याहू पर माईक्रोसॉफ्ट की बोली

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Debashish

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Feb 4, 2008, 1:55:14 AM2/4/08
to Chithakar
इस मामले पर आखिरकार गूगल ने चुप्पी तोड़ी और अपने आधिकारिक बयान
http://feeds.feedburner.com/~r/blogspot/MKuf/~3/228514013/yahoo-and-future-of-internet.html
में अपनी चिंता व्यक्त की। और मुझे यह चिंता काफी वाजिब भी लगती है।

Amit Gupta

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Feb 4, 2008, 2:34:56 AM2/4/08
to Chit...@googlegroups.com

इसमें चिंता किस बात की है देबू दा? गूगल की ओर से यह पोस्ट मुझे तो सिर्फ़ खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे वाला हाल लग रहा है क्योंकि यदि माइक्रोसॉफ़्ट ने याहू को खरीद लिया तो गूगल पर बन आ सकती है और कदाचित्‌ तगड़ी बन आएगी, बाज़ार में दो ही खिलाड़ी रह जाएँगे, माइक्रोसॉफ़्ट और गूगल। अभी तो गूगल राज इसलिए कर रहा है कि याहू और माइक्रोसॉफ़्ट दोनो ही की लुटिया इंटरनेट के मामले में डूबी पड़ी है, लेकिन माइक्रोसॉफ़्ट की याहू को खरीदने का तमन्नाई होना सीधे इस बात की ओर इशारा करता है कि वो गूगल की सत्ता को सीधे-२ ललकारने का मन बना लिया है!! :)



--
Courage is not the towering oak that sees storms come and go;
it is the fragile blossom that opens in the snow.     --  Alice Mackenzie Swaim

http://me.amitgupta.in/

Amit Gupta

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Feb 4, 2008, 2:35:41 AM2/4/08
to Chit...@googlegroups.com
On 2/4/08, Debashish <deba...@gmail.com> wrote:
इसमें चिंता किस बात की है देबू दा? गूगल की ओर से यह पोस्ट मुझे तो सिर्फ़ खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे वाला हाल लग रहा है क्योंकि यदि माइक्रोसॉफ़्ट ने याहू को खरीद लिया तो गूगल पर बन आ सकती है और कदाचित्‌ तगड़ी बन आएगी, बाज़ार में दो ही खिलाड़ी रह जाएँगे, माइक्रोसॉफ़्ट और गूगल। अभी तो गूगल राज इसलिए कर रहा है कि याहू और माइक्रोसॉफ़्ट दोनो ही की लुटिया इंटरनेट के मामले में डूबी पड़ी है, लेकिन माइक्रोसॉफ़्ट की याहू को खरीदने का तमन्नाई होना सीधे इस बात की ओर इशारा करता है कि वो गूगल की सत्ता को सीधे-२ ललकारने का मन बना लिया है!! :)

Rajesh Roshan

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Feb 4, 2008, 3:08:52 AM2/4/08
to Chit...@googlegroups.com
दिक्कत तो मुझे नही समझ में आती है. मैं अमित जी की बातो से सहमत हू. क्या टाटा की कोरस की खरीद को भी बाजार नियमो के खिलाफ मानेंगे, नही ना. फ़िर माइक्रोसॉफ्ट को क्यों?  

Debashish

unread,
Feb 4, 2008, 4:00:28 AM2/4/08
to Chithakar
बाजारी दृष्टि से देखा जाय तो बुरा कुछ नहीं है, यह एक और बिज़नेस डील भर
है। मुझे (और शायद अन्य गूगल भक्तों को भी) चिंता फ्लिकर और डिलिशियस
जैसे प्रकल्पों के अनवरत चलते रहने के बारे में हैं। याहू मेल का प्रयोग
मैंने काफी पहले ही छोड़ दिया था। याहू ओपन सोर्स का स्वर्ग रही है और
माईक्रोसॉफ्ट ऐसी संस्कृति से खास वाकिफ नहीं। और सबसे बड़ा सवाल मोनोपली
का ही है, जो ज़ाहिर तौर पर गूगल पर भी संप्रति उठने लगा था, मुझे याद है
कि Sun को अदालत में लड़कर अपना जे.वी.एम इंटरनेट एक्सप्लोर तक पहुंचाना
पड़ा।

गूगल के बयान से ये उल्लेखनीय लगाः

Could Microsoft now attempt to exert the same sort of inappropriate
and illegal influence over the Internet that it did with the PC? While
the Internet rewards competitive innovation, Microsoft has frequently
sought to establish proprietary monopolies — and then leverage its
dominance into new, adjacent markets. Could the acquisition of Yahoo!
allow Microsoft — despite its legacy of serious legal and regulatory
offenses — to extend unfair practices from browsers and operating
systems to the Internet? In addition, Microsoft plus Yahoo! equals an
overwhelming share of instant messaging and web email accounts.

