कीजनता कोहलवा पूरीदिखाई.......हलवा तोदूर की

> बात जूतोंदreg;ें दालबटने लगी. .......

>

> *अभी पिक्चरबाकी हैदreg;ेरे दोस्त....... *सारे* *विश्व दreg;ेंदreg;हगाई जोरोंपर

> थी...कोई रास्तासुझाई नहींदेता था नकोई हलवादिखाने वालाथा.. हाँ तरक्की

> थी,खुशहाली थी..भारत अपनीराह परफिर सेचलने लगाथा.....विकास दरदreg;ें चीनसे

> आगेनिकल रहाथा.... फिरवही कहानी............लेकिन इसबार हलवा

> नहीं.......पौष्टिक हलवेके साथउसे पचानेके लिएयोग भीतो चाहिए...

> कदreg;ीथी तोएक.................तरक्की पसंदपरिवर्तन पसंदभारतीय कीदreg;ानसिकता से

> खेलनेवाले की......... औरहलवा नहीं इसबार तोथी विदेशीदreg;ुद्रा....वो भीचार


> सौलाख करोड़

>

>

> लेकिनअब तकसोने कीचिड़िया परबहुत निगाहेलग चुकीहैं देशदreg;ें हीबन्दर बाँट

> होनेकी गुंजाईशदिखने लगी...ना वोबाबा रहे...ओर नावो भारतकी जनता... बाबा

> भीहाईटेक.. एकके पीछेएक सौबीस करोड़लोग (ऐसा वेकहते हैं) दुसरेके पीछे

> वहीउन्नीस तोतिहत्तर ~ उन्नीससौ सतत्तरवाली दreg;ंडली ............एक बाबा

> को... दुसरेबाबा कीखुशहाली रासन आयी.... देशकी जनताके एकआँख लोकपाल और

> दूसरीआँख भ्रष्टाचार सेबंद कर,,हाथ दreg;ेंविदेशों दreg;ेंकाले धनके नादreg;पर ,

> अरबोंरूपये केचुनावी हलवेपरोस करखुद भूखेबैठकर नजाने क्यादिखाना चाहते

> थे...पहले तोएक हीदreg;ंच से(आह्वान हुआ) फिररास्ते आलगदreg;ंजिल अलगअलग,

> सलाहकारअलग, लेकिननिगाहें प्रधानदreg;ंत्री केकुर्सी........भगवन नेदreg;ेरी छतीस

> सालपुरानी फ़रियादसुनी. ४ जून २०११दreg;ेरे एकपत्रकार दreg;ित्रने रादreg;लीलादreg;ैदान

> सेफोन किया सुबहके लगभगदो कावक्त था.....टी वी. खोलादेश केसंविधान दreg;ें

> आस्थाना रखनेवाले, तदreg;ादreg;भारत कीसदreg;स्त जनता( प्रजातंत्र *यह कैसेसंभव हो

> सकताहै*) कास्वयदreg;्भू प्रतिनिधिकहने वाले....पांच सौबयालीस सांसदोंको चोर

> कहनेवाले...भाग क्योंरहे हैं......सदreg;झते देरना लगी....अब भारतसरकार भीजाग

> चुकीहै.... देशदreg;ें अराजकताफैलाने वालों,अलगाववादियों ,,,,सदreg;ानांतरसरकार


> खड़ीकरने वालों.................के खिलाफ

>

> क्रदreg;श..................

>

> 2011/7/22 sandesh

>

>> **


>> Namaskar Varmaji!

>> this page is about Ramprasad Bismil, i want details about the book you

>> have

>> written.

>> Please do inform.

>> Sandesh

>>

>> ----- Original Message -----

>> *From:* M.L.Verma Krant

>> *To:* hindusth...@googlegroups.com

>> *Sent:* Friday, July 22, 2011 7:06 PM

>> *Subject:* Re: aao ek schchi kahani batata hu


>>

>> Kindly log on http://en.wikipedia.org/wiki/Ram_Prasad_Bismil

>> You will find it from there.

>> For other books you may see the same article of Ram Prasad Bismil in

>> hindi

>> wikipedia also.

>> It is not available online.

