आदर्शवादिता का पुट घोले रहने की आदत |
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Everything with a little bit of idealism |
हमें अपने आपको एक प्रकाश यंत्र के रूप में, प्रचार तंत्र के रूप में विकसित करना चाहिए । भले ही लेख लिखना, भाषण देना न आये पर सामान्य वार्तालाप में आदर्शवादिता का पुट घोले रहने की आदत डाले रह सकते हैं और इस प्रकार अपने सम्पर्क क्षेत्र में नवनिर्माण विचारधारा के लिए गहरा स्थान बना सकने में सफल हो सकते हैं । इसके लिए न अलग से समय निकालने की आवश्यकता है, न अतिरिक्त कार्यक्रम बनाने की । साधारण दैनिक वार्तालाप में आदर्शवादी परामर्श एवं प्रेरणा देते रहने की अपनी आदत बनानी पड़ती है और यह परमार्थ प्रयोजन सहज ही, अनायास ही स्वसंचालित रीति से अपना काम करता है । यहाँ एक बात ध्यान रखने की है कि किसी व्यक्ति को उसकी गलती सुनना मंजूर नहीं । गलती बताने वाले को अपना अपमानकर्ता समझता है और अपने पूर्वाग्रह को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर उसी का समर्थन करने में अपनी मान रक्षा समझता है । इसलिए जनमानस की अति दु:खद दुर्बलता को हमें ध्यान में रखना होगा और जो बात कहनी है, सीधे आदेश देने या सीधी गलती बताने की अपेक्षा उसे घुमाकर कहना चाहिए । यदि इतनी कुशलता सीख ली गई तो फिर बिना विरोध का सामना किए अपना तीर निशाने पर लगा रहेगा । -पं. श्रीराम शर्मा आचार्य युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (१.५४) |
We
should develop ourselves into devices that illuminate and into systems
that disseminate. We may not know how to write articles, we may not be
orators. We can, however, infuse our sincere ideals into our day to day
conversations, making every interaction a tiny and solid step in the
direction of spreading the tenets of our thought revolution movement. No
special provisions need to be made for this effort, it is a brilliant
yet natural way to be consistently at work via honest, sincere, and
inspiring social interactions.
Translated from - Pandit Shriram Sharma Acharya’s work Yug Nirman Yojna - philosophy, format and program -66 (1.54) |