On Feb 4, 1:08 pm, "Rajesh Roshan" <rajros...@gmail.com> wrote:
> दिक्कत तो मुझे नही समझ में आती है. मैं अमित जी की बातो से सहमत हू. क्या टाटा
> की कोरस की खरीद को भी बाजार नियमो के खिलाफ मानेंगे, नही ना. फ़िर माइक्रोसॉफ्ट
> को क्यों?
>
> On 04/02/2008, Amit Gupta <coola...@gmail.com> wrote:
>
> > On 2/4/08, Debashish <debash...@gmail.com> wrote:
>
> > > इस मामले पर आखिरकार गूगल ने चुप्पी तोड़ी और अपने आधिकारिक बयान
>
> > >http://feeds.feedburner.com/~r/blogspot/MKuf/~3/228514013/yahoo-and-f...

जीतू | Jitu

unread,
Feb 4, 2008, 4:10:39 AM2/4/08
to Chithakar
जहाँ तक मेरा सोचना है कि लड़ाई यदि खुले दिमाग से लड़ी जाए तो गूगल काफी भारी पड़ेगा, क्योंकि लड़ाई इन्टरनैट के मैदान मे लड़ी जाएगी, जहाँ गूगल किंग है। दूसरा माइक्रोसाफ़्ट-याहू के पास प्रापर्टीज भले ही ज्यादा हों, लेकिन उनका सही इस्तेमाल, अभी भी ढंग से नही कर पाए है। फिर शुरुवात मे बिना मुनाफ़े माइक्रोसाफ़्ट को रास नही आएगा। एकाधिकार चाहे किसी का भी हो, वो अच्छा नही रहता, लेकिन परेशानी तो ये है, इन्टरनैट के बिजीनैस मे कुछ भी कहना मुश्किल है, क्या पता कल को यही दोनो गूगल/Mi-Yahoo अकेले खिलाड़ी आपस मे मिल जाए और उपभोक्ताओं का बैंड बजा दें।
 
एक तरह से गूगल हमारे लिए अपरिहार्य सा हो गया है। भले ही ये हमारी प्राइवेसी मे सीमित खलल डालता है, हमारी जासूसी करता है, लेकिन इसके बिना इन्टरनैट की कल्पना भी अजीब सी लगती है।
 
नोट: देबू दा, लगता है चिट्ठाकार ग्रुप में,  फिर से रिप्लाई वाली प्राबलम आ गयी दिख्खे है। रिप्लाई ग्रुप को होनी चाहिए, व्यक्तिगत रुप से जा रही है।
 
-जीतू

Amit Gupta

unread,
Feb 4, 2008, 4:45:35 AM2/4/08
to Chit...@googlegroups.com
On 2/4/08, Debashish <deba...@gmail.com> wrote:
बाजारी दृष्टि से देखा जाय तो बुरा कुछ नहीं है, यह एक और बिज़नेस डील भर
है। मुझे (और शायद अन्य गूगल भक्तों को भी) चिंता फ्लिकर और डिलिशियस
जैसे प्रकल्पों के अनवरत चलते रहने के बारे में हैं।

फ्लिकर का तो मैं भी प्रो यूज़र हूँ इसलिए थोड़ी चिन्ता तो अवश्य है कि कहीं माइक्रोसॉफ़्ट इसका रूप घटिया न बना दे। लेकिन फिर यह भी संभावना लगती है कि जैसे याहू ने कुछ अधिक इंकलाबी हरकत न कर सिर्फ़ फ्लिकर को याहू लॉगिन से जोड़ा भर था और फ्लिकर टीम को लगभग वैसा ही रहने दिया था जिस तरह पहले थी तो हो सकता है कि माइक्रोसॉफ़्ट भी कोई अधिक ऊँगली बाज़ी न करे!! :)

याहू ओपन सोर्स का स्वर्ग रही है और
माईक्रोसॉफ्ट ऐसी संस्कृति से खास वाकिफ नहीं। और सबसे बड़ा सवाल मोनोपली
का ही है, जो ज़ाहिर तौर पर गूगल पर भी संप्रति उठने लगा था, मुझे याद है
कि Sun को अदालत में लड़कर अपना जे.वी.एम इंटरनेट एक्सप्लोर तक पहुंचाना
पड़ा।

गूगल के बयान से ये उल्लेखनीय लगाः

Could Microsoft now attempt to exert the same sort of inappropriate
and illegal influence over the Internet that it did with the PC? While
the Internet rewards competitive innovation, Microsoft has frequently
sought to establish proprietary monopolies — and then leverage its
dominance into new, adjacent markets. Could the acquisition of Yahoo!
allow Microsoft — despite its legacy of serious legal and regulatory
offenses — to extend unfair practices from browsers and operating
systems to the Internet? In addition, Microsoft plus Yahoo! equals an
overwhelming share of instant messaging and web email accounts.

