हिंदी ब्लॉगर्स पर मिड डे मुबई में खास आलेख

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apni boli

unread,
Mar 9, 2007, 7:05:57 AM3/9/07
to Chit...@googlegroups.com
 
साथियों
 
अब तो अंग्रेजी अखबार भी हिंदी चिठ्ठाकारों का लोहा मानने लगे हैं। देखिए यह लेख जो मुंबई के अंग्रेजी अखबार मिड डे में प्रकाशित हुआ है।
 
 
 
नीलिमा
मुंबई

जीतू | Jitu

unread,
Mar 9, 2007, 2:18:04 PM3/9/07
to Chit...@googlegroups.com
नीलिमा जी,
बहुत अच्छी खबर सुनाई आपने।

एक काम और करा कीजिए, अब यहाँ दो नीलिमा है, एक मुम्बई से, और दूसरी जो शोध कर रही है (शायद दिल्ली से) इसलिए अपना नाम पूरा लिखा करिए, ताकि कोई कन्फ़्यूजन ना रहे।

धन्यवाद।
-जीतू

Debashish

unread,
Mar 9, 2007, 2:26:39 PM3/9/07
to Chit...@googlegroups.com
Maazra kuch yun hai ki mukhya dhaara ke media waale ab bloggers ko bhi chain se jeene nahi denge ;)  Chaliye Limelight hame nahi chahiye per haal ke "mohalla puran" ke baad to yeh kehne ka man karta hai ki "patrakaar blogger" bhi hamein nahi chahiye.

Debashish
--
For information about me and other links visit my homepage at http://www.debashish.com.

Tarun

unread,
Mar 9, 2007, 2:35:30 PM3/9/07
to Chithakar
Us lekh me se ye copy karke paste kar reha hoon, ab ye baat kitni sahi
hai aap log batayen -

"Many of these blogs are run by television journalists. Those of us
who have ranted endlessly about the degeneration of Hindi TV news
would be surprised by this"

us aalekh me jyadatar unhi bloggers ka jikra hai jo ki peshe se
patrkaar hain aur abhi abhi aaye hain.

Isliye jyada khushi se fool ke kuppa hone ki koi baat nahi hai.

श्रीश

unread,
Mar 9, 2007, 11:03:09 PM3/9/07
to Chithakar
उपरोक्त लेख हिन्दी ब्लॉगिंग की सही तस्वीर पेश नहीं करता। इसमें ऐसा
लिखा गया है जैसे पत्रकार ने ही ब्लॉग जगत जन्म दिया और वही इसे चला रहे
हैं। अन्य हिन्दी ब्लॉगों को छोड़िए, हिन्दी ब्लॉगिंग की जीवनधारा नारद तक
का उल्लेख नहीं है। लेख लिखना तब सार्थक होता अगर उसमें नारद, परिचर्चा,
सर्वज्ञ आदि की चर्चा की जाती। यह लेख हिन्दी ब्लॉगिंग के बारे में न
होकर स्वप्रचार मात्र हेतु ही लिखा गया है।

जैसा देबाशीष जी ने कहा मोहल्ला पुराण लाकर इस तरह का वैमनस्य फैलाने
वाले "पत्रकार ब्लॉगर" हमें नहीं चाहिए। ये लोग इतने पहुँचे हुए और समर्थ
हैं तो हिन्दी के प्रचार हेतु क्या कर रहे हैं ये बताएं, बजाय अपनी ऊर्जा
को सार्थक कामों में लगाने के बेकार के काल्पनिक झगड़े खड़े कर आपसी
मनमुटाव पैदा रहे हैं। हिन्दी को अब नेट पर फैलने से कोई नहीं रोक सकता,
कोई मदद करना चाहे तो अचछी बात है लेकिन अब इसे बैसाखियों की जरुरत नहीं।

apni...@gmail.com

unread,
Mar 10, 2007, 12:28:42 AM3/10/07
to Chithakar
बिल्कुल सही कहा आपने मुझे बी यही बात कचोट रही थी कि इस लेख को या तो
बहुत जल्दबाजी में लिखा गया है या फिर मात्र लिखने के लिए लिखा गया है।
चिठ्ठाकार साथियों से निवेदन है कि इस पर अपनी ओर से और प्रतिक्रियाएं
दें ताकि मिड डे अखबार को इन सभी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराया जाए।

जैसा कि जीतूजी ने कहा है कि यहां दो नीलिमा हो गई है तो आप मुझे रजनी के
नाम से जान सकते हैं..

रजनी
मुंबई

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