श्वेता है आधा श् और वेता
आश्चर्य है आश् और चर्य
श्बेता है श् और बेता
श्च, श्वे, श्बे - दिखने में अलग लग रहे हैं क्योंकि मुद्रलिपि - यानी
फ़ॉण्ट में संयक्ताक्षर अलग अलग हैं। श्च और श्व के लिए जुड़े
संयुक्ताक्षर हैं और श्ब के लिए नहीं है। यह कोई गलती नहीं है।
आलोक
2007/10/15, sagar chand nahar <sagarcha...@gmail.com>:
--
Can't see Hindi? http://devanaagarii.net
91 40 6617 3487
On Oct 15, 12:30 pm, "Neeraj Sharmaa" <shrinath...@gmail.com> wrote:
> आलोंक जी
> आपने जो उत्तरं दिया है वो सागरजी के सवाल का जवाब नहीं है। मैं भी इस समस्या
> से जूझ रहा हँ, पर कोई भी संतोषप्रद जवाब नहीं दे पाया है।
>
> ज्ञानीजन कहते है आश्चर्य भी ठीक हैं और श्वेता भी
> तो फिर शंकर को श्रंकर और शक्कर को श्रक्कर क्यों नहीं लिखते ये लोग।
>
> नीरज शर्मा
>
> ---------- Forwarded message ----------
> From: आलोक कुमार <a...@devanaagarii.net>
> Date: Oct 15, 2007 12:22 PM
> Subject: [Chitthakar] Re: बरहा की एक और परेशानी
> To: Chit...@googlegroups.com
>
> सागर जी,
>
> श्वेता है आधा श् और वेता
> आश्चर्य है आश् और चर्य
> श्बेता है श् और बेता
>
> श्च, श्वे, श्बे - दिखने में अलग लग रहे हैं क्योंकि मुद्रलिपि - यानी
> फ़ॉण्ट में संयक्ताक्षर अलग अलग हैं। श्च और श्व के लिए जुड़े
> संयुक्ताक्षर हैं और श्ब के लिए नहीं है। यह कोई गलती नहीं है।
> आलोक
>
> 2007/10/15, sagar chand nahar <sagarchand.na...@gmail.com>:
समस्या परिभाषित करें।
> ज्ञानीजन कहते है आश्चर्य भी ठीक हैं और श्वेता भी
> तो फिर शंकर को श्रंकर और शक्कर को श्रक्कर क्यों नहीं लिखते ये लोग।
>
शंकर और श्रंकर में फ़र्क है।
श् + रं + कर = श्रंकर < -- (हलंत + र) श्र में सम्मिहित है। (ऐसा कोई
शब्द नहीं है, केवल उदाहरणार्थ)
शं + कर = शंकर
शक्कर और श्रक्कर में फ़र्क है।
श + क्कर = शक्कर <-- केवल श, श्र नहीं
श् + र + क्कर = श्रक्कर < -- (हलंत + र श्र) में सम्मिहित है। (ऐसा कोई
शब्द नहीं है, केवल उदाहरणार्थ)
श्वेता और श्र्वेता में फ़र्क है।
श् + वेता = श्वेता
श् + र् + वेता = श्र्वेता
आश्चर्य और आश्र्चर्य में फ़र्क है।
आश् + चर्य = आश्चर्य
आश् + र् + चर्य = आश्र्चर्य <-- (ऐसा कोई शब्द नहीं है, केवल उदाहरणार्थ)
इसी प्रकार,
श + ऋ की मात्रा + अनुनासिक + गार = शृंगार (यह सही है)
श् + र + ऋ की मात्रा + अनुनासिक + गार = श्रृंगार (यह सही नहीं है)
आलोक
सागर भाई...