इसी को पढ़कर तो मैंने खिसयानी बिल्ली कहा था गूगल को। ये गूगल मुक्त स्रोत का बहुत परचम लहराता है और अपने को  एकाधिकार की मानसिकता के खिलाफ़ दिखाता है लेकिन वास्तव में गूगल बगुला भगत है। एकाधिकार का गूगल कम तमन्नाई नहीं है। इसके जैसे ही एक और है, मुट्ठी भर लोगों का दुलारा *सेब* यानि कि एप्पल जो कि शुरु से ही एकाधिकार का तमन्नाई रहा है। हर कंपनी की तमन्ना होती है कि बाज़ार में उसका एकाधिकार हो लेकिन हर कंपनी की तमन्ना पूरी नहीं होती। ज़्यादा कुछ नहीं सिर्फ़ एक मामूली सा उदाहरण दूँगा - गूगल के एडसेन्स अनुबंध में एक शर्त यह है कि पब्लिशर ने जिस पन्ने पर गूगल एडसेन्स के विज्ञापन लगा रखे हैं उस पर कोई अन्य context sensitive ad system नहीं लगा सकता। अब इसको क्या कहा जाएगा?

माइक्रोसॉफ़्ट जैसा भी है कम से कम जो करता है ठोक बजा के करता है, व्यापार के अनुसार इसको उसकी बेवकूफ़ी भी कह सकते हैं या उपभोग्ताओं के प्रति साफ़ दिल का होना भी, या ऐसा भी हो सकता है कि क्योंकि वह बाज़ार का बादशाह है तो इसलिए उसको बगुला भगत बन लोगों से "मुँह में राम बगल में छुरी" वाली हरकतें करने की आवश्यकता नहीं। गूगल, सेब जैसे लोग अभी बाज़ार के बादशाह नहीं हैं इसलिए उनको बगुला भगत बन माइक्रोसॉफ़्ट से चिढ़ने वालों को अपनी ओर करना पड़ता है!! ;)

Jagdish Bhatia

unread,
Feb 4, 2008, 5:15:19 AM2/4/08
to Chit...@googlegroups.com
गूगल की टिप्पणी पर माइक्रोसॉफट का जवाब यहां है
 
ध्यान दीजिये
“Microsoft is committed to openness, innovation, and the protection of privacy on the Internet”
 
बाकी बात तो यह है कि दोनो कंपनियां कमाई तो इंटरनेट प्रयोक्ताओं से ही करेंगीं।
गूगल हम लोगों को प्रिय है क्योकि उसकी लगभग हर सेवा हिंदी और युनिकोड के प्रयोग के अनुकूल है। याहू पर अभी तक युनिकोड आधारित मेल सही से नहीं दिखती है।
 
वैसे मेरा मानना है कि यदि विंडोज़ OS  को गूगल ने बनाया होता तो वह इसे उपभोक्ताओं को फ्री में ही प्रदान करता बस कुछ विज्ञापन लगा कर ;)
 
जगदीश

Amit Gupta

unread,
Feb 4, 2008, 5:17:49 AM2/4/08
to Chit...@googlegroups.com
On 2/4/08, Jagdish Bhatia <mai...@gmail.com> wrote:
वैसे मेरा मानना है कि यदि विंडोज़ OS  को गूगल ने बनाया होता तो वह इसे उपभोक्ताओं को फ्री में ही प्रदान करता बस कुछ विज्ञापन लगा कर ;)

पर क्या वह चलता? इस बारे में संशय अवश्य है। इस तरह का ऑपरा का एडवेयर मॉडल नहीं चला जहाँ वह अपना ब्राउज़र लोगों को फ्री में देते थे परन्तु उस पर विज्ञापन देते थे और यदि किसी को विज्ञापन पसंद नहीं तो वह शुल्क देकर विज्ञापन हटवा सकता था! ;) लेकिन वह तरीका अधिक चला नहीं और ऑपरा ने आखिरकार अपना ब्राउज़र ही मुफ़्त कर दिया, शुल्क और विज्ञापन दोनो से मुक्त!! ;)

अब ऐसा नहीं है कि ऑपरा का नहीं चला तो किसी अन्य का भी नहीं चलेगा, हो सकता है गूगल का चल जाता! ;) वैसे काफ़ी समय से अफ़वाह तो है बाज़ार में कि गूगल का अपना लिनेक्स फ्लेवर आने वाला है! :)

Ravishankar Shrivastava

unread,
Feb 4, 2008, 6:53:20 AM2/4/08
to Chit...@googlegroups.com
Amit Gupta wrote:
>
> अब ऐसा नहीं है कि ऑपरा का नहीं चला तो किसी अन्य का भी नहीं चलेगा, हो सकता है
> गूगल का चल जाता! ;) वैसे काफ़ी समय से अफ़वाह तो है बाज़ार में कि गूगल का अपना
> लिनेक्स फ्लेवर आने वाला है! :)
गूगल का मोबाइल ओएस एंड्राइड लिनक्स आधारित ही है, और एक डेस्कटॉप लिनक्स फ्लेवर
'gOS' निकल चुका है, परंतु वो गूगल का नहीं है, गूगल ऑप्टीमाइज़्ड है, और उबुन्टु जैसा ही
इनिशियल बज उसे मिल रहा है ;)

रवि

Tarun

unread,
Feb 4, 2008, 9:12:31 AM2/4/08
to Chit...@googlegroups.com
Discussion to abhi chalta rahega lekin philhaal shareholders yehi samajhte hain ki google ki thori bahut to lagegi hi tabhi na khabar aate hi google ka share kya phatak se gira aur acha khasa gira. Kher shares ki ye uthapatak to chalti rahegi.
 
philhaal to ye khisyani billli wali hi baat lag rahi hai.