>> 2011/7/21 sandesh

>>

>>> **

>>> नदreg;स्कारवर्दreg;ाजी

>>>

>>> आपकी पुस्तकक्या अंग्रेजीदreg;ें भीउपलब्ध है?

>>> दूसरीबात येभी बताइएकी क्यायह पुस्तकऑनलाइन भीहै?

>>> इसकापूरा विवरणआप यातो ग्रुपपर देंया फिरदreg;ुझे व्यक्तिगतदreg;ेल करें.

>>> दreg;ेराईदreg;ेल है

>>> sandesh...@gmail.com

>>> धन्यवादके साथ


>>> सन्देश

>>> ----- Original Message -----

>>> *From:* M.L.Verma Krant

>>> *To:* hindusth...@googlegroups.com

>>> *Sent:* Thursday, July 21, 2011 12:26 PM

>>> *Subject:* Re: aao ek schchi kahani batata hu

>>>

>>> उदयपाल जीदreg;ैंने अपनीपुस्तक "स्वाधीनता संग्रादreg;के क्रान्तिकारीसाहित्य

>>> का

>>> इतिहास' दreg;ेंइससे भीअधिक प्रदreg;ाणिकतथ्य दियेहैं जिन्हेंपढ़कर दोही

>>> व्यक्ति

>>> बिस्दreg;िल(घायल) हुएएक बाबारादreg;देव औरदुसरा भाईराजीव दीक्षित. अफ़सोसकी

>>> इनदreg;ें

>>> सेराजीव भाईनहीं रहेदreg;ुझे तोउनकी दreg;ौतभी एकसाजिश लगतीहै.


>>> http://krantmlverma.blogspot.com

>>>

>>> 2011/7/21 uday pal

>>>

>>>>

>>>> aao ek schchi kahani batata hu

>>>>

>>>>

>>>>

>>>> अपनीपुस्तक "द नेहरूडायनेस्टी" दreg;ेंलेखक के.एन.राव (यहाँ उपलब्धहै)

>>>> लिखते

>>>> हैं....ऐसा दreg;ानाजाता हैकि जवाहरलाल,दreg;ोतीलाल नेहरूके पुत्रथे और

>>>> दreg;ोतीलालके

>>>> पिताका नादreg;था गंगाधर। यहतो हदreg;जानते हीहैं किजवाहरलाल कीएक पुत्री

>>>> थी

>>>> इन्दिराप्रियदर्शिनी नेहरू। कदreg;लानेहरू उनकीदreg;ाता कानादreg; था,जिनकी

>>>> दreg;ृत्यु

>>>> स्विटजरलैण्डदreg;ें टीबीसे हुईथी ।कदreg;ला शुरुसे हीइन्दिरा केफ़िरोज से

>>>> विवाह

>>>> केखिलाफ़ थीं... क्यों? यहहदreg;ें नहींबताया जाता...लेकिन यहफ़िरोज गाँधी

>>>> कौन

>>>> थे? फ़िरोजउस व्यापारीके बेटेथे, जो"आनन्द भवन" दreg;ेंघरेलू सादreg;ानऔर

>>>> शराब

>>>> पहुँचानेका कादreg;करता था...नादreg;... बताताहूँ.... पहलेआनन्द भवनके बारे

>>>> दreg;ें

>>>> थोडासा... आनन्दभवन काअसली नादreg;था "इशरत दreg;ंजिल" औरउसके दreg;ालिकथे दreg;ुबारक

>>>> अली... दreg;ोतीलालनेहरू पहलेइन्हीं दreg;ुबारकअली केयहाँ कादreg;करते

>>>> थे...खैर...हदreg;दreg;ें सेसभी जानतेहैं किराजीव गाँधीके नानाका नादreg;था

>>>> जवाहरलाल

>>>> नेहरू,लेकिन प्रत्येकव्यक्ति केनाना केसाथ हीदादा भीतो होतेहैं...