आपने जो लिखा - "s+h+^+w+e+t+a = श्वेता"
यहाँ तो "श्वेता" अभी भी "श्वेता" ही है।
हालांकि नोटपेड पर ये वैसा टाइप हो गया जैसा चाहते थे। लेकिन वहाँ से यहां चिपकाया तो ऐसा आया - "श्वेता"। हो सकता है फायरफाक्स अथवा जीमेल की समस्या हो।
नितिन
मैंने इनको हेक्स में बदल कर देखा और इसका कारण (शायद) यह है कि
"श्वेता" में श + ् के बाद एक अदृश्य कैरेक्टर, जिसका हेक्स मान है
200D और जिसे ZERO WIDTH JOINER कहा जाता है, मौजूद है और इससे, तकनीकी
रूप से, श् तथा व का कंजक्ट बन ही नहीं पा रहा व शब्द अलग अलग दिखते हैं
क्योंकि यह "जॉयनर" इन्हें संयुक्ताक्षर बनने ही नहीं दे रहा।
तो "श्वेता" में दरअसल श + ् + ZERO WIDTH JOINER + व + े + त + ा है।
बारहा यह जानबूझकर करता है या ये कोई बग है यह मैं नहीं जानता क्योंकि
अपन तो तख्ती के भगत हैं। शायद अन्य विस्तार से बता सकें।
On Oct 15, 2:39 pm, "sagar chand nahar" <sagarchand.na...@gmail.com>
wrote:
> नितिन भाई
> आपने बिल्कुल सही कहा, लगता है फायर फॉक्स में यह तरीका नहीं चलता। मैने अपने
> इस समूह की मेल दोनो ब्राऊजर में खोल कर देखी, फायर फॉक्स में इस तरीका का कोई
> प्रभाव नहीं पड़ा जबकि आई में सही दिख रहा है, बगवान जाने क्या परेशानी है।
> मै दोनों ब्राऊजर के स्क्रीन शॉट सलंग्न कर रहा हूँ
>
> On 10/15/07, Nitin Bagla <nitinba...@gmail.com> wrote:
>
>
>
> > सागर भाई...
> > आपने जो लिखा - "s+h+^+w+e+t+a = श्वेता"
> > यहाँ तो "श्वेता" अभी भी "श्वेता" ही है।
> > हालांकि नोटपेड पर ये वैसा टाइप हो गया जैसा चाहते थे। लेकिन वहाँ से यहां
> > चिपकाया तो ऐसा आया - "श्वेता"। हो सकता है फायरफाक्स अथवा जीमेल की समस्या
> > हो।
> > नितिन
>
> --
> सागर चन्द नाहरwww.nahar.wordpress.com
> 91 40 6617 3487
>
> IE7.JPG
> 24KViewDownload
>
> FF2.JPG
> 24KViewDownload
तीनों अलग अलग आकार दिखा सकते हैं, हालाँकि व्याकरण की दृष्टि से तीनो एक ही हैं।
वैसे किसी भी संयुक्ताक्षर के तीन से भी अधिक रूप हो सकते हैं, इसलिए ZWJ
और ZWNJ कोई बहुत बढ़िया चीज़ हैं ऐसा मुझे नहीं लगता।
किसी भी संयुक्ताक्षर को ज्ञ को तीन अलग तरह से लिखा जा सकता है, ZWJ और
ZWNJ की बदौलत। हरिराम जी ने अपने ज्ञ वाले लेख में इसका इस्तेमाल किया
है।
http://hariraama.blogspot.com/2007/09/secret-of-devanaagarii-conjunct-jna.html
आलोक
2007/10/15, Debashish <deba...@gmail.com>:
लिखना चाहता था कि कोई भी संयुक्ताक्षर किसी भी मुद्रलिपि(फ़ॉण्ट) में
तीन अलग तरह से लिखा जा सकता है। (पर ज़रूरी नहीं है कि दूसरी मुद्रलिपि
में भी वही तीन रूप उन विधियों से मिलें, इसका कोई मानकीकरण नहीं है)
2007/10/15, आलोक कुमार <al...@devanaagarii.net>:
http://rachanakar.blogspot.com/2007/02/hindi-sahitya-e-book.html
Bhuvnesh Sharma's Hindi sahitya links:
http://www.esnips.com/web/hindisahitya
Ravi
रवि
On 15 अक्तू, 17:25, "Shrish Sharma" <sharma.shr...@gmail.com> wrote:
> लो जी हम भी अपना (अ) ज्ञान बघारने पहुँच गए। :)
>
> सागर भाई आपने जो प्रश्न उठाया उससे मैं भी जूझ चुका हूँ जब मुझे अपने हरियाणवी
> चिट्ठे पर संयुक्ताक्षरों को पारम्परिक रुम में न दिखाकर सामान्य रुप में
> दिखाना था।
>
> सबसे पहली बात मैं वही कहूँगा जो आलोक जी और देबु दा ने कही, *श्व *बिल्कुल सही
> है। ये आधा *श* और *व* से ही मिलकर बना है। यह कुछ हद तक *श्र *जैसा दिखता है
> जिस कारण आप भ्रमित हो रहे हैं।
>
> श्व = श् + व = श + ् + व
>
> इसका इस तरह से दिखना फॉण्ट के ऊपर निर्भर करता है। श्व की तरह कई अन्य
> संयुक्ताक्षर हैं जो
> मंगल आदि यूनिकोड फॉण्टों में
> पारम्परिक रुप से प्रदर्शित होते हैं। लेकिन अब छपाई में आम तौर पर
> सामान्य रुप से आधा अक्षर
> अथवा हलन्त के साथ दिखा दिया जाता है। इस बारे में पिताजी ने बताया कि आम
> हिन्दी पाठक की
> आसानी के लिहाज से ऐसा किया जाता है। उदाहरण के लिए ब्राह्मण में आधा *ह* और *म
> * जुडे़ हैं लेकिन आजकल उन्हें ब्राह्मण
> के रुप में लिखा जाता है। इस तरह के बहुत से वर्ण हैं, इस बारे एक लेख
> अलग से लिखना होगा।
>
> *सागर भाई उवाच:
>
> **मुझे श्वेतांबर शब्द लिखना हो तो मैं कैसे लिखूंगा?