 

Dr Amar Kumar

unread,
Feb 4, 2008, 3:20:07 PM2/4/08
to Chit...@googlegroups.com
श्रीमन गणमान्य मूर्धन्यों,
बीच बहस में हम बच्चों का बोलना ठीक नहीं,
किंतु माइक्रोसाफ़्ट के इरादे नेक नहीं लगते ।
अपनी हर सेवा के बदले एक एक दमड़ी वसूलने
में चमड़ी तक खरोंच लेता है । उसकी कारपोरेट
सोच के हैरतअंगेज़ कारनामे एक अलग विषय है ।
खैर छोडिये, हमें क्या ।

अमर

 

आलोक कुमार

unread,
Feb 5, 2008, 12:28:41 AM2/5/08
to Chithakar


On Feb 4, 3:15 pm, "Jagdish Bhatia" <mail...@gmail.com> wrote:
> गूगल की टिप्पणी पर माइक्रोसॉफट का जवाब यहां हैhttp://www.microsoft.com/presspass/press/2008/feb08/02-03Statement.ms...
>

सही है। एक कह रहा है दो और दो चार, और दूसरा कह रहा है तीन और तीन छः।

हॉटमेल और याहू मिला दें तो दुनिया के लगभग ७५ फ़ीसदी डाक पते तो होंगे
ही। केवल तुक्का है, पर हिन्दी जगत में जीमेल अधिक लोकप्रिय है यूनिकोड
समर्थन की वजह से, वरना अधिक फैलाव तो याहू और हॉटमेल का ही है। डाक +
विंडोज़ - दोनो मिला के पकड़ ज़बर्दस्त होगी। गूगल कह रहा है दो और दो
चार।

और खोज आय में गूगल सबसे आगे है। अगर याहू और गूगल खोज में मिल जाएँ, तो
दूसरे नंबर पर कोई बचेगा ही नहीं। माइक्रोसॉफ़्ट कह रहा है तीन और तीन
छः।

बस एक ही चीज़ बढ़िया है - कि खोज आय में बढ़ोतरी तीन गुना होने की
संभावना है। अतः नए खिलाड़यों के लिए जगह होगी।

जीतू | Jitu

unread,
Feb 5, 2008, 12:52:33 AM2/5/08
to Chit...@googlegroups.com
 
एक उपभोक्ता की हैसियत से हमे माइक्रोसाफ़्ट और याहू की डील का स्वागत करना चाहिए, क्योकि इससे किसी भी एक कम्पनी का दबदबा घटेगा और हमे बेहतर सर्विस/प्रोडक्ट और प्रतियोगिता देखने को मिलेगी। अर्थशास्त्र के नियमानुसार किसी भी तरह की (स्वस्थ) प्रतियोगिता मे उपभोक्ता का ही फायदा होता है।
 
एक निवेशक की नज़र से देखा जाए तो मौजूदा समय, गूगल के शेयर खरीदने की सोचने का है। कल ही ये शेयर लगभग 5% गिरा है, शायद इस बवाल के चलते और गिरे।
 
-जीतू

आलोक कुमार

unread,
Feb 5, 2008, 4:38:07 AM2/5/08
to Chithakar
> चाहिए, क्योकि इससे किसी भी एक कम्पनी का दबदबा घटेगा और हमे बेहतर
> सर्विस/प्रोडक्ट और प्रतियोगिता देखने को मिलेगी। अर्थशास्त्र के नियमानुसार
> किसी भी तरह की (स्वस्थ) प्रतियोगिता मे उपभोक्ता का ही फायदा होता है।

हैं!
कंपनियों की संख्या घटेगी, बढ़ेगी नहीं। प्रतियोगिता घटेगी - उत्पादों
में, बढ़ेगी, खोज में। यह कहना अनुचित है कि उपभोक्ता को फ़ायदा ही होगा।
कुछ चीज़ों में नुकसान भी हो सकता है।

Amit Gupta

unread,
Feb 5, 2008, 5:17:40 AM2/5/08
to Chit...@googlegroups.com
On 2/5/08, Dr Amar Kumar <drama...@gmail.com> wrote:
श्रीमन गणमान्य मूर्धन्यों,
बीच बहस में हम बच्चों का बोलना ठीक नहीं,
किंतु माइक्रोसाफ़्ट के इरादे नेक नहीं लगते ।
अपनी हर सेवा के बदले एक एक दमड़ी वसूलने
में चमड़ी तक खरोंच लेता है । उसकी कारपोरेट
सोच के हैरतअंगेज़ कारनामे एक अलग विषय है ।
खैर छोडिये, हमें क्या ।

डॉ साहब, एक उत्सुक्ता है। आप पेशे से डॉक्टर हैं कि PhD वाले डॉक्टर हैं? यदि पेशे से डॉक्टर हैं तो किस तरह के हैं? मतलब दांतों के हैं या हड्डियों के हैं या जनरल फिजीशियन हैं? :)

sanjay kareer

unread,
Feb 5, 2008, 6:26:57 AM2/5/08
to Chit...@googlegroups.com
On Feb 5, 2008 3:47 PM, Amit Gupta <cool...@gmail.com> wrote:
डॉ साहब, एक उत्सुक्ता है। आप पेशे से डॉक्टर हैं कि PhD वाले डॉक्टर हैं? यदि पेशे से डॉक्टर हैं तो किस तरह के हैं? मतलब दांतों के हैं या हड्डियों के हैं या जनरल फिजीशियन हैं? :)
 
 
:-) सही सवाल.... जवाब जानने की उत्‍सुक्‍ता अपन को भी हो रही है.



