मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।
जब तक हमारे देश में बच्चे अपनी भाषा में बोलने के कारण मिली सजा की वजह
से आत्महत्या करने जैसा कदम उठाते रहेंगे तब तक हमारे लिए स्वतंत्रता,
रचनात्मकता और आधुनिकता जैसे शब्दों का कोई अर्थ नहीं रहेगा।
मीडिया में कुछ खबरों को दबा दिया जाता है क्योंकि वे सत्ता वर्ग को
कठघरे में खड़ा करती हैं। ऐसी खबरों को सामने लाना और उनपर चर्चा करना हम
सबका कर्तव्य है।
हिंदी ऐसी माँ की तरह है जिसके बच्चे उससे प्यार नहीं करते हैं। यह एक
कड़वा सच है। फ़ादर कामिल बुल्के जैसे हिंदी प्रेमी ने हिंदी बोलने वालों
के बारे में कहा था कि वे अपनी भाषा से उतना प्यार नहीं करते हैं जितना
प्यार अन्य भाषा बोलने वाले अपनी भाषा से करते हैं। अधिकतर हिंदी-भाषी
ऐसी संतान की तरह होते हैं जो कमाने के लिए घर से निकलकर पूरी दुनिया को
तो अपना लेती है लेकिन अपने घर की कोई खबर नहीं लेती है।
हिंदी बोलने वाले इस संपन्न और मधुर भाषा के प्रति उदासीन क्यों हैं?
शायद इसका जवाब हमारे इतिहास में छिपा है। सैकड़ों वर्षों की गुलामी ने
हमारी रचनात्मकता और स्वाभिमान पर नकारात्मक असर डाला है। शायद हम
भारतीयों को गुलामी की आदत हो गई है। कुछ लोग तो बड़े गर्व से बताते हैं
कि उन्हें हिंदी समझने में दिक्कत होती है। ऐसे लोग बचपन से हिंदी के
माहौल में पढ़े होते हैं, लेकिन अंग्रेज़ी के अंधभक्त होने के कारण
उन्हें हिंदी का प्रयोग करना अपने 'स्टेटस' को कम करने जैसा लगता है।
गुलाम मानसिकता के शिकार लोगों से और क्या उम्मीद की जा सकती है?
भाषा का सवाल समाज और राजनीति से भी जुड़ा है। जब बाज़ारवादी ताकतों को
समाज में पूरी छूट दे दी जाती है तब भाषा के मुद्दे पर सार्थक विचार-
विमर्श का माहौल नहीं बन पाता है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चे को
उसकी मातृभाषा में शिक्षा (कम से कम प्राथमिक शिक्षा) नहीं देने से उसकी
प्रतिभा पर नकारात्मक असर पड़ता है। भारत में रट्टू तोते जैसे छात्रों की
सफलता से उनके माता-पिता भले ही खुश हो जाएँ लेकिन समाज में ये छात्र
केवल भीड़ का हिस्सा बनकर रह जाते हैं।
जब तक सार्थक भाषा नीति के लिए सरकार पर दबाव नहीं डाला जाएगा तब तक
आत्महत्या की इन घटनाओं को रोकना संभव नहीं होगा।
सादर,
सुयश
9868315859
9811711884
http://anuvaadkiduniya.blogspot.com
http://baatenduniyaki.blogspot.com
On 2 फरवरी, 08:04, LOCHAN MAKHIJA <lochan.makh...@gmail.com> wrote:
> - कृपया संलग्न समाचार पढ़ें...... विचित्र किंतु सत्य ...... ऐसा भारत
> में ही हो सकता है .......
> - यह घटना विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक, स्वतंत्र राष्ट्र की हकीकत का
> बयान करती है....
> - जहां मातृभाषा बोलने पर बच्चों को मानसिक और शारीरिक रूप से इतना
> प्रताडि़त किया जाता है कि वे आत्महत्या करने पर मज़बूर हो रहे हैं...
> - यह मत सोचिए कि यह असमिया भाषियों की समस्या है...
> - इस तरह की घटनाएं भारत के कोने-कोने में हो रही हैं... जो दबा दी जाती
> हैं..
> - अनदेखी कर दी जाती हैं... सुर्खियां नहीं बनतीं.... हैडलाइन नहीं
> बनतीं.....
> - इस तरह की खबरें पढ़ सुन कर यदि आपको बेचैनी न हो... गुस्सा न आए... तो
> मान लीजिए मैकाले की फसल पक कर तैयार हो चुकी है...
> - मान लीजिए कि आप ही मैकाले की फसल हैं...
> - मान लीजिए कि आपकी आत्मा. मर चुकी है...
> - मान लीजिए कि आपकी संवेदना मर चुकी है...
> - और हां ... यदि आप वाकई बेचैन हो रहे हैं... तो कृपया इस खबर को अपने ईमेल
> के जरिए जितने लोगों तक पहुंचा सकते हैं.... पहुंचाएं....
> - ज्यादा से ज्यादा लोगों को बताएं.... इससे हम सबको कम-से-कम दर्पण / आईने
> में अपनी सही सूरत देखने का अभ्यास होगा...
> - क्या पता कहीं से कुछ चिनगारी ही निकल आए .... कहीं से कुछ आग भी निकल आए
> ... जो ठंडे पड़ते इस गुलाम देश में कुछ गर्मी पैदा कर सके... और हमारा न
> सही... कम-से-कम ... बच्चों का भविष्य तो बचा सके....
> -
>
> (लोचन मखीजा, गुवाहाटी)
>
> मोबाइल नं.- 9957181130
>
> (सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे्र संतु निरामया:)
>
> The Telegraph - Calcutta (Kolkata) Northeast School rebuke provokes suicide bid.htm
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>
> Girl attempts suicide after rebuke for speaking in Assamese.htm
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