> श्वेतांबर शब्द हिन्दी के हिसाब से सही नहीं है। होना चाहिये आधा श और वेतांबर।
>
> *सागर भाई श्वेतांबर = श् + वेतांबर ही है।
>
> *वे लोग अक्सर कहते हैं कि हमें आधा श और वेतांबर चाहिये ना कि "श्वे", और देखा
> जाय तो तकनीकी रूप से यह शब्द/अ क्षर सही भी नहीं लगता।
>
> *तकनीकी रुप से तो सही है, हाँ आम आदमी शायद एकदम समझ न पाए, इसलिए सामान्य तौर
> पर आप अलग करके लिख सकते हैं।
>
> यदि आप चाहते हैं कि इस तरह से संयुक्ताक्षर न बनें तो ZWZ तथा ZWNZ का प्रयोग
> करें।
>
> ZWZ से आधा अक्षर छपेगा तथा पारम्परिक रुप से संयुक्ताक्षर नहीं बनेगा। बल्कि
> सामान्य रुप से बनेगा।
>
> ZWNZ से पहला अक्षर हलन्त के साथ प्रकट होगा तथा संयुक्ताक्षर नहीं बनेगा।
>
> जैसा कि आलोक जी ने बताया।
>
> श् + ZWJ + व <-- अधजुड़ा रूप, जो सागर जी चाहते हैं
> श् + ZWNJ + व <-- बिल्कुल संयुक्ताक्षर विहीन, हलंत दिखेगा
> श् + व <-- जुड़ा हुआ रूप
>
> अब ZWZ तथा ZWNZ *बरहा* में मौजूद होते हैं। ZWZ के लिए ^ (SHIFT+6) का तथा
> ZWNZ के लिए ^^ का प्रयोग करें।
>
> तो
>
> श्वेताम्बर = श् + ZWZ (^) + वेताम्बर
>
> कुछ अन्य उदाहरण:-
>
> क्त = क् + त
> क्त = क् + ZWZ + त
>
> द्म = द् + म
> द्म = द् + ZWZ + म
>
> वैसे हिन्दी वर्णमाला की सही समझ मुझे तब से होनी शुरु हुई जब से मैंने
> इनस्क्रिप्ट पर काम करना शुरु किया, क्योंकि ये देवनागरी वर्णमाला पर ही आधारित
> है।
>
> इनस्क्रिप्ट में ZWZ के लिए कुञ्जी संयोजन है CTRL + SHIFT + 1
> ZWNZ के लिए CTRL + SHIFT +2
>
> और हाँ ओपेरा तथा फायरफॉक्स (बिना MozTxtAlign स्क्रिप्ट के) हिन्दी के
> संयुक्ताक्षर सही से नहीं दिखा सकते। इसलिए इस मेल को IE में पढ़ें।*
>
> *On 10/15/07, आलोक कुमार <a...@devanaagarii.net> wrote:
>
>
>
>
>
> > > किसी भी संयुक्ताक्षर को ज्ञ को तीन अलग तरह से लिखा जा सकता है, ZWJ और
>
> > लिखना चाहता था कि कोई भी संयुक्ताक्षर किसी भी मुद्रलिपि(फ़ॉण्ट) में
> > तीन अलग तरह से लिखा जा सकता है। (पर ज़रूरी नहीं है कि दूसरी मुद्रलिपि
> > में भी वही तीन रूप उन विधियों से मिलें, इसका कोई मानकीकरण नहीं है)
>
> > 2007/10/15, आलोक कुमार <a...@devanaagarii.net>:
> > > श् + ZWJ + व <-- अधजुड़ा रूप, जो सागर जी चाहते हैं
> > > श् + ZWNJ + व <-- बिल्कुल संयुक्ताक्षर विहीन, हलंत दिखेगा
> > > श् + व <-- जुड़ा हुआ रूप
>
> > > तीनों अलग अलग आकार दिखा सकते हैं, हालाँकि व्याकरण की दृष्टि से तीनो एक
> > ही हैं।
> > > वैसे किसी भी संयुक्ताक्षर के तीन से भी अधिक रूप हो सकते हैं, इसलिए ZWJ
> > > और ZWNJ कोई बहुत बढ़िया चीज़ हैं ऐसा मुझे नहीं लगता।