--
Sanjay Kareer
http://www.dailyhindinews.com

sanjay kareer

unread,
Feb 5, 2008, 6:57:28 AM2/5/08
to Chit...@googlegroups.com
इस जानकारी पर नजर भी डालें
 
ये आंकड़े नवंबर के हैं और 3 दिन पहले जारी किए गए. ये  इस कहानी के एक और पहलू को स्‍पष्‍ट करते हैं कि क्‍यों माइक्रोसॉफ्ट याहू को खरीदने के लिए बेचैन हैं. याहू और माइक्रोसॉफ्ट के शेयर को जोड़ कर देखें....
---------------------------
Yahoo! Sites Ranks as Top Ad Publisher with 19 Percent Share of Online Display Ads
 
Yahoo! Sites ranked as the top display ad publisher property in November, with 18.8 percent of display ad views, followed by Fox Interactive (16.3 percent), Microsoft Sites (6.7 percent), Time Warner Network (5.8 percent) and Facebook.com (1.5 percent). Nearly half (49.1 percent) of all display ads seen by U.S. Internet users originate on only five properties, illustrating the concentration of advertising among a few properties.

    Top 20 Ad Publishers Ranked by Share of Online Display Ads
    November 2007
    Total U.S. - Home/Work/University Locations
    Source: comScore Ad Metrix

             Publisher                Share of      Display Ads
                                     Display Ads     per Visit
    Total Internet:  Total             100.0 %         35.1
    Audience
    Yahoo! Sites                        18.8 %         20.5
    Fox Interactive Media               16.3 %         47.5
    Microsoft Sites                      6.7 %          9.8
    Time Warner Network                  5.8 %         10.1
    FACEBOOK.COM                         1.5 %          8.4
    eBay                                 1.2 %          8.4
    Google Sites                         1.0 %          1.3
    Viacom Digital                       1.0 %         20.6
    United Online, Inc                   0.5 %         18.3
    Amazon Sites                         0.4 %          8.2
    New York Times Digital               0.4 %         11.5
    CBS Sports                           0.3 %         22.4
    COMCAST.NET                          0.3 %          4.0
    PHOTOBUCKET.COM                      0.3 %         16.8
    BEBO.COM                             0.3 %         27.2
    ESPN                                 0.3 %          6.2
    Weather Channel, The                 0.3 %          8.8
    NFL Internet Group                   0.3 %         12.9
    Ask Network                          0.2 %          3.4
    Glam Media                           0.2 %         11.9

One dimension to understanding a site's ability to monetize its content is the number of display ads it serves. Of the top 20 ad publishers, Fox Interactive served the most display ads per user visit to its sites (47.5), a particularly high number that is a function of both site engagement and how many ads are displayed per page. Bebo (27.2), CBS Sports (22.6), Viacom Digital (20.6) and Yahoo! Sites (20.5) each served an average of more than 20 display ads per user visit.

Jagdish Bhatia

unread,
Feb 5, 2008, 8:10:10 AM2/5/08
to Chit...@googlegroups.com
मजेदार वीडियो के साथ यह लेख भी देखिये:
 
 
लेख में आखिरी पैरा मुझे बहुत सही लगा।
 
जगदीश

Dr Amar Kumar

unread,
Feb 5, 2008, 2:32:28 PM2/5/08
to Chit...@googlegroups.com
प्रिय बंधु,
ब्लागीर अभिवादन
विदित हो कि मैं डाक्टर अमर कुमार एततद्वारा घोषित करता हूँ कि मैं
पेशे से कायचिकित्सक बोले तो फ़िज़िशीयन हूँ ,अतः मेरी भाषा या लेखन की
त्रुटियों पर  कत्तई ध्यान न दिया जाय । ईश्वर प्रदत्त आयू में से 55 बसंत को
पतझड़ में बदलने के पश्चात अनायास ही हिंदी माता के सेवा के बहाने से
कुछेक टुटपुँजिया ब्लागिंग कर रहा हूँ । वैसे युवावस्था की हरियाली में ही
हिंदी, अंग्रेज़ी,बाँगला साहित्य के खर पतवार चरने की लत लग गयी थी ,
और अब तो लतिहरों में पंजीकरण भी हो गया है ।
गुस्ताख़ी माफ़ हो तो अर्ज़ करूँ... इन उत्सुक्ताओं को देख मुझे दर-उत्सुक्ता
हो रही है कि आपकी उत्सुक्ता के पीछे कौन सी उत्सुक्ता है ? मेरी हाज़त
का खुलासा हो जाय, वरना कायम चूर्ण जैसी किसी उत्पाद के शरणागत
होना पड़ेगा । आगे जैसी आपकी मर्ज़ी..
सादर - अमर