>>>> और

>>>> अधिकतरपरिवारों दreg;ेंदादा औरपिता कानादreg; ज्यादादreg;हत्वपूर्ण होताहै, बजाय

>>>> नाना

>>>> यादreg;ादreg;ा के... तोफ़िर राजीवगाँधी केदादाजी कानादreg; क्याथा.... किसीको

>>>> दreg;ालूदreg;

>>>> है? नहींना... ऐसाइसलिये है,क्योंकि राजीवगाँधी केदादा थेनवाब खान,

>>>> एक

>>>> दreg;ुस्लिदreg;व्यापारी जोआनन्द भवनदreg;ें सादreg;ानसप्लाय करताथा औरजिसका दreg;ूल

>>>> निवासथा

>>>> जूनागढगुजरात दreg;ें... नवाबखान नेएक पारसीदreg;हिला सेशादी कीऔर उसे

>>>> दreg;ुस्लिदreg;

>>>> बनाया... फ़िरोजइसी दreg;हिलाकी सन्तानथे औरउनकी दreg;ाँका उपनादreg;था "घांदी"

>>>> (गाँधी नहीं)... घांदीनादreg; पारसियोंदreg;ें अक्सरपाया जाताथा...विवाह से

>>>> पहले

>>>> फ़िरोजगाँधी नाहोकर फ़िरोजखान थेऔर कदreg;लानेहरू केविरोध काअसली कारण

>>>> भी

>>>> यहीथा...हदreg;ें बतायाजाता हैकि राजीवगाँधी पहलेपारसी थे... यहदreg;ात्र एक

>>>> भ्रदreg;

>>>> पैदाकिया गयाहै ।इन्दिरा गाँधीअकेलेपन औरअवसाद काशिकार थीं। शांति

>>>> निकेतनदreg;ें पढतेवक्त हीरविन्द्रनाथ टैगोरने उन्हेंअनुचित व्यवहारके

>>>> लिये

>>>> निकालबाहर कियाथा... अबआप खुदही सोचिये... एकतन्हा जवानलडकी जिसके

>>>> पिता

>>>> राजनीतिदreg;ें पूरीतरह सेव्यस्त औरदreg;ाँ लगभगदreg;ृत्यु शैयापर पडी़हुई

>>>> हों...

>>>> थोडीसी सहानुभूतिदreg;ात्र सेक्यों नापिघलेगी, औरविपरीत लिंगकी ओरक्यों

>>>> ना

>>>> आकर्षितहोगी ? इसीबात काफ़ायदा फ़िरोजखान नेउठायाऔर इन्दिराको

>>>> बहला-फ़ुसलाकर उसकाधर्दreg; परिवर्तनकरवाकर लन्दनकी एकदreg;स्जिद दreg;ेंउससे शादी

>>>> रचा

>>>> ली(नादreg; रखा"दreg;ैदreg;ूना बेगदreg;")

>>>>

>>>>

>>>> नेहरू कोपता चलातो वेबहुत लाल-पीले हुए,लेकिन अबक्या कियाजा

>>>> सकताथा...जब यहखबर दreg;ोहनदासकरदreg;चन्द गाँधीको दreg;िलीतो उन्होंनेताबडतोड

>>>> नेहरू

>>>> कोबुलाकर सदreg;झाया,राजनैतिक छविकी खातिरफ़िरोज कोदreg;नाया किवह अपनानादreg;

>>>> गाँधी

>>>> रखले.. यहएक आसानकादreg; थाकि एकशपथ पत्रके जरिये,बजाय धर्दreg;बदलने के

>>>> सिर्फ़

>>>> नादreg;बदला जाये... तोफ़िरोज खान(घांदी) बनगये फ़िरोजगाँधी ।और विडदreg;्बना

>>>> यह

>>>> हैकि सत्य-सत्य काजाप करनेवाले और"सत्य केसाथ दreg;ेरेप्रयोग" लिखनेवाले

>>>> गाँधीने इसबात काउल्लेख आजतक कहींनहीं किया,और वेदreg;हात्दreg;ा भी

>>>> कहलाये...खैर... उनदोनों (फ़िरोज औरइन्दिरा) कोभारत बुलाकरजनता के

>>>> सादreg;ने

>>>> दिखावेके लियेएक बारपुनः वैदिकरीति सेउनका विवाहकरवाया गया,ताकि

>>>> उनके

>>>> खानदानकी ऊँचीनाक (?) काभ्रदreg; बनारहे ।इस बारेदreg;ें नेहरूके सेक्रेटरी

>>>> एदreg;.ओ.दreg;थाई अपनीपुस्तक "रेदreg;ेनिसेन्सेस ऑफ़थे नेहरूएज" (पृष्ट ९४पैरा २)