>
> > > किसी भी संयुक्ताक्षर को ज्ञ को तीन अलग तरह से लिखा जा सकता है, ZWJ और
> > > ZWNJ की बदौलत। हरिराम जी ने अपने ज्ञ वाले लेख में इसका इस्तेमाल किया
> > > है।
>
> >http://hariraama.blogspot.com/2007/09/secret-of-devanaagarii-conjunct...
>
> > > आलोक
>
> > > 2007/10/15, Debashish <debash...@gmail.com>:
> > > > मुझे नहीं लगता कि ये ब्राउज़र संबंधित समस्या है क्योंकि जहाँ ये शब्द
> > > > (शायद) बारहा से कटपेस्ट कर शब्द चस्पा किया गया है वहाँ ये "श्वेता" की
> > > > बजाय "श्वेता" ही दिख रहा है।
>
> > > > मैंने इनको हेक्स में बदल कर देखा और इसका कारण (शायद) यह है कि
> > > > "श्वेता" में श + ् के बाद एक अदृश्य कैरेक्टर, जिसका हेक्स मान है
> > > > 200D और जिसे ZERO WIDTH JOINER कहा जाता है, मौजूद है और इससे, तकनीकी
> > > > रूप से, श् तथा व का कंजक्ट बन ही नहीं पा रहा व शब्द अलग अलग दिखते हैं
> > > > क्योंकि यह "जॉयनर" इन्हें संयुक्ताक्षर बनने ही नहीं दे रहा।
>
> > > > तो "श्वेता" में दरअसल श + ् + ZERO WIDTH JOINER + व + े + त + ा है।
> > > > बारहा यह जानबूझकर करता है या ये कोई बग है यह मैं नहीं जानता क्योंकि
> > > > अपन तो तख्ती के भगत हैं। शायद अन्य विस्तार से बता सकें।
>
> > > > On Oct 15, 2:39 pm, "sagar chand nahar" <sagarchand.na...@gmail.com>
> > > > wrote:
> > > > > नितिन भाई
> > > > > आपने बिल्कुल सही कहा, लगता है फायर फॉक्स में यह तरीका नहीं चलता।
> > मैने अपने
>
> ...
>
> और पढ़ें »- उद्धृत पाठ छिपाएँ -
>
> उद्धृत पाठ दिखाए
यह बात तो समझ नहीं आई। रूसी का श्तो (क्या) - अगर देवनागरी में लिखना
हो तो श्तो ही लिखेंगे न, स्तो नहीं।
2007/10/15, Suresh Chiplunkar <suresh.c...@gmail.com>:
श के विविध प्रयोग से सम्बन्धित आपकी समस्याओं के समाधान प्रस्तुत करते
हुए सचित्र उत्तर देकर समझाना इस चर्चा समूह में सम्भव नहीं है। अतः
देवनागरी लिपि का क्रम-विकास शोध से उद्धृत करते हुए "देवनागरी श का
रहस्य" नामक लेख अपने ब्लॉग पर शीघ्र ही प्रकाशित करूँगा।
हरिराम
"देवनागरी 'श' का रहस्य" नामक एक आलेख यहाँ प्रकाशित कर दिया है- <http://
hariraama.blogspot.com/2007/10/secrets-of-devanaagarii-sh.html>
कृपया देखें और कोई सुझाव हो, सुधार करना हो तो बताएँ।
हरिराम
बंधुओ मैं रेमिंगटन कीबोर्ड का प्रयोग करता हूँ. मैंने तो मजे से लिख दिया श्वेतांबर, और श्वेतांबर भी लिख सकता हूं. जो लोग रेमिंगटन की बोर्ड को अवैज्ञानिक और कठिन मानते हैं वे भी देख लें कि इस कीबोर्ड के जरिए लगभग सब कुछ लिखना संभव है.