ई-स्वामी

unread,
Feb 5, 2008, 10:43:10 PM2/5/08
to Chit...@googlegroups.com
देबू,
 
सास की खातिर हो रहा है सब!
सास मतलब SAAS - Software as a service! गूगल से सीधे टक्कर लेने का एक ही तरीका है माईक्रोसाफ़्ट के पास की यूजर बेस बढाओ और साफ़्टवेयर सबस्र्किपशन बेचो! MSN के भरोसे कुछ होगा नहीं.  'ओन डिमान्ड' आने वाले कल का सच है, पाईरेसी का तोड है और इन स्टोर सेल, सप्लाई-चेन के खर्चों का निदान भी. सीधे उपभोक्ता तक पहूंच.
 
एक बात साफ़ है - गूगल और माईक्रोसोफ़्ट के एकछत्र राज की चाह वाली बात ही गलत है - तो दोनो मे से किसी को भी एकछत्र राज की चाहत नही है  - मार्केट शेयर पर संतुलित नियंत्रण चाहिये दोनो को. बाकी सब नाटक है!
 
दोनो में से कोई भी नही चाहता की मार्केट को मोनोपोलाईज़ करने की तोहमत में उसका विघटन हो जाए और वैसे भी अभी इन्टरनेट सर्च को मोनोपोलाईज़ करने का दम किसी में भी नही है - किसी में भी नहीं! पीसी ओएस मार्केट में ये दम  माईक्रोसोफ़्ट में था इसी लिये माईक्रोसोफ़्ट नें एप्पल में निवेश कर के उसे जिलाए रखा. ये लंबी रेस के घोडों का गेम है. दोनो को ओपन सोर्स से भी इनडाईरेक्ट फ़ायदा मिलता रहा है तो उसके पक्ष में भी बोलेंगे ही! तो गेम सास के लिये है सर्च के लिये या इन्टरनेट एड के लिये नहीं है - उसके लिये ४५ बिलियन बहुत ज्यादा है भैये - बिल्लू के बाप को भी नहीं पुसाएगा.
 
दूसरी बात साफ़ नहीं है - फ़िर कहता हूं की मेरे हिसाब से ४५ बिलियन याहू की व्यव्हारिक औकात से ज्यादा की बोली है ६६ के पी/ई रेश्यो पर हैं वो अभी भी मतलब ६६ गुना पर खरीद!!.. माईक्रोसॉफ़्ट वालों को भी इस बात का एहसास रहा होगा - इसीलिये अपनी जेब से निकालने के बजाए ८०% पैसा मार्केट से उठाएंगे -पहली बार! सबसे श्याणी कंपनी तो फ़ॉक्स इन्टरटेनमेंट है जिनकी जेब में माईस्पेस जैसी साईट्स हैं - उन्होंने साफ़ बोल दिया की याहू में दिलचस्पी नहीं है! ये वही फ़ॉक्स है जिसने 1 बिलियन की सर्च इंजन सर्विसेज़ ली हैं गूगल से उन्हें पता है की इस युद्ध में उनको सस्ती सर्विसेज़ मिलेंगी - हमें भी यही सोचना चाहिए!
 
वैसे याहू को अकेले छोड देते तो वो भी एओएल की मौत मरती, गूगल की क्वालिटी और सेवाओं के आगे टिक नहीं पा रही है- क्यों पैसा झोंक रहे हैं इतना - महज़ अपना आकार बडा करने के लिये? शायद माईक्रोसाफ़्ट को डर होगा की कहीं गूगल ना खरीद ले या कोई और या खुद याहू वाले कोई नया शगूफ़ा प्राडक्ट ना ले आएं. वैसे कितना बढ जाएगा यूजर बेस ये क्लियर नही है!
 
अगर याहू का टेलेंट पूल ही चाहिये तो उतने में तो आधी गूगल का टेलेंट पूल खरीद लेते - डील आफ़र कर के ही स्टीव बाल्मर और बिल्लू भैया की स्टाक में औकात टोटल साढेतीन बिलियन से गिर गई .. अभी ये क्लियर नही हैं की इतनी बडी बोली कितने समय में फ़ायदा देगी - लेकिन बोली है बहुत बडी.

Amit Gupta

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Feb 6, 2008, 3:01:09 AM2/6/08
to Chit...@googlegroups.com
On 2/6/08, Dr Amar Kumar <drama...@gmail.com> wrote:
विदित हो कि मैं डाक्टर अमर कुमार एततद्वारा घोषित करता हूँ कि मैं
पेशे से कायचिकित्सक बोले तो फ़िज़िशीयन हूँ


गुस्ताख़ी माफ़ हो तो अर्ज़ करूँ... इन उत्सुक्ताओं को देख मुझे दर-उत्सुक्ता
हो रही है कि आपकी उत्सुक्ता के पीछे कौन सी उत्सुक्ता है ? मेरी हाज़त
का खुलासा हो जाय, वरना कायम चूर्ण जैसी किसी उत्पाद के शरणागत
होना पड़ेगा । आगे जैसी आपकी मर्ज़ी..