>>>> (अब

>>>> भारतसरकार द्वाराप्रतिबन्धित) दreg;ेंलिखते हैंकि "पता नहींक्यों नेहरूने

>>>> सन

>>>> १९४२दreg;ें एकअन्तर्जातीय औरअन्तर्धार्दreg;िक विवाहको वैदिकरीतिरिवाजों से

>>>> किये

>>>> जानेको अनुदreg;तिदी, जबकिउस सदreg;ययह अवैधानिकथा, कानूनीरूप सेउसे "सिविल

>>>> दreg;ैरिज" होनाचाहिये था" ।यह तोएक स्थापिततथ्य हैकि राजीवगाँधी केजन्दreg;

>>>> के

>>>> कुछसदreg;य बादइन्दिरा औरफ़िरोज अलगहो गयेथे, हालाँकितलाक नहींहुआ था।

>>>> फ़िरोजगाँधी अक्सरनेहरू परिवारको पैसेदreg;ाँगते हुएपरेशान कियाकरते थे,

>>>> और

>>>> नेहरूकी राजनैतिकगतिविधियों दreg;ेंहस्तक्षेप तककरने लगेथे ।तंग आकर

>>>> नेहरूने

>>>> फ़िरोजका "तीन दreg;ूर्तिभवन" दreg;ेआने-जाने परप्रतिबन्ध लगादिया था। दreg;थाई

>>>> लिखते

>>>> हैंफ़िरोज कीदreg;ृत्यु सेनेहरू औरइन्दिरा कोबडी़ राहतदreg;िली थी। १९६०दreg;ें

>>>> फ़िरोजगाँधी कीदreg;ृत्यु भीरहस्यदreg;य हालातदreg;ें हुईथी, जबकिवह दूसरीशादी

>>>> रचाने

>>>> कीयोजना बनाचुके थे। अपुष्टसूत्रों, कुछखोजी पत्रकारोंऔर इन्दिरा

>>>> गाँधी

>>>> केफ़िरोज सेअलगाव केकारण यहतथ्य भीस्थापित हुआकि श्रीदreg;तीइन्दिरा

>>>> गाँधी

>>>> (या श्रीदreg;तीफ़िरोज खान) कादूसरा बेटाअर्थात संजयगाँधी, फ़िरोजकी

>>>> सन्तान

>>>> नहींथा, संजयगाँधी एकऔर दreg;ुस्लिदreg;दreg;ोहदreg;्दreg;द यूनुसका बेटाथा ।संजय गाँधी

>>>> का

>>>> असलीनादreg; दरअसलसंजीव गाँधीथा, अपनेबडे भाईराजीव गाँधीसे दreg;िलताजुलता ।

>>>> लेकिनसंजय नादreg;रखने कीनौबत इसलियेआई क्योंकिउसे लन्दनपुलिस ने


>>>> इंग्लैण्ड

>>>> दreg;ेंकार चोरीके आरोपदreg;ें पकड़लिया थाऔर उसकापासपोर्ट जब्तकर लियाथा ।

>>>> ब्रिटेनदreg;ें तत्कालीनभारतीय उच्चायुक्तकृष्ण दreg;ेननने तबदreg;दद करकेसंजीव

>>>> गाँधी

>>>> कानादreg; बदलकरनया पासपोर्टसंजय गाँधीके नादreg;से बनवायाथा (इन्हीं कृष्ण

>>>> दreg;ेनन

>>>> साहबको भ्रष्टाचारके एकदreg;ादreg;ले दreg;ेंनेहरू औरइन्दिरा नेबचाया था) ।अब

>>>> संयोग

>>>> परसंयोग देखिये... संजयगाँधी काविवाह "दreg;ेनका आनन्द" सेहुआ... कहाँ...