बहरहाल कमियां तो सभी कीबोर्ड में हैं.श्व जब श्व के रूप में दिखता है तो इसके श्च यानि श्च होने का भ्रम होता है जैसा कि कई साथियों ने इस चर्चा के आरंभ में लिखा है. लेकिन यह श्व या श्व ही है न कि श्च या श्च.संयुक्ताक्षरों को लेकर हिंदी में कई विवाद हैं और परंपरावादी इसे अशुद्ध हिंदी बता कर विरोध करते हैं. मेरे मत में तो श्वेता ही सही है और श्वेता लिखने में भी कोई बुराई नहीं है.मित्रो मेरा मानना है कि अंत में सिर्फ यह मायने रखता है कि सही लिखा या नहीं, इस बात के कोई मायने नहीं कि कैसे लिखा. इन सभी समस्याओं की एकमात्र वजह यही है कि हिंदी कंप्यूटिंग अभी विकास की प्रक्रिया से गुजर रही है और दुर्भाग्य से इसे सुनियोजित तरीके से करने का कोई सिस्टम नहीं है.हिंदी लिखने के लिए दर्जनों कीबोर्ड उपलब्ध होने के बावजूद हम किसी को भी संपूर्ण नहीं मान सकते क्योंकि अंत में हम इन्हें मूलत: अंग्रेजी लिखने के लिए बने QWERTY कीबोर्ड पर हिंदी आरोपित करते हैं. मुझे लगता है कि जब तक रशियन, चाइनीज या जैपनीज कीबोर्ड की तरह हिंदी कीबोर्ड का विकास नहीं होगा, इन समस्याओं का ठोस समाधान मिलना मुश्किल है. एक ऐसा कीबोर्ड जो हिंदी टाइप करने के लिए ही बनाया जाए और उसमें सभी संयुक्ताक्षर व अन्य जटिल वर्ण लिखने का सीधा समाधान उपलब्ध हो. शायद तब हिंदी टाइपिंग सॉफ्टवेयर संबंधी ये समस्याएं भी समाप्त हो सकेंगीं.
On 10/15/07, Hariram <hari...@gmail.com> wrote:बन्धुगण,
श के विविध प्रयोग से सम्बन्धित आपकी समस्याओं के समाधान प्रस्तुत करते
हुए सचित्र उत्तर देकर समझाना इस चर्चा समूह में सम्भव नहीं है। अतः
देवनागरी लिपि का क्रम-विकास शोध से उद्धृत करते हुए "देवनागरी श का
रहस्य" नामक लेख अपने ब्लॉग पर शीघ्र ही प्रकाशित करूँगा।
हरिराम
श्रीश जीमैं सोच रहा था कि यह बरहा का जिन्न हरिराम जी ने वापस बोतल में बंद कर दिया है.
कृपया मेरा नाम संजय ही लिखें तो मुझे अच्छा लगेगा.