डॉ साहब, आपके उत्तर ने तो मोहित कर दिया। :) खैर, मैंने क्यों पूछा यह बताता हूँ। आप पेशे से चिकित्सक हैं, तो क्या आप मरीज़ का इलाज फोकटी करते हैं? चिकित्सक को ईश्वर का रूप कहते हैं क्योंकि वह मरीज़ की चिकित्सा कर उसे स्वास्थ्य प्रदान करता है, परन्तु वह भी तो अपनी सेवा के बदले शुल्क लेता है नहीं तो खाएगा क्या और अपने परिवार और आश्रितों का पालन-पोषण कैसे करेगा। तो ठीक वैसे ही माइक्रोसॉफ़्ट और अन्य कंपनियाँ हैं, आपको सेवा प्रदान करती हैं, माल बेचती हैं और पैसे कमाती हैं। तो इसलिए मैं समझता हूँ कि आपकी पूर्व छींटाकशी, कि माइक्रोसॉफ़्ट के इरादे नेक नहीं हैं पैसे लेते हैं वगैरह, मेरे अनुसार गैरज़रूरी थी। बुरा न माने, आपको भला-बुरा नहीं कह रहा मात्र अपने विचार प्रकट किए हैं। :)

Dr Amar Kumar

unread,
Feb 8, 2008, 4:39:22 PM2/8/08
to Chit...@googlegroups.com
थैंक यू जी , थैंक यू व्हेरी मच
आपको मोहित होते देख हुण तो लोहित हुआ ।
मैंने तो ऎवेंई ज़वाब दे मारा था, सीरियसली आपसे ज़वाबतलबी थोड़ेई करूँगा ?
मेरे टप्प से बोल देने का अर्थशास्त्रीय खुलासा तो अब तक हो ही गया होगा ।
जब ई-स्वामी जैसे दिग्गज सब छाँट-फटक के दिखाय दिहे हैं, तो हम चलनी
जइसे अपने बहत्तर छेद लइके इहाँ का दिखावें ?
बाकी लिखा - पढ़ा माफ़ करना जी !
 - अमर
 

 
 

 

Dr Amar Kumar

unread,
Feb 8, 2008, 4:40:34 PM2/8/08
to Chit...@googlegroups.com
थैंक यू जी , थैंक यू व्हेरी मच
आपको मोहित होते देख हुण तो लोहित हुआ ।
मैंने तो ऎवेंई ज़वाब दे मारा था, सीरियसली आपसे ज़वाबतलबी थोड़ेई करूँगा ?
मेरे टप्प से बोल देने का अर्थशास्त्रीय खुलासा तो अब तक हो ही गया होगा ।
जब ई-स्वामी जैसे दिग्गज सब छाँट-फटक के दिखाय दिहे हैं, तो हम चलनी
जइसे अपने बहत्तर छेद लइके इहाँ का दिखावें ?
बाकी लिखा - पढ़ा माफ़ करना जी !
 - अमर


On 06/02/2008, Amit Gupta <cool...@gmail.com> wrote:

Hariram

unread,
Feb 9, 2008, 7:15:50 AM2/9/08
to Chithakar
इससे हम हिन्दी उपयोगकर्ताओं का तो लगता है कि फायदा ही होगा, वर्तमान
yahoo mail, yahoo groups आदि में हिन्दी युनिकोड पाठ के बिगड़ने की
समस्या से तो हमें निजात अवश्य मिल जाएगी।

हरिराम

On 6 फरवरी, 13:01, "Amit Gupta" <coola...@gmail.com> wrote:
> छींटाकशी, कि माइक्रोसॉफ़्ट के इरादे नेक नहीं हैं पैसे लेते हैं वगैरह, मेरे
> अनुसार गैरज़रूरी थी। /

sanjay kareer

unread,
Feb 9, 2008, 6:27:46 PM2/9/08
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याहू माइक्रोसॉफ्ट की पेशकश ठुकरा चुका है. मैं नहीं कह रहा... यह समाचार कहता है....
 

जीतू | Jitu

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Feb 9, 2008, 11:24:48 PM2/9/08
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ये पेशकश ठुकराना सिर्फ़ भाव बढाने की तरकीबें है। याहू के पास दो ही रास्ते बचे है,
१. या तो माइक्रोसाफ़्ट के हाथों बिक जाए
२. या फिर अपनी सर्च को गूगल के साथ मर्ज कर ले और सारी सर्च गूगल से आउटसोर्स करवा ले। और अपना ध्यान बाकी वैब प्रापर्टीज पर लगाए।

बहुत सारे भारतीय इंजीनीयर्स का भी ध्यान इस डिसीजन पर टिका है, क्योकि याहू और माइक्रोसाफ़्ट की कार्यशैली, वर्क कल्चर एकदम अलग अलग है।
 