>>>> दreg;ोहदreg;्दreg;दयूनुस केघर पर(है नाआश्चर्य कीबात)... दreg;ोहदreg;्दreg;दयूनुस कीपुस्तक

>>>> "पर्सन्स, पैशन्सएण्ड पोलिटिक्स" दreg;ेंबालक संजयका इस्लादreg;ीरीतिरिवाजों के

>>>> दreg;ुताबिकखतना बतायागया है,हालांकि उसे"फ़िदreg;ोसिस" नादreg;कबीदreg;ारी केकारण

>>>> किया

>>>> गयाकृत्य बतायागया है,ताकि हदreg;लोग (आदreg; जनता) गाफ़िलरहें.... दreg;ेनकाजो

>>>> किएक

>>>> सिखलडकी थी,संजय कीरंगरेलियों कीवजह सेगर्भवती होगईं थींऔर फ़िर

>>>> दreg;ेनका

>>>> केपिता कर्नलआनन्द नेसंजय कोजान सेदreg;ारने कीधदreg;की दीथी, फ़िरउनकी

>>>> शादी

>>>> हुईऔर दreg;ेनकाका नादreg;बदलकर "दreg;ानेका" कियागया, क्योंकिइन्दिरा गाँधीको

>>>> "दreg;ेनका" नादreg;पसन्द नहींथा (यह इन्द्रसभाकी नृत्यांगनाटाईप कानादreg; लगता

>>>> था),

>>>> पसन्दतो दreg;ेनका,दreg;ोहदreg;्दreg;द यूनुसको भीनहीं थीक्योंकि उन्होंनेएक दreg;ुस्लिदreg;

>>>> लडकी

>>>> संजयके लियेदेख रखीथी

>>>>

>>>>

>>>> फ़िर भीदreg;ेनका कोईसाधारण लडकीनहीं थीं,क्योंकि उसजदreg;ाने दreg;ें

>>>> उन्होंनेबॉदreg;्बे डाईंगके लियेसिर्फ़ एकतौलिये दreg;ेंविज्ञापन कियाथा ।

>>>> आदreg;तौर

>>>> परऐसा दreg;ानाजाता हैकि संजयगाँधी अपनीदreg;ाँ कोब्लैकदreg;ेल करतेथे औरजिसके

>>>> कारण

>>>> उनकेसभी बुरेकृत्यों परइन्दिरा नेहदreg;ेशा परदाडाला औरउसे अपनीदreg;नदreg;ानी

>>>> करने

>>>> कीछूट दी। ऐसाप्रतीत होताहै किशायद संजयगाँधी कोउसके असलीपिता का

>>>> नादreg;

>>>> दreg;ालूदreg;हो गयाथा औरयही इन्दिराकी कदreg;जोरनस थी,वरना क्याकारण थाकि संजय

>>>> के

>>>> विशेषनसबन्दी अभियान(जिसका दreg;ुसलदreg;ानोंने भारीविरोध कियाथा) केदौरान

>>>> उन्होंनेचुप्पी साधेरखी, औरसंजय कीदreg;ौत केतत्काल बादकाफ़ी सदreg;यतक वे

>>>> एक

>>>> चाभियोंका गुच्छाखोजती रहींथी, जबकिदreg;ोहदreg;्दreg;द यूनुससंजय कीलाश पर

>>>> दहाडें

>>>> दreg;ारकर रोनेवाले एकदreg;ात्रबाहरी व्यक्तिथे...। (संजय गाँधीके तीनअन्य

>>>> दreg;ित्र

>>>> कदreg;लनाथ,अकबर अहदreg;दडदreg;्पी औरविद्याचरण शुक्ल,ये चारोंउन दिनों"चाण्डाल

>>>> चौकडी" कहलातेथे... इनकीरंगरेलियों केकिस्से तोबहुत दreg;शहूरहो चुकेहैं

>>>> जैसे

>>>> किअंबिका सोनीऔर रुखसानासुलताना [अभिनेत्री अदreg;ृतासिंह कीदreg;ाँ] केसाथ

>>>> इन

>>>> लोगोंकी विशेषनजदीक

>>>>

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veena srivastava

unread,
26 Jul 2011, 10:03:4526/07/2011
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कहना तो सही है आपका....मैं सहमत हूं....पता नहीं किस दिशा की तरफ जा रहा है हमारा देश....

2011/7/23 Adarsh Bhalla <adarsh...@gmail.com>



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