देवनागरी लिपि में मूलतः और शुद्धतः पाँच वर्गों (क, च, ट, त प) के
पाँचवें वर्ण (ङ, ञ, ण, म, न) के आधे अक्षर (अर्थात् ङ्, ञ्, ण्, म्, न्)
का प्रयोग ही उस वर्ग-विशेष के चारों व्यञ्जनों के पूर्व आनेवाली
अनुनासिक ध्वनि के लिए करना विधेय है।
चूँकि हिन्दी मैनुअल टाइपराइटर में 48 keys में देवनागरी लिपि को काट-
छाँट कर समाना पड़ा इसलिए हिन्दी में कम प्रयुक्त होने वाले ङ और ञ को
हटा देना पड़ा था। टंकण की सुविधा के लिए पंचमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार
(ऊपरी बिन्दी) का प्रयोग करने का प्रचलन आरम्भ हुआ तथा भारत सरकार के
राजभाषा विभाग द्वारा जारी "मानक हिन्दी वर्तनी" में इसके प्रयोग को
मान्य ठहराया गया। टाइपराइटर में अनुस्वार और चन्द्रबिन्दू को टाइप करने
की कुञ्जियाँ प्रदान की गईं, जिन्हें ङ और ञ का प्रतीक माना गया था।
हालांकि कुछ विद्वानों के अनुसार अनुस्वार की व्युत्पत्ति 'ङ' से (ङ की
सिर्फ बिन्दी को रखकर) हुई है, तथा चन्द्रबिन्दु अर्थात् अनुनासिक ध्वनि
की व्युत्पत्ति 'ञ' से हुई है ( ञ् के नीचे व्यञ्जन वर्ण लिखने से जो
आकृति बनेगी, वह किसी वर्ण के ऊपर चन्द्रबिन्दू लगाने से बनी आकृति के
कुछ कुछ समान होती है। लेकिन यहाँ यह चर्चा का विषय नहीं है। कृपया
फिलहाल इस पर कोई प्रश्न न उठाएँ क्योंकि यह विवाद का विषय बन सकता है।
इस पर शोध चल रहा है, शोध पूरा होने के बाद विस्तार से प्रकाशित किया
जाएगा।
पंचमाक्षरों के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग भले ही स्वीकृत एवं मान्यता
प्राप्त है, भले ही प्रायोगिक सरलता के लिए अच्छा है। किन्तु पंचमाक्षरों
(ङ्, ञ्, ण्, म्, न्) के स्थान पर अनुस्वार के प्रचलन के कारण आम लोगों
द्वारा भ्रमवश कई गलत प्रयोगों को बढ़ावा मिला-- यथा--
वाङ्मय या वाङ्मय के स्थान पर गलती से 'वांमय' लिखना
सम्मान के स्थान पर गलती से 'संमान' लिखना
कण्व के स्थान पर गलती 'कंव' लिखना
'घञ' प्रत्यय के स्थान गलती से पर 'घं' लिखना
अन्वय के स्थान पर गलती से 'अंवय' लिखना
इस प्रकार अर्थ का अनर्थ होने लगा।
वर्तमान युनिकोडित एडवान्स्ड कम्प्यूटिंग में इस गलत प्रयोग के कारण
अनेकों जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ता है, यथा--
किसी शब्दकोश में यदि "संजय" शब्द को खोजें तो यह 'स' के आरम्भ में
मिलेगा,
उसी शब्दकोश में यदि "सञ्जय" शब्द को खोजें तो यह 'सझौ" के बाद,
'वाञ्छित' के बाद आएगा,
यदि दोनों रूपों में शब्दों को शब्दकोश में शामिल किया जाए तो एक ही शब्द
के अनेक रूप अलग अलग स्थानों पर अलग अलग क्रम में रखने पड़ेंगे और
शब्दकोश अनावश्यक रूप से काफी बड़ा हो जाएगा, भाषा बोझिल और जटिल हो
जाएगी। Indexing में अनन्त लाईलाज समस्याएँ सृजति हो जाएँगी।
यदि किसी सर्च इंजन में उपरोक्त में से एक शब्द से तलाश की जाए तो केवल
उसी रूप में लिखे गए पेज खुलेंगे। दूसरे रूप में भी खोजने के लिए दुबारा
सर्च करना पड़ता है।
लेकिन उपयोक्ता के लिए शीघ्र टंकण करने, सरलता से टंकण कर पाने की सुविधा
देना भी आवश्यक है।
चूँकि वर्तमान युनिकोडित देवनागरी में वर्णों को आधा करने के लिए 'हलन्त'
का प्रयोग अतिरिक्त रूप से करना पड़ता है, क्योंकि आधे अक्षरों, अर्थात्