-जीतू

Amit Gupta

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Feb 10, 2008, 5:57:46 AM2/10/08
to Chit...@googlegroups.com
On 2/10/08, जीतू | Jitu <jitu...@gmail.com> wrote:
ये पेशकश ठुकराना सिर्फ़ भाव बढाने की तरकीबें है। याहू के पास दो ही रास्ते बचे है,

कदाचित्‌ याहू किसी गफ़लत में है क्योंकि इसके चांस कम ही हैं कि माइक्रोसॉफ़्ट अपनी बोली कुछ खास बढ़ाएगा।

१. या तो माइक्रोसाफ़्ट के हाथों बिक जाए
२. या फिर अपनी सर्च को गूगल के साथ मर्ज कर ले और सारी सर्च गूगल से आउटसोर्स करवा ले। और अपना ध्यान बाकी वैब प्रापर्टीज पर लगाए।

यदि वह गूगल के साथ गठबंधन करता है तो नंबर १ की कुर्सी पर कभी काबिज़ न हो पाएगा क्योंकि गूगल उसे सिर्फ़ इसलिए सपोर्ट देगा क्योंकि वह नहीं चाहता कि माइक्रोसॉफ़्ट के हाथ मज़बूत हों। लेकिन गूगल यह भी नहीं चाहेगा कि याहू इतना मज़बूत हो कि उसे बराबर की टक्कर दे सके। अन्य शब्दों में गूगल और याहू का रिश्ता वैसे हो जाएगा जैसा अमेरिका-पाकिस्तान का है!! ;)

ई-स्वामी

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May 5, 2008, 10:07:36 AM5/5/08
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इस पुरानी वार्ता को फ़िर जिला रहा हूं -
आज माईक्रोसॉफ़्ट नें याहू की ३७ डॉलर प्रति शेयर की मांग को खारिज करते हुए अपनी बोली वापस ले ली और याहू के स्टॉक  औंधे मूंह नीचे आ गए. माईक्रोसॉफ़्ट पर इन्टरनेट पे अपना आकार बढाने का इतना अधिक दबाव है की वो याहू को पूरी तरह दरकिनार नहीं कर सकते - और अभी उनके पार कोई तैयार विकल्प भी नहीं है.  मुझे लगता है कुछ महीनों में ३५ डालर के आसपास मामला पट सकता है - यदी इस बीच याहू के मुनाफ़े और घटे तो सौदा और भी दिलचस्प हो सकता है. वैसे याहू के लिये ३३ की बोली भी काफ़ी अधिक लग रही थी. 

Amit Gupta

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May 5, 2008, 11:33:51 AM5/5/08
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On Mon, May 5, 2008 at 7:37 PM, ई-स्वामी <esw...@gmail.com> wrote:
माईक्रोसॉफ़्ट पर इन्टरनेट पे अपना आकार बढाने का इतना अधिक दबाव है की वो याहू को पूरी तरह दरकिनार नहीं कर सकते - और अभी उनके पार कोई तैयार विकल्प भी नहीं है.

बिलकुल सही कहा। स्टीव बॉल्मर ने जेरी चैंग को महीना भर पहले लिखी चिट्ठी में  होस्टाइल टेकओवर की धमकी भी दी थी लेकिन अब अपना ऑफर वापस लेते हुए लिखा है कि वे होस्टाइल टेकओवर नहीं करेंगे।
 
मुझे लगता है कुछ महीनों में ३५ डालर के आसपास मामला पट सकता है

मैं भी यही सोच रहा था कि सौदा तो पटेगा, याहू के पास कोई और चारा नहीं है फिलहाल क्योंकि धंधा उसका नीचे की लिफ़्ट पकड़े हुए है और कोई अन्य कंपनी याहू को खरीदने की औकात रखती नहीं। न्यूज़ कॉर्प वाले मर्डॉक साहब आए थे बहती गंगा में हाथ धोने के लिए और याहू को माइस्पेस.कॉम देने की पेशकश की थी याहू के 20% हिस्से के बदले लेकिन उससे खाली पड़ी याहू की जेब की समस्या नहीं सुलझती, याहू को आज की तारीख में कोल्ड हार्ड कैश चाहिए!! और कम से कम मुझे तो नहीं लगता कि माइक्रोसॉफ़्ट प्रति शेयर 34-35 डॉलर से ऊपर किसी भी हाल में देगा!!
 
यदी इस बीच याहू के मुनाफ़े और घटे तो सौदा और भी दिलचस्प हो सकता है. वैसे याहू के लिये ३३ की बोली भी काफ़ी अधिक लग रही थी.

दिलचस्प तो वाकई होगा यह सौदा क्योंकि कदाचित्‌ आईटी इंडस्ट्री में यह अभी तक का सबसे बड़ा सौदा होगा!! और हाँ, अभी जो याहू के हाल हैं उससे तो 33 प्रति शेयर वाकई बहुत ज़्यादा हैं, दो महीने पहले ही जब माइक्रोसॉफ़्ट ने 44 अरब का भाव लगाया था तो उसका शेयर भी तो नीचे आया था क्योंकि उस समय के हिसाब से याहू के लिए यह काफ़ी ज़्यादा कीमत थी!!

अपन तो तेल देख रहे हैं और तेल की धार!!

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