मूल व्यञ्जनों अर्थात् 'अ'-स्वर रहित व्यञ्जनों की encoding नहीं की गई
है। चूँकि आधे व्यञ्जन को टाइप करने के लिए inscript में दो कुञ्जियाँ
(वर्ण+हलन्त) दबानी पड़ती है।
चूँकि बरहा तथा रेमिंगटन टाइपराइटर लेआऊट में आधे व्यञ्जन वर्ण को टाइप
करने के लिए भले ही सिर्फ एक ही कुञ्जी दबानी पड़े, लेकिन यह तीन कोडों
में बदलकर save तथा process होता है, "वर्ण+हलन्त+ZWJ"
यह हिन्दुस्तान की विडम्बना है कि आधे अक्षर के लिए दो या तीन कुञ्जियाँ
दबानी पड़ती है, दो या तीन बाईट की जगह घेरी जाती है, जबकि पूरे अक्षर के
लिए सिर्फ एक बाईट की। यह भारत की विडम्बना है कि ISCII तथा युनिकोड
दोनों में ही ने ही देवनागरी के साथ न्याय नहीं किया। यह भारत का
दुर्भाग्य है कि कुछ तथाकथित भारतीय विद्वानों ने ही देवनागरी युनिकोड
में "शुद्ध व्यञ्जन" वर्णों की भी encoding करने के भारत सरकार के
प्रस्ताव को भी रद्द करवा दिया।
चूँकि लोगों को दो या तीन कुञ्जियाँ दबाकर ङ्, ञ्, ण्, न्, म् टाइप करने
के वजाए सिर्फ 'अनुस्वार' (ऊपरी बिन्दी) टाइप करके अपने विचार सम्प्रेषित
करने में सरलता होती है। इसलिए लोग अनुस्वार का प्रयोग करेंगे ही । भले
ही कम्प्यूटिंग में कितनी ही समस्याएँ आएँ, भले ही अर्थ का अनर्थ हो,
उन्हें इससे कोई मतलब नहीं। यह तो प्रोग्रामरों और डेवलपरों, शब्दकोश
निर्माताओं, सर्च इंजन प्रबन्धकों का सिर दर्द है, कि वे कैसे समस्या से
निबटें।
अतः उपयोक्ताओं के लिए टंकण की सरलता को बनाए रखते हुए, पुराने टाइपराइटर
पर टंकण के अभ्यास को छेड़े/बिगाड़े बिना, कम्प्यूटिंग में भी कोई समस्या
सृजित न हो, -- दोनों लक्ष्यों के बीच तालमेल बनाते हुए उपयुक्त स्पेल
चेकर प्रोग्राम का विकास होना चाहिए। इसके लिए मैंने हिन्दी "स्पेल
चेकर" (वर्तनी शोधक) प्रोग्रामों के निर्माताओं के मार्गदर्शन के लिए कुछ
मद प्रस्तुत किए थे-- जो <http://cmwiki.sarai.net/index.php/
AspellPansari> में देख सकते हैं।
इसकी मद सं.7 में यह प्रस्ताव दिया गया है कि
In Unicoded Devanagari Spell-checker
provision should be made to auto-replace all
"अनुस्वार(U0902)+क[or ख, ग, घ]" to "ङ्(U0919+U094D)+क[or ख, ग, घ]"
"अनुस्वार(U0902)+च[or छ, ज, झ]" to "ञ्(U091E+U094D)+च[or छ, ज, झ]"
"अनुस्वार(U0902)+ट[or ठ, ड, ढ]" to "ण्(U0921+U094D)+ट[or ठ, ड, ढ]"
"अनुस्वार(U0902)+त[or थ, द, ध]" to "न्(U0928+U094D)+त[or थ, द, ध]"
"अनुस्वार(U0902)+प[or फ, ब, भ]" to "म्(U092E+U094D)+प[or फ, ब, भ]"
-----
ताकि आम हिन्दी उपयोक्ता को दो या तीन कुञ्जियाँ दबाने की भी कोई
अतिरिक्त परेशानी उठानी न पड़े और advanced Indic computing तथा NLP में
भी कोई जटिल समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े।
हरिराम
On Oct 24, 3:39 pm, "Shrish Sharma" <sharma.shr...@gmail.com> wrote:
> On 10/24/07, sanjay kareer <s.kar...@gmail.com> wrote:
>
>
>
> > श्रीश जी
> > मैं सोच रहा था कि यह बरहा का जिन्न हरिराम जी ने वापस बोतल में बंद कर दिया
> > है.
>
... ...
> कृपया मेरा नाम संजय ही लिखें तो मुझे अच्छा लगेगा.
>
>
>
> जी, सञ्जय बिल्कुल सही वर्तनी है, लिखित रुप से भी और मौखिक रुप से
....